राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का भरतपुर ज़िले के "पूंछरी का लौठा" मंदिर से ऐसा नाता है कि न तो राजनीति से जुड़ा है और न ही दिखावे से। यह रिश्ता पूरी तरह आस्था से जुड़ा है - हर साल गिरिराज जी की गोवर्धन परिक्रमा और मंदिर दर्शन उनके वार्षिक कैलेंडर का अभिन्न अंग हैं। इस बार भी गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर, वे मुड़िया पूर्णिमा मेले के दौरान डीग के पूंछरी का लौठा पहुँचे और वही किया जिसके लिए वे जाने जाते हैं - भक्तों के बीच पहुँचे, जल सेवा की, प्रसादी वितरित की और परिक्रमा मार्ग की व्यवस्थाओं को स्वयं देखा।
गिरिराज परिक्रमा, भक्ति का मार्ग
पूंछरी का लौठा कोई साधारण धार्मिक स्थल नहीं है। यह सप्तकोसीय गोवर्धन परिक्रमा मार्ग का मुख्य पड़ाव है और इसका लगभग 1.2 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान में पड़ता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने यहीं अपनी बाल लीलाएँ की थीं और आज भी देश-विदेश से लगभग 2 करोड़ भक्त हर साल यहाँ पहुँचते हैं। लेकिन इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन 2 करोड़ लोग गिर्राज जी की शरण में थे। भजनलाल शर्मा स्वयं भी इस धार्मिक जुड़ाव से जुड़े हुए हैं। पिछले 25 वर्षों से वे हर साल गुरु पूर्णिमा पर, चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, यहाँ पहुँचते हैं। इस बार भी नज़ारा कुछ ऐसा ही रहा - मुख्यमंत्री ने मंदिर में पूजा-अर्चना की, श्रद्धालुओं से बातचीत की, स्वयं प्याऊ पर जल चढ़ाया और भंडारे की थाली से प्रसादी वितरित की।
परिक्रमा मार्ग के कायाकल्प की बड़ी योजना
सरकार इस क्षेत्र को न केवल आस्था का केंद्र, बल्कि विश्वस्तरीय तीर्थस्थल बनाने के मिशन पर है। गोवर्धन परिक्रमा विकास परियोजना को चार क्षेत्रों में विभाजित करके कार्य किया जा रहा है।
पहला क्षेत्र: जिसमें श्रीनाथ जी मंदिर, पूंछरी का लौठा, दाऊजी मंदिर, मुखारबिंद, अप्सरा कुंड, कमल तालाब, वनस्पति उद्यान जैसे स्थानों का विकास किया जाएगा।
दूसरा क्षेत्र: भव्य प्रवेश द्वार, मार्ग का सौंदर्यीकरण, प्रकाश व्यवस्था, विश्राम मंडप, भोजनशाला और श्रीकृष्ण की मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा।
तीसरा क्षेत्र: प्रवेश द्वार, जलप्रपात, गिरिराज जी संग्रहालय, भजन-कीर्तन स्थल, सांस्कृतिक केंद्र और आध्यात्मिक ग्राम तैयार किया जाएगा।
चौथा क्षेत्र: 250 फीट ऊँची विशाल प्रतिमा, ध्यान कक्ष, आश्रम ग्राम और हस्तशिल्प बाज़ार जैसे विशेष आकर्षण होंगे।
यह आस्था का विषय है
मुख्यमंत्री ने इस दौरान कहा, "मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं हैं, ये हमारी संस्कृति और आस्था का केंद्र हैं।" उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को दोहराते हुए कहा कि विकास और विरासत साथ-साथ चल सकते हैं और इसी सोच के साथ राजस्थान सरकार तीर्थ स्थलों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रही है।इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री की भागीदारी केवल औपचारिकता नहीं थी। वे स्वयं प्याऊ पर खड़े होकर श्रद्धालुओं को जल पिलाते नज़र आए। थाली में प्रसादी परोसते समय उनके चेहरे पर वही भाव थे, जो एक सच्चे सेवक के चेहरे पर होते हैं। यह दृश्य दर्शकों के लिए किसी आध्यात्मिक अनुभव से कम नहीं था।
गुरु पूर्णिमा और सामाजिक एकता
मुख्यमंत्री ने गुरु पूर्णिमा के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "गुरु ही जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। ऐसे आयोजन सामाजिक एकता और हमारी सांस्कृतिक विरासत को मज़बूत करते हैं।" इस दौरान मुख्यमंत्री ने परिक्रमा मार्ग की व्यवस्थाओं का भी जायज़ा लिया और अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। विश्राम स्थल, साफ़-सफ़ाई, पेयजल और स्वास्थ्य सुविधाएँ पूरी तरह से उपलब्ध होनी चाहिए। पूंछरी का लौटा में मुख्यमंत्री का आगमन सिर्फ़ एक सरकारी कार्यक्रम नहीं था, बल्कि आस्था, सेवा और संस्कृति से जुड़ा एक ऐसा पल था, जिसने हर साल की तरह इस बार भी लोगों के दिलों को छू लिया। यही वजह है कि लोग कहते हैं - भजनलाल शर्मा जहाँ भी हों, गुरु पूर्णिमा पर पूंछरी ज़रूर आते हैं... क्योंकि यहाँ उनकी आस्था बसती है, राजनीति नहीं।