आपको याद होगा कि कुछ महीने पहले मध्य प्रदेश की छह महिला जजों की सेवा समाप्ति को सुप्रीम कोर्ट ने ग़लत करार देते हुए उनकी बहाली का आदेश दिया था.
इन्हीं छह जजों में से एक थीं अदिति शर्मा, जिन्होंने 28 जुलाई को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
अदिति शर्मा ने कहा, "मैं न्यायिक सेवा से इस्तीफ़ा दे रही हूँ, इसलिए नहीं कि मैं इस संस्था से हार गई, बल्कि इसलिए कि यह संस्था मुझसे हार गई."
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मार्च 2025 में अदिति शर्मा ने मध्य प्रदेश के शहडोल ज़िले में बतौर सिविल जज (जूनियर डिवीज़न) का फिर से कार्यभार संभाला था और उनकी ज्वाइनिंग को पांच महीने ही हुए थे.
बीबीसी से उन्होंने कहा, "जब निर्णय किसी एक के पक्ष में ही होना हो, तब भी न्यायालय आवश्यक हैं ताकि हारने वाले को भी अपनी बात रखने का अवसर और संतोष मिल सके. मुझे न न्याय मिला, न सुनवाई हुई."
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उनका इस्तीफ़ा उसी दिन आया, जब मध्य प्रदेश के तत्कालीन ज़िला जज राजेश कुमार गुप्ता मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किए गए. उन्हीं के ख़िलाफ़ अदिति शर्मा ने उत्पीड़न की शिकायत दर्ज की थी.
उन्होंने राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भी पत्र लिखकर राजेश कुमार गुप्ता की पदोन्नति पर आपत्ति जताई थी.
बीबीसी संवाददाता द्वारा देखे गए पत्रों में अदिति ने लिखा, "जिस व्यक्ति पर गंभीर और अनसुलझे आरोप हैं... उसे न्यायालय की कुर्सी सौंपना प्रणाली के प्रति अविश्वास पैदा करता है."
इस मामले पर बीबीसी ने हाईकोर्ट के नवनियुक्त जज राजेश कुमार गुप्ता और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
हालांकि बार एंड बेंच नाम की एक क़ानूनी वेबसाइट को हाईकोर्ट के जज नियुक्त किए जाने से पहले दिए बयान में राजेश कुमार गुप्ता ने कहा था, "ये लोग हमेशा ऐसी बातें शुरू करते हैं, जबकि मेरे ख़िलाफ़ कभी कोई शिकायत नहीं रही है. मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी एक संत की तरह बिताई है. मैं पिछले 35 सालों से सेवा में हूँ और आज तक कोई शिकायत नहीं आई है. मेरी सेवा-निवृत्ति भी अब करीब है. बाकी सारी जानकारी हाईकोर्ट से मिल सकती है, लेकिन मुझे इस संबंध में हाईकोर्ट से कोई सूचना नहीं मिली है."
मामले की शुरुआत कैसे हुई ?बता दें कि जून 2023 में मध्य प्रदेश सरकार ने छह महिला जजों को उनके "प्रशिक्षण काल के दौरान असंतोषजनक कार्य प्रदर्शन" के आधार पर बर्ख़ास्त कर दिया था, जिनमें अदिति शर्मा भी शामिल थीं.
सुप्रीम कोर्ट के इस कार्रवाई पर स्वतः संज्ञान लेने के बाद एमपी हाईकोर्ट ने 4 महिला जजों की सेवा दोबारा बहाल कर दी थी.
इसके बाद दो जजों अदिति शर्मा और सरिता चौधरी के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने बहाली का आदेश दिया था और मार्च 2025 में अदिति शर्मा को फिर से शहडोल में सिविल जज के पद पर बहाल किया गया.
अदिति शर्मा को बर्ख़ास्त किए जाने का मुख्य कारण उनका कार्यप्रदर्शन और उनके वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों (एसीआर) में उल्लेखित दो जांच और उनकी फाइनल रिपोर्ट थी.
अदिति शर्मा के ख़िलाफ़ हुई दोनों जांचों में तत्कालीन ज़िला जज राजेश कुमार गुप्ता ने जांच के नतीजों में 'ख़राब प्रदर्शन' के बारे में लिखा था.
सुप्रीम कोर्ट में क्या सुनवाई हुई थी?दरअसल मध्य प्रदेश में साल 2023 में छह महिला न्यायाधीशों की सेवा समाप्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर सुनवाई की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि यह कार्रवाई केवल प्रशासनिक नहीं थी, बल्कि दंडात्मक थी. अदालत ने स्पष्ट किया कि जिन वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों (एसीआर) के आधार पर इन महिला अधिकारियों को बर्ख़ास्त किया गया, वे या तो समय पर साझा नहीं की गईं या फिर उन पर सफ़ाई या जवाब आने के बाद भी उनके प्रतिकूल हिस्से को हटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने अपने फ़ैसले में लिखा था, "न्यायिक संस्थानों के भीतर भी न्याय होते हुए दिखना चाहिए, विशेषकर महिला न्यायाधीशों के मामलों में अधिक संवेदनशीलता आवश्यक है."
इन 6 जजों में से एक अदिति शर्मा की बर्ख़ास्तगी भी उनके 'ख़राब एसीआर' के आधार पर की गई थी. इस एसीआर में अदिति शर्मा के ख़िलाफ़ दो अलग-अलग जांचों में ख़राब प्रदर्शन का हवाला दिया गया था. इन दोनों ही जांचों में जांच अधिकारी हाल ही में हाईकोर्ट के जज नियुक्त किए गए राजेश गुप्ता ही थे.
अदालत ने यह भी कहा कि जिन रिपोर्टों में लगातार "ख़राब प्रदर्शन" का हवाला दिया गया, वे ख़ुद हाईकोर्ट की तरफ़ से पेश रिकॉर्ड से मेल नहीं खातीं. अदालत के अनुसार, इन रिपोर्टों में आंतरिक विरोधाभास था.
कोर्ट ने यह भी जोड़ा था कि अगर इन अधिकारियों के ख़िलाफ़ की गई शिकायतें ही सेवा समाप्ति का आधार थीं, तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 311 और संबंधित आचरण नियमों के तहत सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए था.
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से अदिति शर्मा के मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि उनके ख़िलाफ़ जो प्रतिकूल टिप्पणियाँ एसीआर में दर्ज की गईं, वे उस समय की उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियों की अनदेखी करके की गईं.
अदालत ने कहा कि परीक्षण अवधि के दौरान वह कोविड से संक्रमित हुईं, गर्भपात हुआ और उनके बड़े भाई को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का पता चला.
कोर्ट ने माना कि इन परिस्थितियों के बावजूद उनके काम की गुणवत्ता या स्वास्थ्य को पहले कभी सेवा में बाधा के रूप में नहीं देखा गया था.
2021 में अदिति की एसीआर को 'बहुत अच्छा' से घटाकर 'अच्छा' कर दिया गया था, सिर्फ लंबित मामलों और निपटारे के आधार पर. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि किसी न्यायाधीश के निपटारे के आँकड़े और लंबित मामलों का विश्लेषण उनके व्यक्तिगत जीवन और ज़मीनी परिस्थितियों से हटाकर नहीं किया जा सकता.
अदालत ने यह भी माना कि अदिति ने ये सभी परिस्थितियाँ रिपोर्ट में स्पष्ट की थीं, जिन्हें नजरअंदाज़ कर दिया गया.
कोर्ट ने कहा कि जब यह सब रिकॉर्ड में था, तब भी सेवा समाप्ति का निर्णय न केवल असंवेदनशील था, बल्कि 'न्याय व्यवस्था के भीतर ही न्याय न होते दिखने जैसा था'.
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अदिति शर्मा ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने इस्तीफ़ा देने से पहले "कम से कम 6 बार मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जज राजेश कुमार गुप्ता के ख़िलाफ़ लिखित शिकायत दर्ज की थी".
अपनी इन शिकायतों में उन्होंने जज राजेश कुमार गुप्ता पर ''पक्षपातपूर्ण जांच करने, निष्पक्ष तरीके से काम न करने और न्यायिक अधिकार का गलत इस्तेमाल'' करने का आरोप लगाया था.
अदिति शर्मा ने अपने इस्तीफ़े में न्यायिक सेवा पर अपने विश्वास की बात करते हुए कहा, "मैंने ख़ुद से कहा था कि अगर तुम ईमानदारी से काम करोगी, क़ानून का पालन करोगी, तो यह अदालत तुम्हारे साथ खड़ी होगी, ख़ासकर तब, जब तुम्हें इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत होगी"
उन्होंने अपने इस्तीफ़े में आगे कहा ,"लेकिन आज, मैं… विश्वासघात की पीड़ा के साथ लिख रही हूं. यह चोट किसी अपराधी या आरोपी से नहीं, बल्कि उसी व्यवस्था से मिली है जिसकी मैंने सेवा की शपथ ली थी."
अपने इस्तीफ़े में अदिति शर्मा ने यह भी कहा, "जिन्होंने मेरे उत्पीड़न को अंजाम दिया, उन्हें न सवालों का सामना करना पड़ा, न जांच हुई, न कोई स्पष्टीकरण मांगा गया…न्यायपालिका की बेटियों को यह क्या संदेश देता है? कि उन्हें अपमानित, कुचला और संस्थागत रूप से मिटाया जा सकता है"
अदिति शर्मा ने आगे कहा कि, "मैं कोई विशेषाधिकार नहीं माँग रही थी, मैं तो बस एक प्रक्रिया की मांग कर रही थी". साथ ही उनका कहना था कि वे अपने वकील से बात करके इस बारे में आगे कदम उठाएंगीं.
अदिति शर्मा के अलावा दो अन्य ऑफिसर्स ने भी राजेश कुमार गुप्ता के ख़िलाफ़ पहले शिकायतें की थी. बीबीसी संवाददाता ने दोनों ही शिकायतें पढ़ी हैं. हालांकि मध्यप्रदेश हाइकोर्ट द्वारा इस संबंध में किसी तरह की जांच का ज़िक्र कहीं नहीं मिला है.
दो अन्य जजों की तरफ़ से की गई शिकायत में राजेश गुप्ता पर सार्वजनिक रूप से "गालियां देते हुए अभद्र भाषा का प्रयोग" सहित न्यायिक अधिकारियों के परिवार के सदस्यों तथा विधि विभाग में पूर्व में पदस्थ रहे अधिकारियों के ख़िलाफ़ "असत्य, अनर्गल, अपमानजनक और मानहानिकारक कथन" का आरोप लगाया था.
अदिति शर्मा के राजेश कुमार गुप्ता को एमपी हाई कोर्ट जज बनाए जाने के ख़िलाफ़ विरोध पर डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियरी पर किताब लिखने वाले वकील प्रशांत रेड्डी टी ने बीबीसी को बताया, " उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के पास निचले लेवल की न्यायपालिका पर पूरा नियंत्रण होता है. ऊपरी अदालतों के न्यायाधीशों को निचली अदालतों के न्यायाधीशों की गोपनीय रिपोर्ट, ट्रांसफर और पोस्टिंग पर पूरा अधिकार होता है, और यह प्रक्रिया काफी अपारदर्शी तरीके से होती है. इसका असर डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियल ऑफ़िसर्स के आत्मविश्वास और स्वतंत्रता पर पड़ता है".
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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