वक़्फ़ संशोधन क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया कि सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल और वक़्फ़ बोर्ड में किसी ग़ैर मुसलमान की नियुक्ति नहीं की जाएगी.
साथ ही सरकार ने ये भी कहा कि मौजूदा वक़्फ़ की संपत्तियों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अभी किसी तरह का कोई स्थगन आदेश या स्टे ऑर्डर नहीं दिया है.
इस पूरे मामले में सरकार से सात दिनों के भीतर अपना जवाब देने के लिए कहा गया है. इस मामले में अगली सुनवाई अब 5 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी.
केंद्र सरकार की तरफ़ से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया कि वक़्फ़ संशोधन क़ानून 2025 के कुछ प्रावधानों पर फ़िलहाल अमल नहीं किया जाएगा.

चीफ़ जस्टिस खन्ना ने कहा, "सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सरकार सात दिनों के भीतर अपना जवाब देना चाहती है. उन्होंने ये भी आश्वासन दिया कि वक़्फ़ काउंसिल या बोर्ड में कोई भी नई नियुक्तियां नहीं की जाएंगी. अगले आदेश तक वक़्फ़, जिसमें वक़्फ़ बाय यूज़र भी शामिल है, जो पहले से ही वक़्फ़ के तहत रजिस्टर्ड हैं उनमें कोई भी बदलाव नहीं किया जाएगा. ना ही संबंधित कलेक्टर इनमें कोई बदलाव करेगा. हम ये बयान रिकॉर्ड में दर्ज करते हैं."
कल की सुनवाई में क्या हुआ था ?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार के अपने फैसले में संकेत दिया था कि वो इस क़ानून के कुछ प्रावधानों पर स्टे जारी कर सकता है.
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने इस मामले में कई टिप्पणियां की थीं.
बुधवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था क्या वो हिंदू समुदाय के धार्मिक ट्रस्ट में मुसलमान या ग़ैर हिंदू को जगह देने पर विचार कर रही है?
हालांकि केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने निवेदन किया कि इस मामले में कोई भी आदेश जारी करने से पहले उनका पक्ष भी सुन लिया जाए.
वक़्फ़ संशोधन क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पहले दिन बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. इस सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, राजीव धवन और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वरिष्ठ वकील पेश हुए थे
इस सुनवाई के दौरान वकीलों ने तर्क दिया कि वक़्फ़ संशोधन क़ानून के कई संशोधन धार्मिक मामलों के प्रबंधन के मौलिक अधिकारों पर असर डालते हैं.
साथ ही उन्होंने वक़्फ़ बाय यूज़र, सरकारी अफ़सर का ये तय करना कि कोई संपत्ति सरकारी है या नहीं और सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल और स्टेट वक़्फ़ बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों के शामिल करने वाले प्रावधानों को चुनौती दी.
वहीं केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस क़ानून का बचाव किया.
उन्होंने तर्क दिया कि इन सभी चिंताओं को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के साथ संसद में हुई बहस के दौरान भी उठाया गया था, जिस पर केंद्र सरकार ने विचार किया.

इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सी बातें कही हैं-
- मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा है कि वो इस मामले में कुछ अंतरिम आदेश पारित करने पर विचार कर रही है.
- पहला ये कि अदालत ने जो भी संपत्तियां वक़्फ़ घोषित की हैं, उन्हें डिनोटिफाइ नहीं किया जाएगा.
- उस प्रावधान पर भी रोक लगाने का विचार है जिसमें कहा गया है कि अगर किसी संपत्ति के सरकारी संपत्ति होने पर विवाद है, तो जब तक नामित अधिकारी विवाद का फ़ैसला नहीं कर लेता, तब तक उसे वक़्फ़ संपत्ति नहीं माना जा सकता.
- कोर्ट उस प्रावधान पर भी रोक लगाने पर विचार कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि वक़्फ़ काउंसिल और वक़्फ़ बोर्ड में दो सदस्य गैर-मुस्लिम (पदेन सदस्य के अलावा) होने चाहिए.
इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने इस क़ानून के पारित होने के बाद हुई हिंसा की भी निंदा की है. उन्होंने कहा है कि हिंसा होना 'बेहद चिंताजनक' है.
जस्टिस खन्ना ने कहा कि 'वे सोचते हैं कि सिस्टम पर दबाव बना सकते हैं.' इसके साथ ही उन्होंने कहा कि क़ानून के सकारात्मक बिंदुओं को ज़रूर बताया जाना चाहिए.

हाल ही में संसद से पारित हुए वक़्फ़ संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दस से अधिक याचिकाएं दायर की गई थीं. याचिकाकर्ताओं ने वक़्फ़ संसोधन क़ानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल खड़े किए हैं.
इनमें एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, एसोसिएशन फ़ॉर द प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स, समस्त केरल जमियतुल उलेमा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और आरजेडी नेता मनोज झा जैसे याचिकाकर्ता शामिल हैं.

बुधवार को इस मामले में एक याचिकाकर्ता और पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सुनवाई के बाद प्रतिक्रिया दी.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर कहा, "मुझे बहुत ख़ुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने आज वक़्फ़ क़ानून के तीन बहुत ही गंभीर पहलुओं पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा और सरकार से कुछ कठिन सवाल पूछे."
वहीं, इन याचिकाओं के दायर होने के बाद छह बीजेपी शासित राज्यों ने इस क़ानून की संवैधानिकता को समर्थन देने के लिए याचिकाएं दायर की हैं. इनमें हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम राज्य शामिल हैं.
इन सभी राज्यों ने अलग-अलग याचिकाएं दायर कर इस क़ानून के रद्द होने के बाद इसके पड़ने वाले क़ानूनी असर का हवाला दिया है.

वक़्फ़ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है, जिसे कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम को मानता है अल्लाह के नाम पर या धार्मिक मक़सद या परोपकार के मक़सद से दान करता है.
ये संपत्ति भलाई के मक़सद से समाज के लिए हो जाती है और अल्लाह के सिवाय कोई उसका मालिक नहीं होता और ना हो सकता है.
वक़्फ़ वेलफ़ेयर फ़ोरम के चेयरमैन जावेद अहमद कहते हैं, "वक़्फ़ एक अरबी शब्द है जिसके मायने होते हैं ठहरना. जब कोई संपत्ति अल्लाह के नाम से वक़्फ़ कर दी जाती है तो वो हमेशा-हमेशा के लिए अल्लाह के नाम पर हो जाती है. फिर उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है."
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी जनवरी 1998 में दिए अपने एक फ़ैसले में कहा था कि 'एक बार जो संपत्ति वक़्फ़ हो जाती है वो हमेशा वक़्फ़ ही रहती है.'
वक़्फ़ संपत्ति की ख़रीद-फ़रोख़्त नहीं की जा सकती है और ना ही इन्हें किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की तरफ़ से जारी आंकड़ों के मुताबिक़, वक़्फ़ बोर्ड के पास अभी पूरे भारत में लगभग 8.7 लाख संपत्तियां हैं, जो करीब 9.4 लाख एकड़ ज़मीन में फैली हुई हैं. इनकी कुल कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये बताई जाती है.
दुनिया में भारत के पास सबसे ज़्यादा वक़्फ़ संपत्तियां हैं. भारत में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज़्यादा ज़मीन वक़्फ़ बोर्ड के पास ही है.
नए प्रावधान के अनुसार, वही व्यक्ति दान कर सकता है जिसने लगातार पांच साल तक मुसलमान धर्म का पालन किया हो यानी मुस्लिम हो और दान की जा रही संपत्ति का मालिकाना हक़ रखता हो.
वक़्फ़ एक्ट में दो तरह की वक़्फ़ संपत्ति का ज़िक्र है. पहला वक़्फ़ अल्लाह के नाम पर होता है यानी, 'ऐसी मिल्कियत (संपत्ति) जिसे अल्लाह को समर्पित कर दिया गया है और जिसका कोई वारिसाना हक़ बाक़ी न बचा हो.'
दूसरा वक़्फ़- 'वक़्फ़ अलल औलाद है यानी ऐसी वक़्फ़ संपत्ति जिसकी देख-रेख वारिस करेंगे.'
इस दूसरे प्रकार के वक़्फ़ में नए क़ानून में प्रावधान किया गया है कि उसमें महिलाओं के विरासत का अधिकार ख़त्म नहीं होना चाहिए.
ऐसी दान की हुई संपत्ति एक बार सरकार के खाते में आ गई तो ज़िले का कलेक्टर उसे विधवा महिलाओं या बिना मां-बाप के बच्चों के कल्याण में इस्तेमाल कर सकेगा.
ऐसी संपत्ति या ज़मीन पर अगर पहले से ही सरकार काबिज़ हो और उस पर वक़्फ़ बोर्ड ने भी वक़्फ़ संपत्ति होने का दावा कर रखा हो तो नए बिल के अनुसार वक़्फ़ का दावा तब डीएम के विवेक पर निर्भर करेगा.
नए क़ानून के अनुसार, कलेक्टर सरकार के कब्ज़े में मौजूद वक़्फ़ के दावे वाली ऐसी ज़मीन के बारे में अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज सकता है.
कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद अगर उस संपत्ति को सरकारी संपत्ति मान लिया गया तो राजस्व रिकॉर्ड में वह हमेशा के लिए सरकारी संपत्ति के रूप में दर्ज हो जाएगी.
नए क़ानून में वक़्फ़ बोर्ड के सर्वे का अधिकार ख़त्म कर दिया गया है. क़ानून के प्रावधान के अनुसार, अब वक़्फ़ बोर्ड सर्वे करके यह नहीं बता सकेगा कि कोई संपत्ति वक़्फ़ की है या नहीं.
पिछले क़ानून में वक़्फ़ बोर्ड के सर्वे कमिश्नर के पास वक़्फ़ के दावे वाली संपत्तियों के सर्वे का अधिकार था लेकिन नए क़ानून में संशोधन के बाद सर्वे कमिश्नर से यह अधिकार लेकर उसे ज़िले के कलेक्टर को दे दिया गया है.
पिछले क़ानून में सेन्ट्रल वक़्फ़ काउंसिल के सभी सदस्यों का मुसलमान होना अनिवार्य था लेकिन नए क़ानून में दो ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों का प्रावधान भी जोड़ दिया गया है.
इसके साथ ही सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के मुस्लिम सदस्यों में भी दो महिला सदस्यों का होना अनिवार्य कर दिया गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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