बांग्लादेश की राजधानी ढाका के खिलखेत इलाक़े में रेलवे की सरकारी ज़मीन के आधे किलोमीटर के दायरे में चलाए गए अतिक्रमण विरोधी अभियान में एक अस्थाई मंदिर पर भी बुलडोज़र चला दिया गया.
स्थानीय व्यापारियों ने बताया कि रेलवे की पटरियों से सटी अस्थायी दुकानों के अलावा हाल ही में इसके आस-पास कई पक्के निर्माण भी किए गए थे. वहां कुछ राजनीतिक दलों ने अपने कार्यालय भी खोल दिए थे.
इसके अलावा दुर्गा पूजा के आयोजन के लिए बीते साल सितंबर में उस इलाके में एक अस्थायी पंडाल बनाया गया था. आयोजक उस पंडाल को अस्थायी मंदिर मानते हुए वहां धार्मिक आयोजन भी करने लगे थे.
बीते गुरुवार को यहां बने अस्थायी दुर्गा मंदिर को अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान तोड़ दिया गया.
बीते साल दुर्गा पूजा के समय इस पंडाल में धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए खिलखेत सार्वजनिक दुर्गा पूजा मंदिर समिति का गठन किया गया था. उसी साल यहां पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया था.
समिति का कहना है कि बिना नोटिस दिए 'मंदिर' को ढहा दिया गया. भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस पर चिंता जताते हुए बयान दिया है.
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बांग्लादेश की ओर से जारी बयान में लोगों से तथ्यों और वास्तविकता की जांच किए बिना प्रतिक्रिया नहीं देने का अनुरोध किया गया है.
लोगों का दावा है कि रेलवे के अतिक्रमण विरोधी अभियान में इस मंदिर के अलावा कई दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भी ढहा दिया गया है.
जिन लोगों की दुकानें ढहाई गई हैं उनमें से एक चाय विक्रेता मोहम्मद मसूद ने बीबीसी बांग्ला से कहा, "पहले से इस बारे में कोई सूचना नहीं दी गई थी. अचानक कुछ अधिकारी सुरक्षा बल के जवानों और बुलडोजर के साथ यहां पहुंचे और तत्काल तमाम सामान हटाने को कहने लगे."
इलाके के कई अन्य छोटे व्यापारियों ने बताया कि पहले से कोई सूचना दिए बिना अचानक चलाए गए इस अभियान की वजह से उनको काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
उनका कहना था, "समय की कमी से कई ज़रूरी चीजें नहीं हटा पाने की वजह से उनको आर्थिक रूप से नुकसान हुआ है."
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सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि पुलिस और रेलवे पुलिस की तैनाती में बुलडोजर से मंदिर को तोड़ा जा रहा है.
पता चला है कि बीती 24 जून यानी मंगलवार की रात को सैकड़ों स्थानीय लोगों के एक समूह ने मंदिर को वहां से हटाने की मांग में प्रदर्शन किया था. उन्होंने अगले दिन दोपहर 12 बजे तक मंदिर को हटाने की चेतावनी दी थी.
उसके बाद 26 जून को भारी तादाद में सुरक्षा बल के जवानों के साथ रेलवे के अधिकारी बुलडोजर के साथ मौके पर पहुंचे और कार्रवाई शुरू की.
उसके साथ ही वहां रेलवे की पटरी के किनारे बने बने तमाम अवैध निर्माण को भी ढहा दिया गया. इनमें पक्के निर्माण भी शामिल थे.
मंदिर समिति के सहायक महासचिव सजीब सरकार ने बीबीसी बांग्ला से कहा, "भारी तादाद में आने वाले पुलिस और रैपिड एक्शन बटालियन (रैब) के साथ ही सेना के जवानों ने बुलडोजर की मदद से मंदिर को तोड़ दिया."
हालांकि उन्होंने बताया कि रेलवे के अधिकारियों से अस्थायी पंडाल बनाने की लिखित अनुमति ली थी लेकिन मंदिर बनाने की कोई अनुमति नहीं थी.
समिति का दावा है कि उन्होंने रेलवे से अनुमति लेकर ही सरकारी जमीन पर अस्थायी पूजा पंडाल का निर्माण किया था. लेकिन कोई अग्रिम सूचना या नोटिस दिए बिना ही उसे ढहा दिया गया है.
उनका कहना है, "मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को तोड़ दिया गया है. पहले से सूचना मिलने की स्थिति में उनको वहां से हटाया जा सकता था. देवी की प्रतिमा आखिर क्यों तोड़ दी गई?"
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रेलवे मंत्रालय के सलाहकार फौजुल कबीर ख़ान ने कहा, "आयोजकों को बीते साल इस शर्त पर आयोजन की अनुमति दी गई थी कि वो पूजा खत्म होने के बाद पंडाल को वहां से हटा लेंगे. लेकिन उसके बाद बार-बार कहने के बावजूद उन्होंने पंडाल को वहां से हटाने की कोई पहल नहीं की."
लेकिन सजीब सरकार का दावा है कि समिति ने वहां मंदिर बनाया ही नहीं था. बारिश के पानी को पंडाल के भीतर घुसने से रोकने के लिए कुछ ईंटें जोड़ कर एक अस्थायी अवरोध तैयार किया गया था.
उनका कहना था, "कट्टरपंथियों के एक गुट ने धावा बोलकर मंदिर की दीवार तोड़ने की धमकी देते हुए कहा था कि अगले दिन उसे ढहा दिया जाएगा."
रेलवे के महानिदेशक मोहम्मद अफज़ल हुसैन ने दावा किया है कि मंदिर प्रबंधन को पहले से ही मौखिक तौर पर इस अभियान की सूचना दे दी गई थी.
अफज़ल हुसैन ने बीबीसी बांग्ला से कहा, "वैध निर्माण को ढहाने से पहले लिखित नोटिस देने का नियम है. लेकिन वहां तो कुछ भी वैध नहीं था. यह तमाम निर्माण अवैध थे. इसलिए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है."
वो बताते हैं कि रेलवे को सूचना मिली थी कि शुक्रवार को भीड़ वहां बवाल कर सकती है. इसलिए वहां कोई अप्रिय स्थिति पैदा होने से पहले ही तमाम अवैध निर्माण ढहा दिए गए हैं.
बांग्लादेश पूजा आयोजन समिति औऱ बांग्लादेश हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन एकता परिषद ने ढाका की इस घटना और हाल में लालमोनिरहट समेत विभिन्न स्थानों पर सांप्रदायिक घटनाओं का ज़िक्र करते हुए सरकार से इस मामले में दख़ल देने की अपील की है.
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भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने खिलखेत की घटना पर कहा, "बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कट्टरपंथियों की मांग के बाद सुरक्षा मुहैया कराने की बजाय मंदिर को ढहाने की अनुमति दी है. हिंदुओं की संपत्ति और धार्मिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी वहां की अंतरिम सरकार की है."
दूसरी ओर बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "बांग्लादेश सभी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. धार्मिक स्थलों की सुरक्षा भी इसी प्रतिबद्धता का हिस्सा है. बांग्लादेश ने सहिष्णुता और समावेशिता की उस परंपरा को कायम रखा है जहां हर नागरिक स्वतंत्र रूप से रह सकता है. वह चाहे किसी भी धर्म या जाति का हो."
बयान के अनुसार, "हम तमाम लोगों से अनुरोध करते हैं कि वो तथ्यों और वास्तविकता की पुष्टि किए बिना इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया न दें."
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में रेल मंत्रालय के सलाहकार मोहम्मद फौजुल कबीर ख़ान ने एक लिखित बयान में कहा है, "मीडिया में छपने वाली ख़बरों के जरिए राजधानी के खिलखेत क्षेत्र में रेलवे की ज़मीन पर बने अस्थायी मंडप को हटाने के मुद्दे पर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है."
"बीते साल दुर्गा पूजा के दौरान खिलखेत में रेलवे की ज़मीन पर कुछ लोगों ने बिना किसी पूर्व अनुमति के पूजा पंडाल बना लिया था. वहां इसी शर्त पर पूजा के आयोजन की अनुमति दी गई थी कि पूजा ख़त्म होने के बाद पंडाल को वहां से हटा दिया जाएगा."
कबीर ख़ान ने कहा है कि आयोजकों ने दुर्गा पूजा खत्म होने के बाद पंडाल को हटाने का भरोसा दिया था. लेकिन उसके बाद बार-बार कहने के बावजूद उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसके उलट उन्होंने वहां एक स्थायी मंदिर बनाने की पहल कर दी.
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इलाके में अवैध रूप से बनी सैकड़ों दुकानें, राजनीतिक दलों के कार्यालय और अस्थायी बाजार भी हटा दिए गए हैं. उनका यह भी दावा है कि अस्थायी मंदिर की मूर्ति को पूरे सम्मान के साथ बालू नदी में विसर्जित कर दिया गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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