ईरान और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए के बीच तनातनी लगातार बढ़ रही है.
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागच़ी ने भरोसे की कमी और तनाव का हवाला देते हुए इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के डायरेक्टर जनरल रफ़ाएल ग्रोसी की संभावित यात्रा से साफ़ इनकार कर दिया.
अरागच़ी ने यह भी साफ़ किया कि ईरान एक नया क़ानून लागू करने जा रहा है, जिसमें ख़ास शर्तें पूरी होने तक आईएईए से सहयोग रोकने की बात है.
उधर, ईरान में आईएईए प्रमुख के ख़िलाफ़ नाराज़गी को देखते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने इसकी निंदा की है और आईएईए के काम का खुलकर समर्थन किया.
आईएईए के लिए ईरान का यह सख़्त रुख़ उसके परमाणु ठिकानों पर हुए इसराइल और अमेरिका के हमलों की प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिससे आगे परमाणु कार्यक्रमों से जुड़ी निगरानी और ज़्यादा पेचीदा हो सकती है.
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आईएईए प्रमुख रफ़ाएल ग्रोसी ने 24 जून को ईरान और इसराइल के बीच युद्धविराम की घोषणा के बाद अब्बास अरागच़ी से मिलने और आईएईए-ईरान की बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था.
लेकिन ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागच़ी ने 26 जून को सरकारी चैनल आईआरआईएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा, "इस वक्त हमारा बिल्कुल भी कोई इरादा नहीं है कि हम रफ़ाएल ग्रोसी को बुलाएं."
उन्होंने कहा, "वह हमारे परमाणु ठिकानों पर अमेरिका और इसराइल के हमलों से हुए नुक़सान का आकलन करना चाहते हैं."
अरागच़ी ने आरोप लगाया कि आईएईए प्रमुख की हाल की कुछ कार्रवाइयों, ख़ासकर वह रिपोर्ट जिसके आधार पर आईएईए बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स ने ईरान के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया, मौजूदा गतिरोध की बड़ी वजह बनी.
उन्होंने कहा, "ग्रोसी ने अपनी रिपोर्ट में ईमानदारी से काम नहीं लिया. जब हमारे परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ, तब एजेंसी उस हमले की निंदा तक नहीं कर पाई."
अरागच़ी ने यह भी बताया कि ईरान ने आईएईए के साथ सहयोग रोकने के लिए एक नया क़ानून पारित किया है. "इस मामले पर एक विधेयक संसद से पास हुआ, गार्डियन काउंसिल से मंज़ूरी मिली और अब यह क़ानून बन चुका है, जिसे हमें मानना ही पड़ेगा."
उन्होंने साफ़ किया कि यह क़ानून पूरी तरह से सहयोग के दरवाज़े बंद नहीं करता और भविष्य में यह ईरान की शीर्ष सुरक्षा संस्था सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के फ़ैसलों पर निर्भर करेगा.
अमेरिका की कड़ी प्रतिक्रियाउधर, अमेरिका ने ईरान में आईएईए प्रमुख के ख़िलाफ़ उठ रही आवाज़ों पर सख़्त रुख़ अपनाया है.
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने एक एक्स पोस्ट में कहा, "ईरान में आईएईए के महानिदेशक रफ़ाएल ग्रोसी की गिरफ़्तारी और फांसी की मांगें अस्वीकार्य हैं और इनकी निंदा की जानी चाहिए. हम ईरान में आईएईए के अहम जांच और निगरानी काम का समर्थन करते हैं और महानिदेशक और आईएईए की मेहनत और पेशेवर रवैये की सराहना करते हैं. हम ईरान से कहते हैं कि वह आईएईए के कर्मचारियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखे."
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अरागच़ी ने 2015 के लगभग निष्क्रिय हो चुके ईरान परमाणु समझौते जेसीपीओए में शामिल यूरोपीय देशों फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन को भी कड़े शब्दों में आगाह किया.
उन्होंने कहा कि वे उस तथाकथित 'स्नैपबैक मैकेनिज़्म' को सक्रिय करने की कोशिश न करें. अरागच़ी ने कहा, "मैंने उन्हें साफ़-साफ़ बता दिया कि ट्रिगर मैकेनिज़्म का इस्तेमाल करना उनकी सबसे बड़ी ऐतिहासिक ग़लती होगी, क्योंकि ऐसा करके वे वास्तव में ईरानी परमाणु मुद्दे में अपनी भूमिका हमेशा के लिए ख़त्म कर लेंगे."
स्नैपबैक मैकेनिज़्म दरअसल वह प्रावधान है जिसके तहत अगर यह मान लिया जाए कि ईरान ने परमाणु समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया है, तो 2015 से पहले जो संयुक्त राष्ट्र के सभी कड़े प्रतिबंध थे, वे अपने-आप फिर से लागू हो जाते हैं.
आईएईए का इतिहास और ईरान में इसकी भूमिकाइंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी आईएईए संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है, जिसे दुनिया में "एटम्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट" के नाम से भी जाना जाता है. यह परमाणु क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का मुख्य केंद्र है, जो अपने सदस्य देशों और दुनियाभर के कई साझेदारों के साथ मिलकर परमाणु तकनीकों के सुरक्षित, भरोसेमंद और शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देती है.
आईएईए की स्थापना 29 जुलाई 1957 को हुई थी. भारत भी तभी से इसका सदस्य है. इस संस्था की कल्पना अमेरिकी राष्ट्रपति आइज़नहावर के 8 दिसंबर 1953 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए "एटम्स फॉर पीस" संबोधन से हुई थी.
उत्तर कोरिया ने 1974 में इसकी सदस्यता ली थी, लेकिन 1994 में इससे अलग हो गया. फिलहाल आईएईए में 180 देश सदस्य हैं.
ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी आईएईए क़रीब दो दशकों से ज़्यादा समय से कर रहा है.
2015 में हुए समझौते के तहत ईरान ने यूरेनियम संवर्धन को सीमित रखने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण बढ़ाने पर सहमति दी थी, बदले में उसे प्रतिबंधों में राहत मिली थी.
लेकिन 2018 में अमेरिका के बाहर होने और नए प्रतिबंधों के बाद ईरान ने समझौते की शर्तों का पालन कम कर दिया. उसने यूरेनियम संवर्धन की सीमा बढ़ा दी, आईएईए के निरीक्षण सीमित कर दिए और कुछ स्थलों पर निगरानी कैमरे भी बंद कर दिए.
12 जून को आईएईए के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने प्रस्ताव पारित कर ईरान पर आरोप लगाया कि उसने अपने प्रमुख परमाणु संयंत्रों तक पहुंच की अनुमति न देकर अप्रसार संधि का उल्लंघन किया.
साथ ही अघोषित स्थलों पर यूरेनियम मिलने के मामलों में भी एजेंसी को पर्याप्त जवाब नहीं दिए.
ईरान ने इस प्रस्ताव को राजनीति से प्रेरित बताया. इसके ठीक एक दिन बाद इसराइल ने ईरान की कई परमाणु साइटों पर हमले शुरू कर दिए, जिससे मौजूदा तनाव और बढ़ गया.
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