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हार्वर्ड में ट्रंप के फ़ैसले से परेशान भारत- पाकिस्तान के स्टूडेंट क्या बोल रहे हैं

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Shreya Mishra Reddy श्रेया मिश्रा रेड्डी बताती हैं कि हार्वर्ड कई भारतीयों की पहली पसंद है.

जब श्रेया मिश्रा रेड्डी को साल 2023 में अमेरिका की विख्यात हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाख़िला मिला था तब उनके घर में जश्न का माहौल था. माता-पिता बहुत ख़ुश हुए थे.

श्रेया रेड्डी बीबीसी को बताती हैं कि 'हार्वर्ड एक ऐसी यूनिवर्सिटी है, जिसमें हर भारतीय स्टूडेंट दाख़िला लेना चाहता है.'

श्रेया रेड्डी की ग्रेजुएशन लगभग पूरी होने वाली थी. लेकिन अब उन्हें और उनके परिवार को बुरी ख़बर सुनने को मिली.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय छात्र-छात्राओं को दाख़िला देने का अधिकार रद्द कर दिया है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने ट्रंप प्रशासन के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया है. बॉस्टन में दायर मुक़दमे में यूनिवर्सिटी ने प्रशासन की कार्रवाई को क़ानून का 'स्पष्ट उल्लंघन' बताया.

ट्रंप प्रशासन के अनुसार, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी 'क़ानून का पालन करने में नाकाम' रही है.

श्रेया रेड्डी कहती हैं, "मेरे परिवार के लिए ये सब समझना बहुत मुश्किल है. वो अब भी इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं."

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image BBC हज़ारों छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में image Getty Images हर साल दुनिया भर से हज़ारों छात्र-छात्राएं हार्वर्ड में पढ़ने आते हैं.

श्रेया रेड्डी हार्वर्ड में लगभग 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्र-छात्राओं में से एक हैं. हार्वर्ड में 27 फ़ीसदी स्टूडेंट विदेश से आए हैं. ये विदेशी स्टूडेंट यूनिवर्सिटी की कमाई का एक अहम स्रोत हैं. इस संख्या में एक तिहाई छात्र चीन से हैं.

श्रेया रेड्डी जैसे 700 से अधिक छात्र-छात्राएं भारतीय हैं. ये सभी स्टूडेंट अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

हार्वर्ड ने अमेरिकी सरकार के इस क़दम को 'ग़ैर-क़ानूनी' बताया है. ट्रंप प्रशासन के इस फ़ैसले को अब क़ानूनी चुनौती का सामना करना है.

लेकिन इस बीच छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में लटक गया है. इनमें चाहे गर्मियों में दाख़िला लेने के लिए इंतज़ार करने वाले हों या इस वक़्त कॉलेज में पढ़ाई करने वाले.

जो इस वक़्त पढ़ रहे हैं उनकी नौकरियां वीज़ा मिलने पर टिकी हुई हैं.

हार्वर्ड में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को अमेरिका में रहने और अपना वीज़ा बरकरार रखने के लिए दूसरे अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना पड़ेगा.

श्रेया रेड्डी कहती हैं, "मुझे उम्मीद है कि हार्वर्ड हमारा साथ देगा और कोई समाधान निकाला जा सकेगा."

विश्वविद्यालय ने कहा है कि 'वह अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों और विद्वानों की मेजबानी करने की क्षमता को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. ये लोग 140 से अधिक देशों से आते हैं. ये सभी अमेरिका और यूनिवर्सिटी को अहम योगदान देते हैं.'

अंतरराष्ट्रीय छात्र-छात्राओं पर असर image Getty Images ट्रंप प्रशासन अमेरिकी कॉलेजों में फ़लस्तीन के समर्थन में हुए प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ क़दम उठाता रहा है.

हार्वर्ड के ख़िलाफ़ उठाए गए इस क़दम का अमेरिका में रहने वाले लगभग दस लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र-छात्राओं पर बहुत बड़ा असर पड़ेगा.

अमेरिका के जिन शिक्षण संस्थानों में बड़े पैमाने पर फ़लस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हुए हैं, उनके ख़िलाफ़ ट्रंप प्रशासन ने कड़ा रुख़ अपनाया है. ऐसे दर्जनों संस्थानों को जांच का सामना करना पड़ रहा है.

अमेरिकी सरकार इन संस्थानों की मान्यता प्रक्रिया में सुधार करने और उनके संचालन के तरीके़ को नया स्वरूप देने की कोशिश कर रही है.

व्हाइट हाउस ने पहली बार अप्रैल में हार्वर्ड में विदेशी छात्रों के प्रवेश पर रोक लगाने की धमकी दी थी. उस समय हार्वर्ड ने अपनी नियुक्ति, दाख़िले और शिक्षण पद्धतियों में बदलाव करने से इनकार कर दिया था.

इसके बाद सरकार ने संघीय अनुदान में से लगभग तीन बिलियन डॉलर की राशि पर रोक लगा दी थी. हार्वर्ड ने अदालत में इस रोक को चुनौती दी है.

अमेरिका में आंतरिक सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार विभाग, होमलैंड सिक्युरिटी की मंत्री क्रिस्टी नोएम ने कहा है कि हार्वर्ड में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के दाख़िले पर रोक 'यहूदी विरोध' और 'हिंसा को बढ़ावा' देने की वजह से लगाई जा रही है.

एक तिहाई विदेशी स्टूडेंट चीन से image BBC पाकिस्तान से हार्वर्ड पढ़ने आए अब्दुल्लाह शाहिद सियाल कहते हैं कि हार्वर्ड में दाख़िला उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी

ग्रेजुएशन के दूसरे साल में पढ़ रहीं चीनी छात्रा कैट झी ट्रंप प्रशासन के फ़ैसले से स्तब्ध हैं.

कैट झी ने बीबीसी को बताया, "मैं प्रतिबंध लगाने वाली धमकी को लगभग भूल ही गई थी और फिर गुरुवार को वाकई में इसकी घोषणा हो गई."

लेकिन कैट ने कहा कि वो पहले ही किसी भी हालात से निपटने की तैयारी कर रही थीं. उन्होंने पिछले कुछ सप्ताह अमेरिका में रहने के बारे में पेशेवर सलाह लेने में बिताए हैं.

उन्हें इस बारे में जो भी सलाह मिली है वो काफ़ी महंगी और जटिल है.

ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि अगर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी इन छात्र-छात्राओं को रखना चाहती है तो उसे कुछ शर्तों का पालन करना होगा. इनमें बीते पांच वर्षों में बाहर से आए सभी स्टूडेंट के रिकॉर्ड्स साझा करना शामिल है.

होमलैंड सिक्युरिटी की मंत्री नोएम ने हार्वर्ड से कैंपस में गैर-आप्रवासी छात्र-छात्राओं की 'अवैध' और 'ख़तरनाक या हिंसक' गतिविधियों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, वीडियो या ऑडियो सौंपने की भी मांग की है.

ट्रंप प्रशासन ने चीन को भी निशाना बनाया. नोएम ने अपने बयान में हार्वर्ड पर 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समन्वय' करने का आरोप लगाया.

चीन ने शुक्रवार को अमेरिका पर शिक्षा के 'राजनीतिकरण' करने का आरोप लगाया.

चीन ने कहा कि इस क़दम से अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुक़सान होगा. चीन ने अमेरिका से इस प्रतिबंद को जल्द से जल्द हटाने की भी मांग की है.

स्टूडेंट एक्टिविस्ट पर निगाहें image Jiang Fangzhou जियांग फांगझोउ हार्वर्ड कैनेडी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं.

पाकिस्तान के 20 वर्षीय अब्दुल्ला शाहिद सियाल हार्वर्ड में पढ़ते हैं और वे एक मुखर छात्र कार्यकर्ता हैं.

सियाल ने बीबीसी को बताया, "हम ये सब झेलने के लिए यहाँ नहीं आए थे."

साल 2023 में पाकिस्तान से दो ही छात्र हार्वर्ड आए थे. सियाल उन्हीं में से एक हैं. वे गणित और अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहे हैं.

अपने परिवार से विदेश में पढ़ने वाले वह पहले व्यक्ति हैं. सियाल कहते हैं कि हार्वर्ड में दाख़िला मिलना उनके लिए एक 'बहुत बड़ा' क्षण था.

सियाल मौजूदा स्थिति को "हास्यास्पद और अमानवीय" बताते हैं.

श्रेया रेड्डी और सियाल दोनों ने कहा कि विदेशी स्टूडेंट अमेरिकी कॉलेजों में इसलिए आते हैं क्योंकि यहां उनका बढ़िया स्वागत होता है और अमेरिका में उन्हें बहुत सारे अवसर मिलते हैं.

श्रेया रेड्डी कहती हैं, "आप अलग-अलग संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों से आए लोगों से बहुत कुछ सीखते हैं. सभी लोग इससे मिली सीख की क़ीमत जानते हैं."

लेकिन सियाल कहते हैं कि अमेरिकी कॉलेजों में विदेशी छात्रों को लेकर अब पुराना माहौल नहीं रहा. ट्रंप प्रशासन ने सैकड़ों छात्र-छात्राओं का वीज़ा रद्द किया और कई कॉलेजों से गिरफ़्तारियां भी हुई हैं.

उनके मुताबिक़, अब अंतरराष्ट्रीय छात्र-छात्राओं में डर और अनिश्चितता का माहौल है.

हार्वर्ड में दाख़िले पर रोक ने हालात को और बदतर बना दिया है. एक दक्षिण कोरियाई छात्रा ने बताया कि वो गर्मियों की छुट्टियों में घर नहीं जाएंगी क्योंकि उन्हें डर है कि उन्हें वापस अमेरिका में नहीं आने दिया जाएगा.

वह अपना नाम उजागर नहीं करना चाहती थीं क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उनके अमेरिका में रहने की संभावनाएँ प्रभावित हो सकती हैं.

अब तक वो अपने दोस्तों और परिवार से मिलने का इंतज़ार कर रही थीं लेकिन अब सब बदल गया है.

हार्वर्ड केनेडी स्कूल में लोक प्रशासन की पढ़ाई कर रहे जियांग फांगझोउ का कहना है कि विदेशी छात्रों में चिंता स्पष्ट है.

जियांग कहते हैं, "हमें तुरंत यहां से चले जाना पड़ सकता है. पर यहां हमारा सब कुछ है. आप रातों-रात सब कुछ छोड़कर भाग नहीं सकते."

30 वर्षीय जियांग न्यूजीलैंड के नागरिक हैं. उनका कहना है कि यह प्रतिबंध सिर्फ वर्तमान छात्रों को ही प्रभावित नहीं करेगा.

जियांग ने बताया, "इस साल आने वाले लोगों के बारे में सोचिए. इन लोगों ने तो पहले ही बाक़ी कॉलेजों से मिलने वाले प्रस्तावों ठुकरा दिए होंगे. उन्होंने हार्वर्ड के इर्द-गिर्द अपने जीवन की योजना बना ली थी. वे अब पूरी तरह फंस गए हैं."

अतिरिक्त रिपोर्टिंग - मेंगचेन झांग

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