
एक नौजवान जिसकी उम्र महज़ 27 साल थी और जिसे भारत की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज़ में से एक जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में दाख़िला लिए महज़ कुछ महीने ही गुज़रे थे, वो एक रोज़ लापता हो गया.
ये गुमशुदगी एक ऐसी पहेली बनकर रह गई, जिसे देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई भी नहीं सुलझा सकी.
नजीब अहमद को गुमशुदा हुए क़रीब नौ साल गुज़र चुके हैं. वो जेएनयू में एमएससी बॉयोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रहे थे और उन्हें आख़िरी बार 15 अक्तूबर, 2016 को यूनिवर्सिटी कैंपस में देखा गया था.
इसके बाद दिल्ली पुलिस से लेकर सीबीआई तक ने उनकी तलाश की. मामला कोर्ट-कचहरी तक भी पहुंचा पर नजीब का कहीं से कोई सुराग नहीं मिल सका.
हालात ऐसे हैं कि बीती 30 जून को दिल्ली की राउज़ एवेन्यू अदालत ने सीबीआई की केस बंद करने वाली रिपोर्ट को मंज़ूरी दे दी है. कोर्ट ने माना है कि जांच एजेंसी ने हर पहलू की जांच की लेकिन नजीब से जुड़ी कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिल सकी.
इसके बावजूद दिल्ली से तक़रीबन 250 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर में रह रहीं नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस की उम्मीदें अब भी बरकरार हैं. उन्हें भरोसा है कि उनका बेटा ज़रूर आएगा.
''मुझे यक़ीन है, वो है. वो जहां भी है, ठीक है और वो एक दिन ज़रूर आएगा.''
नजीब फ़ातिमा और नफ़ीस अहमद की पहली संतान थे. भाई-बहन में सबसे बड़े और पढ़ाई के बेहद शौक़ीन.
फ़ातिमा याद करती हैं, ''मैंने ही उसका नाम नजीब रखा था. नजीब यानी सीधा-साधा, भला मानस, मां-बाप का फ़रमाबरदार. उसके नाम और स्वभाव में कोई फ़र्क नहीं था. मेरी हर बात उसके लिए पत्थर की लकीर थी. कहता था, मेरी अम्मी ही मेरी दुनिया हैं. मेरी अम्मी ही मेरी जन्नत. मेरे पैरों पर लिपट जाता था.''
''वो सब चीज़ें जब याद करती हूं तो बस मेरा दिल हिल जाता है. मैं बस इंतज़ार कर रही हूं कि मेरी आंखें बंद होने से पहले वो आ जाए, जहां भी है. थक गई हूं मैं अब उसका इंतज़ार करते-करते.''

15 अक्तूबर 2016 की घटना ने फ़ातिमा नफ़ीस की ज़िंदगी को पूरी तरह से बदलकर रख दिया.
वो महीनों, सालों पुलिस थाने और अदालतों के चक्कर काटती रहीं. सड़कों पर पुलिस की लाठियां खाने से लेकर हिरासत में रहने तक, उन्होंने हर वो ज़रिया अपनाया जिससे नजीब के केस को ज़िंदा रखा जा सके.
नजीब के पिता नफ़ीस अहमद कहते हैं, ''इन्होंने बहुत मेहनत की है, जान तोड़कर. रात हो या दिन हो बच्चों के लिए अपनी ज़िंदगी वक़्फ़ कर दी. फिर ये है कि बच्चा हमारा नहीं है हमारे पास. कितनी तकलीफ़ है, कितनी परेशानी है...केवल हम ही जानते हैं. कभी-कभी मैं सोचता हूं कि बिना किसी को बताए अकेला ही निकल जाऊं और जहां-जहां तक मेरी हिम्मत है, वहां-वहां तक नजीब को ढूंढता फिरूं, शहर-शहर.''
'लापरवाही'नजीब के पिता नफ़ीस एक कारपेंटर हैं. साल 2009 में काम के दौरान मुंबई की एक इमारत से गिरने के बाद उन्हें गंभीर चोट आई और वे कई महीनों तक बिस्तर पर रहे.
इस हादसे के बाद उनकी शारीरिक क्षमता पूरी तरह लौट नहीं सकी. वे लगातार अस्वस्थ रहने लगे और बाद में उन्हें दिल से जुड़ी गंभीर समस्याओं ने भी घेर लिया.
दूसरी तरफ़ बीते कुछ सालों में नजीब की मां की सेहत में भी तेज़ी से गिरावट आई है.
उनके छोटे बेटे हसीब के मुताबिक़, उनकी मां की याददाश्त कमज़ोर हो रही है और वो चीज़ें भूलने लगी हैं.
हसीब कहते हैं, ''मैं इन्हें दिल्ली लेकर जाना चाहता हूं. ताकि वहां मेरी नौकरी भी हो जाए और ये अकेले भी न रहें. लेकिन अब इनकी वहां जाने की इच्छा नहीं होती. नजीब से जुड़ी सारी यादें उन्हें तकलीफ़ देती हैं.''
हालांकि कोर्ट के आए आदेश के बाद फ़ातिमा ने एक बार फिर दिल्ली जाने का फ़ैसला किया है. उनका कहना है कि वह सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट के ख़िलाफ़ दिल्ली हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का रुख़ करेंगी.

उनका आरोप है कि दिल्ली पुलिस और सीबीआई ने जांच में लापरवाही बरती.
वो नाराज़गी भरे लहजे में कहती हैं, ''अगर कोई मुसलमान उसमें न होता तो क्या करते ये लोग? नजीब न होता कोई रमेश होता और उसे मारा होता तो क्या तब भी ऐसे ही छोड़ देते ? उसके घर ढहा देते, बुलडोज़र चला देते, क्या-क्या नहीं करते. जिन्होंने मेरे बेटे को मारा, उसको जान से मारने की धमकी दी, उन पर क्यों नहीं सख़्ती की गई? क्यों नहीं कभी उन्हें हिरासत में लिया गया?''
''देश की इतनी बड़ी पुलिस, दिल्ली क्राइम ब्रांच और सीबीआई.. इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट को ढूंढने में नाकाम रहे. क्या संदेश जाता है विदेशों में, कि कैसी है वहां की पुलिस, क्या है वहां की सीबीआई, सिर्फ़ छापे मारने के लिए है?''
नजीब के परिवार का आरोप है कि पुलिस और सीबीआई ने जांच के दौरान केवल उनके लोगों को परेशान किया. उनके रिश्तेदारों और जान-पहचान के लोगों से पूछताछ की.
जबकि एबीवीपी के जिन छात्रों के ख़िलाफ़ उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई थी, उन्हें केवल बचाने की कोशिश होती रही.
वहीं सीबीआई ने फ़ातिमा नफ़ीस की विरोध याचिका के जवाब में कहा कि जांच के दौरान उन्होंने नजीब को ढूंढने की हर मुमकिन कोशिश की. इसके बावजूद उनकी मौजूदगी का कोई पता नहीं चल सका.
क्या था पूरा मामला?दरअसल, 14 अक्तबूर, 2016 की रात को नजीब जेएनयू के माही-मांडवी हॉस्टल के अपने कमरे में मौजूद थे, जब उनके और एबीवीपी के कुछ छात्रों के बीच कथित रूप से हिंसक झड़प हो गई.
नजीब के परिवार का आरोप है कि इस दौरान नजीब को गंभीर चोटें आईं और उनके ख़िलाफ़ इस्लाम विरोधी टिप्पणियां भी की गईं. उस दौरान मौजूद छात्रों के हवाले से नजीब की मां ने दावा किया कि नजीब को जान से मारने और ग़ायब कर देने जैसी धमकियां भी दी गईं.
दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत ने कहा कि इस आरोप को गवाहों के बयान से बल मिलता है.
नजीब की मां के मुताबिक़ नजीब ने उन्हें देर रात छात्रों के साथ हुई हाथापाई की जानकारी दी थी, जिसके बाद वह तड़के ही बदायूं से दिल्ली के लिए निकल गईं. लेकिन जब तक वह पहुंचती नजीब गायब हो चुका था.
नजीब का फ़ोन और लैपटॉप कमरे में ही मौजूद थे.
इसी दिन, उनकी मां फ़ातिमा नफ़ीस ने दिल्ली के वसंत कुंज थाने में नजीब के लापता होने की शिकायत दर्ज करवाई.
उनका आरोप है कि पुलिस ने उन्हें एफ़आईआर में नजीब के साथ कथित तौर पर मारपीट करने वाले छात्रों का नाम न देने की सलाह दी थी और कहा था कि अगर वो ऐसा करती हैं, तो पुलिस 24 घंटे के भीतर ही उनका बेटा उन्हें लौटा देगी.
लेकिन जब नजीब नहीं लौटा तो उन्होंने पुलिस से एफ़आईआर में नाम जोड़ने की मांग की, पर तब तक चीज़ें आगे बढ़ चुकी थीं.
उधर यूनिवर्सिटी ने अपने स्तर पर भी एक आंतरिक जांच शुरू कर दी थी. हॉस्टल वार्डन और छात्र गवाहों के बयान के आधार पर नौ छात्रों की पहचान हुई, जिनमें एबीवीपी से जुड़े छात्र भी थे.
इस छात्रों से दिल्ली पुलिस ने पूछताछ की, पर कुछ भी ठोस नहीं निकला.
फ़ातिमा नफ़ीस ने दिल्ली पुलिस की तहक़ीक़ात को सही नहीं ठहराते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख़ किया. जिसके बाद मई, 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की जांच पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दी.
सीबीआई ने शुरू की जांचडेढ़ साल से ज़्यादा वक़्त तक चली जांच के बाद सीबीआई ने अक्तूबर 2018 को अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट दिल्ली की निचली अदालत में जमा की.
रिपोर्ट में एजेंसी ने कहा कि उन्होंने नजीब को ढूंढ़ने की सारी कोशिशें की, लेकिन वे उसका पता नहीं लगा पाए. इसलिए केस को बंद कर देना चाहिए.
इस रिपोर्ट के ख़िलाफ़ फ़रवरी 2020 में फ़ातिमा नफ़ीस ने एक विरोध याचिका, या प्रोटेस्ट पेटिशन, दर्ज की.
सीबीआई की जांच पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कई तर्क दिए. उनका कहना था कि सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट में जेएनयू हॉस्टल के एक वार्डन के बयान झूठे हैं और जांच को ग़लत दिशा में ले जाता है.
इस बयान में दावा किया गया था कि नजीब ख़ुद जेएनयू हॉस्टल से क़रीब सुबह 11:30 बजे ऑटो से बाहर गए थे.
वार्डन के बयान के विपरीत नजीब के रूममेट मोहम्मद क़ासिम ने कहा था कि 11-11:30 बजे के बीच नजीब अपने हॉस्टल के कमरे में ही मौजूद थे.
साथ ही उन्होंने कहा कि सीबीआई ऐसे किसी ऑटो चालक को ढूंढने में सफल नहीं रही, जिसके ऑटो पर कथित तौर पर सवार होकर 15 अक्तूबर की तारीख़ नजीब जेएनयू से निकले थे.
दिल्ली पुलिस ने अपनी जांच के दौरान एक ऑटो चालक का बयान दर्ज किया था जिसका कहना था कि नजीब उनके ऑटो में जेएनयू से निकले थे.
हालांकि खबरों के मुताबिक सीबीआई का कहना था कि जब उन्होंने उस ऑटो चालक से पूछताछ की तो उन्होंने सीबीआई को कहा कि उन्हें ये बयान देने के लिए मजबूर किया गया था.
अपनी याचिका में उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि एबीवीपी से जुड़े जिन छात्रों पर कथित रूप से मारपीट और धमकी देने का आरोप था, उन्हें कभी गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया.
याचिका के मुताबिक़, "पूरी तहक़ीक़ात में किसी एक व्यक्ति को न गिरफ़्तार किया गया, न गिरफ्तार करने की कोशिश की गई जिससे नजीब के ग़ायब होने के पीछे उनकी भूमिका के बारे में पता लगाया जा सके."
कोर्ट ने नहीं मानी कोई भी दलील
हालांकि, बीती 30 जून को दिल्ली की राउज़ एवेन्यू अदालत ने फ़ातिमा नफ़ीस की प्रोटेस्ट पेटिशन को स्वीकार नहीं करते हुए, सीबीआई की जांच को सही ठहराया है. कोर्ट ने कहा कि जिन पहलुओं की सीबीआई को जांच करनी चाहिए थे, वो उन्होंने पूरी तरह की.
सीबीआई ने अपने पक्ष में कहा की उन्होंने नजीब को ढूंढ़ने की पूरी कोशिश की.
मसलन 560 से ज़्यादा गवाहों से पूछताछ, टैक्सी और ऑटो चालकों से जानकारी लेना, ट्रेन और फ्लाइट लेने वाले लोगों की सूची को देखना, वक़्फ़ बोर्ड से शवों के दफ़न होने की जानकारी, आदि. सीबीआई ने नजीब की जानकारी देने पर दस लाख रुपए के इनाम की भी घोषणा की थी.
वहीं सीबीआई के पहले दिल्ली पुलिस ने जेएनयू और उसके पास की जगह की दो बार छानबीन की थी जिसमे सैकड़ों पुलिस वालों और खोजी कुत्ते भी शामिल थे. लेकिन दिल्ली पुलिस का भी कहना था कि उन्हें नजीब का कोई सुराग नहीं मिला.
अपने प्रोटेस्ट पेटिशन में फ़ातिमा नफ़ीस ने हॉस्टल के वार्डन के बयान को लेकर भी सवाल उठाए थे.
जिस पर कोर्ट ने कहा कि वार्डन और नजीब के रूममेट मोहम्मद क़ासिम के बयान में कोई विरोधाभास नहीं था, क्यूंकि दोनों केवल एक लगभग समय की बात कर रहे थे, तो दोनों की बात सही होने की संभावना है.
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि भले ही सीबीआई ने उन नौ छात्रों को हिरासत में नहीं लिया, लेकिन ऐसा नहीं है कि उनकी भूमिका को सीबीआई ने नज़रअंदाज़ किया हो.
कोर्ट ने कहा, ''जिन नौ छात्रों पर आरोप थे कि उन्होंने गायब होने से पहली वाली रात को नजीब को धमकी दी थी, कोर्ट ने कहा कि सीबीआई ने उनके मोबाइल लोकेशन की जांच की. उनके धमकी देने और नजीब के गायब होने के लिए सीबीआई को कोई भी सबूत नहीं मिले.''
साथ ही सीबीआई ने इन नौ छात्रों का पॉलीग्राफ़ टेस्ट करने की अनुमति भी कोर्ट से मांगी थी, लेकिन वो नहीं दी गई.
ग़ौरतलब है कि कोर्ट तब तक किसी शख़्स के पॉलीग्राफ़ टेस्ट की इजाज़त नहीं दे सकता जब तक की उसकी सहमति न हो.
कोर्ट ने यह भी कहा, ''हॉस्टल चुनाव जैसे अस्थिर माहौल में और ख़ासकर जेएनयू जैसी यूनिवर्सिटी में इस तरह की झड़पें असामान्य नहीं हैं, ऐसे में इन्हें आधार बनाकर इस निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता कि युवा स्टूडेंट्स किसी अन्य छात्र को गायब करने की हद तक जा सकते हैं, ख़ासकर तब जब इसे साबित करने के लिए कोई सबूत भी नहीं हैं.''
कोर्ट ने ये भी कहा कि वह एक परेशान मां की व्यथा को समझते हैं, जो साल 2016 से अपने लापता बेटे को तलाशने की कोशिश कर रही है, लेकिन वर्तमान मामले में सीबीआई को उसकी जांच के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
अदालत ने कहा, ''जांच एजेंसी ने अपनी तरफ़ से हर मुमकिन प्रयास किया है. फिर भी ऐसे कई मामले हैं, जहां हर तरह के प्रयासों के बावजूद जांच अपने तार्किक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाती.''
अब आगे क्या हैं विकल्प?हालांकि क़ानून के कुछ जानकार भी अदालत के फ़ैसले और सीबीआई की तहक़ीक़ात पर सवाल उठा रहे हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंज़ाल्वेस कहते हैं, "पुलिस चोरी जैसे छोटे अपराधों के लिए भी लोगों को हिरासत में ले लेती है और उनसे पूछताछ करती है. पर एक लड़के के गायब होने पर, ख़ासकर जब उसे एक दिन पहले ही धमकी दी गई है, तो पुलिस किसी को हिरासत में नहीं लेती?"
कॉलिन गोंज़ाल्वेस ने दिल्ली हाई कोर्ट में नजीब की मां का पक्ष भी रखा था.
उन्होंने आगे कहा, "परिवार को अब उच्च न्यायालय जाना चाहिए, और आगे जांच की मांग करनी चाहिए."
किसी भी उच्च अदालत या सुप्रीम कोर्ट के पास ये शक्ति है कि वे इस मामले में आगे तहक़ीक़ात करने के लिए सीबीआई को आदेश दे सकते हैं. अपने फैसले में भी कोर्ट ने कहा कि अगर सीबीआई को कोई ठोस जानकारी मिलती है, तो वे इस मामले में आगे तहक़ीक़ात कर सकते हैं.
नजीब के परिवार का भी यही कहना है कि वो अपनी क़ानूनी लड़ाई जारी रखेंगे, चाहे लड़ाई कितनी ही लंबी क्यों न हो.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
- जेएनयू छात्र, नजीब की मां हिरासत से छूटे
- 'बच्चा वापस दे दो, मैं वापस चली जाऊंगी'
- क्या हुआ था जेएनयू में उस रात!
You may also like
Kangana Ranaut के रवैये और भाषा को लेकर प्रतिभा सिंह ने किया बड़ा जुबानी हमला, कहा- पछता रहे मंडी के लोग
हिमाचल में नहीं थम रही आफत, चंबा के पंगोला नाले में बादल फटा, दहशत में लोग
पापा घर मत आना… बस इतना ही सुन पाया था मुकेश, अगले दिन बाढ़ में बह गए बीबी, बच्चे और घर
सेंसर बोर्ड के चुंगल में फंसी उदयपुर फाइल्स! फिल्म में लगा डाले 150 कट, पूरे विवाद पर सामने आया कन्हैयालाल के बेटे का बयान
जम्मू-कश्मीर में डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम में एनसी सरकार जानबूझकर देरी कर रही है – पवन शर्मा