अमेरिका की ओर से एच-1बी वीज़ा की फीस बढ़ाकर एक लाख डॉलर यानी लगभग 88 लाख रुपये करने के साथ ही चीन का के-वीज़ा फिर चर्चा में आ गया है.
अमेरिकी एच-1बी वीज़ा की शुरुआत साल 1990 में हुई थी. ज़्यादातर ये वीज़ा साइंस, इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी और मैथमेटिक्स से जुड़े कुशल कर्मचारियों को दिया जाता है.
सबसे ज़्यादा एच-1बी वीज़ा भारतीयों को मिलते रहे हैं. इसके बाद चीन के लोगों को ये वीज़ा दिया जाता रहा है.
चीन ने भी अगस्त 2025 में साइंस और टेक्नोलॉजी की बेहतरीन प्रतिभाओं को अपने देश में बुलाने के लिए के- वीज़ा शुरू करने का एलान किया था.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक़ ये योजना एक अक्तूबर से शुरू होगी.
न्यूज़वीकने चीन के विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा है कि वो अमेरिका की नई वीज़ा पॉलिसी पर कमेंट नहीं करेगा, लेकिन विदेश मंत्रालय ने ये ज़रूर कहा चीन दुनिया भर की बेहतरीन प्रतिभाओं का स्वागत करता है.
के-वीज़ा की शुरुआत इस मक़सद से की गई है कि साइंस और टेक्नोलॉजी के प्रतिभाशाली प्रोफ़ेशनल्स चीन आकर काम करें. चीन के प्रधानमंत्री ली कचियांग ने उस आदेश पर दस्तख़त कर दिए हैं जिसमें इस योजना की पेशकश की गई है.
के-वीज़ा की ख़ासियतसमाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के मौजूदा 12 तरह के वीज़ा से अलग के-वीज़ा पर आने वालों को देश में प्रवेश, वैलिडिटी पीरियड और यहां रहने के मामले में ज्यादा सुविधा मिलेगी.
के-वीज़ा पर चीन आने वाले लोग एजुकेशन, कल्चर, साइंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम कर सकेंगे. इसके साथ ही वे यहां उद्योग और बिज़नेस भी शुरू कर सकते हैं.
के-वीज़ा की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसे हासिल करने के लिए आवेदक को चीन के एम्प्लॉयर या इंस्टीट्यूट की ओर से आमंत्रण की जरूरत नहीं होगी. इसे जारी करने की प्रक्रिया भी आसान होगी.
के वीज़ा नए ग्रेजुएट्स, स्वतंत्र रिसर्चरों और आंत्रप्रन्योर के लिए ज़्यादा सुविधाजनक कहा जा रहा है.
इस वीज़ा के लिए ये जरूरी नहीं है कि उनके पास चीन में नौकरी के ऑफर हों. वे यहां आकर भी जॉब ढूंढ सकते हैं.
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अब अमेरिका के टेक सेक्टर के नियम कड़े होने के बाद चीन भारतीय इंजीनियरों और टेक पेशेवरों के लिए पसंदीदा देश हो सकता है.
हाल के कुछ वर्षों में चीन ने साइंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में भारी निवेश किया है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में वो अमेरिका को चुनौती देने की तैयारी में है.
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन साइंस और टेक्नोलॉजी में भी बड़ी ताकत बनना चाहता है. सैटेलाइट टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष अभियानों, मेटल टेक्नोलॉजी, आईटी सेक्टर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी में उसने भारी निवेश किया है.
भारतीय इंजीनियरों को इसका फ़ायदा हो सकता है. साथ ही चीन को भारतीय इंजीनियरों और टेक प्रोफ़ेशनलों का लाभ मिल सकता है. एक संभावना यह भी है कि अब सिलिकॉन वैली में काम करने वाले इंजीनियर चीन का रुख़ कर सकते हैं.
भारत और चीन के सुधरते रिश्तों के बाद भारतीयों का चीन जाना आसान हो जाएगा. इसका फ़ायदा भारतीय प्रोफ़ेशनलों को होगा.
शिन्हुआ ने चीन के नेशनल इमिग्रेशन एडमिनिस्ट्रेशन के आंकड़ों के हवाले से लिखा है कि साल 2025 तक चीन से आने-जाने वाली तीन करोड़ अस्सी लाख से भी अधिक यात्राएं हुईं. जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 30.2 फ़ीसदी ज़्यादा थी.
इन यात्राओं में 13 करोड़ यात्राएं वीज़ा फ़्री थीं. पिछले साल की इस अवधि की तुलना में ये 53.9 फ़ीसदी ज़्यादा थी.
भारतीय इंजीनियरों के लिए फ़ायदा
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीन और दक्षिण पूर्वी एशियाई अध्ययन केंद्र में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अरविंद येलेरी कहते हैं, ''चीन ने शंघाई और शेनज़ेन समेत कई प्रांतों में हाई टेक्नोलॉजी पार्क बनाए हैं. इनमें चीन का बड़ा निवेश है. चीन सरकार 2006-2007 से भारत के आईआईटी से बड़े पैमाने पर इंजीनियरों को ले जाती रही है.
वह कहते हैं, ''क्रिटिकल इंजीनियरिंग में भारत के इंजीनियरों की तादाद ज्यादा है. इसका एक फ़ीसदी भी चीन की ओर चला गया तो उसका पलड़ा भारी हो जाएगा. चीनी कंपनियां टेक्नोलॉजी रिसर्च और इनोवेशन के लिए अपनी सरकार से सस्ता कर्ज लेती हैं लेकिन उनका प्रदर्शन ठीक नहीं है. तो भारतीय इंजीनियर उन्हें इस संकट से उबार सकते हैं.''
येलेरी कहते हैं, '' सिर्फ़ चीन ही नहीं ताइवान ने भी टेक पेशेवरों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. इसलिए जिन लोगों को एच-1बी वीज़ा नहीं मिलेगा वो ताइवान का रुख़ कर सकते हैं. वीज़ा फीस बढ़ाने का घाटा अमेरिका को होगा और इसका फ़ायदा होगा एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं को.''
वह कहते हैं, ''चीन के लिए ये मौका है. यही वजह है उसने के-वीज़ा पर ज़ोर देना शुरू किया है. वह बार-बार कह रहा है कि दुनिया की बेहतरीन प्रतिभाओं के लिए चीन में भरपूर मौके हैं.''
जहां तक चीन में काम का माहौल है तो येलेरी का कहना है कि वह ख़ुद वहां काम कर चुके हैं. चीन में सिंगल विंडो सिस्टम बहुत मजबूत है और एप्लीकेशन प्रोसेस से लेकर नियुक्ति और यहां तक की बाहर से विशेषज्ञों के लिए घर तक ढूंढने का काम बहुत ही कम समय में हो जाता है. चीन में पेशेवर माहौल बहुत अच्छा है.
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