
((चेतावनी: इस रिपोर्ट के कुछ ब्योरे विचलित कर सकते हैं.))
29 जुलाई से कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले में नेत्रावती नदी के किनारे, पुलिस की निगरानी में एक टीम खुदाई कर रही है. यह पता लगाने की कोशिश हो रही है कि क्या वहां ज़मीन के भीतर कंकाल दबे हुए हैं.
यह सब तब शुरू हुआ, जब इलाक़े के एक प्रतिष्ठित धार्मिक स्थल धर्मस्थला में ख़ुद को पूर्व सफाई कर्मचारी बताने वाले एक व्यक्ति ने दावा किया कि उन्होंने एक रसूख़दार परिवार और उनके कर्मचारियों के कहने पर यहां पर सैकड़ों शवों को दफ़नाया था.
तीन जुलाई को, इस अज्ञात दलित व्हिसलब्लोअर ने आरोप लगाया कि 1998 से 2014 के बीच दफ़नाए गए इन शवों में कई महिलाएं और लड़कियां थीं, जिन्हें यौन उत्पीड़न के बाद मार दिया गया था
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19 जुलाई को कर्नाटक सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया. इस टीम को शिकायतकर्ता की मदद से चिह्नित किए गए 13 स्थानों पर खुदाई का ज़िम्मा सौंपा गया है.
जिन आठ जगहों पर खुदाई पूरी हो चुकी है, उनमें से एक पर कुछ कंकाल मिले हैं. लेकिन पुलिस ने कहा है कि फ़ॉरेंसिक जांच के बाद ही कोई अंतिम राय बनाई जा सकती है.
धर्मस्थला मंदिर प्रमुख के भाई ने पहले एक स्थगन आदेश हासिल किया था, जिससे धार्मिक स्थल का संचालन करने वाले परिवार के ख़िलाफ़ "अपमानजनक कंटेंट" के प्रकाशन पर रोक लग गई थी. लेकिन अब कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह आदेश रद्द कर दिया है.
20 जुलाई को मंदिर प्रशासन ने एक बयान जारी कर 'निष्पक्ष और पारदर्शी' जांच का समर्थन किया. बयान में कहा गया, "सच और भरोसा समाज की नैतिकता और मूल्यों का आधार होते हैं. हम एसआईटी से निष्पक्ष जांच करने और सही तथ्यों को सामने लाने का आग्रह करते हैं."
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हालिया घटनाक्रम ने एक बार फिर धर्मस्थला को चर्चा में ला दिया है. हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है.
सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्थानीय पुलिस ने बताया कि 2001 से 2011 के बीच धर्मस्थला और उसके पड़ोसी गांव उजिरे में कुल 452 अप्राकृतिक मौतें दर्ज हुईं.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इन मौतों के पीछे आत्महत्या या दुर्घटनाएं भी हो सकती हैं. इसके अलावा, जिन 452 मौतों का ज़िक्र किया गया है, उनका संबंध उन दफ़न मामलों से नहीं है जिनका दावा पूर्व सफाईकर्मी ने किया था, क्योंकि उनके आरोप केवल उन मामलों पर हैं जिनकी कथित रूप से पुलिस ने जांच नहीं की.
इसके बावजूद आरटीआई आवेदन दाख़िल करने वाले एनजीओ 'नागरिक सेवा ट्रस्ट' ने बीबीसी को बताया कि केवल दो गांवों से इतनी संख्या में अप्राकृतिक मौतें होना असामान्य है. पुलिस की तरफ़ से दर्ज मौतों के अलावा भी, बीते वर्षों में अप्राकृतिक मौतों के आरोप सामने आते रहे हैं.
स्थानीय निवासी महेश शेट्टी थिमारोड़ी और गिरीश मत्तेण्णावर ने आरोप लगाया है कि 1979 में एक टीचर को जलाकर मार दिया गया था, क्योंकि उन्होंने धर्मस्थला के रसूख़दार लोगों के ख़िलाफ़ अदालत का रुख़ किया था.
धर्मस्थला और उजिरे के कई लोग दिसंबर 1986 का एक और मामला याद करते हैं, जब एक 17 साल की लड़की अपने कॉलेज से लापता हो गई थी. 56 दिन बाद उसका निर्वस्त्र शव नेत्रावती नदी के किनारे मिला.
लड़की के परिवार और स्थानीय लोगों का आरोप है कि लड़की की हत्या इसलिए की गई क्योंकि उसके पिता ने स्थानीय निकाय चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर लड़ने का फ़ैसला किया था.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने इस मामले की सही तरीक़े से जांच नहीं की.
लड़की की बहन ने कहा, "जब हमारी बहन का शव मिला, उसके हाथ-पैर रस्सियों से बंधे थे. हमारी परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार करने के बजाय हमारे पिता ने जांच के लिए सबूत सुरक्षित रखने के लिए शव को दफ़नाया था. हमारी मामी ने बताया था कि जब शव मिला तो सामने के दांत गायब थे. गांव के ताक़तवर लोग हमारे पिता से नाराज़ थे."
साल 2003 में एक और ऐसा ही मामला सामने आया, जब एक फ़र्स्ट ईयर की मेडिकल छात्रा धर्मस्थला से लापता हो गई. वह अपने दोस्तों के साथ घूमने आई थी. उनकी मां का आरोप है कि पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से भी इनकार कर दिया. उन्होंने बीबीसी को बताया कि गांव के बुज़ुर्गों ने भी उन्हें डराया.
आरोप है कि उनसे कहा गया, "क्या आपको लगता है कि हमारे पास करने को और कोई काम नहीं है? अब आप खुद देख लो."
वह बताती हैं कि उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई.
उन्होंने बताया, "जब मैं मंदिर के बाहर बैठी थी, कुछ लोगों ने मुझे अगवा कर बंधक बना लिया. जब मैंने अपनी बेटी के बारे में पूछा तो उन्होंने मेरे सिर के पीछे हमला किया. तीन महीने बाद मेरी आंखें बेंगलुरु के एक अस्पताल में खुलीं."
जब वह वापस मंगलुरु स्थित अपने घर लौटीं, तो उनका घर जल चुका था. उन्होंने बताया, "मेरे कपड़े, मेरी बेटी के कपड़े, मेरे दस्तावेज़, मेरी बेटी के दस्तावेज़, सब राख हो चुके थे."
हालिया घटनाक्रम के बाद उन्होंने मांग की है कि अगर खुदाई में उनकी बेटी के अवशेष मिलते हैं, तो उन्हें सौंपे जाएं.
आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आप भी तनाव से गुजर रहे हैं तो भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से मदद ले सकते हैं. आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए.

इन सभी घटनाओं के बीच साल 2012 में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने धर्मस्थला के कथित आपराधिक इतिहास की दिशा बदल दी.
अक्तूबर 2012 में एक नाबालिग़ लड़की का निर्वस्त्र शव मिला, जिस पर जगह-जगह चोट के निशान थे.
लड़की की मां ने बीबीसी को बताया, "उसके शरीर को देखकर कोई भी बता सकता था कि उसके साथ कई लोगों ने बलात्कार किया था."
परिवार और स्थानीय लोगों का आरोप है कि मौत की जांच बहुत लापरवाही से की गई. न्याय की मांग करते हुए स्थानीय लोगों, मानवाधिकार संगठनों ने कर्नाटक भर में विरोध प्रदर्शन किए.
कर्नाटक पुलिस ने संतोष राव को अभियुक्त के तौर पर पेश किया और परिवार की शिकायत में धर्मस्थला के जिन चार रसूख़दार लोगों का नाम था उन्हें क्लीन चिट दे दी.
नौ साल जेल में रहने के बाद 2023 में एक विशेष सीबीआई अदालत ने राव को बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि 'अभियोजन पक्ष एक भी घटना को साबित नहीं कर पाया'.
बीबीसी ने इन चारों मामलों में पुलिस से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.
धर्मस्थला के 'रसूख़दार लोग'धर्मस्थला मंदिर से जुड़े परिवार को लेकर व्हिसलब्लोअर के आरोप और बाक़ी चार मामलों में एक समानता यह है कि सभी आरोप उसी परिवार की ओर इशारा करते हैं, जो इस मंदिर का संचालन करता है.
साल 2012 में जिस शख़्स की पोती का शव मिला था, उन्होंने कहा, "सभी को पता है कि असली गुनाहगार कौन है. वे लोगों को मारकर सड़क किनारे दफना देते थे और पुलिस से डरते भी नहीं थे. उस वक्त टॉयलेट तक नहीं थे, हम जंगल जाया करते थे. वहां कभी-कभी जंगली सूअर के द्वारा उखाड़े हुए शव दिख जाते थे."
'नागरिक सेवा ट्रस्ट' नाम के एनजीओ से जुड़े सोमनाथ ने भी यही बात दोहराई. इसी ट्रस्ट ने इलाक़े में अप्राकृतिक मौतों को लेकर आरटीआई दायर की थी.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "यहां एक गैंग है, जिसे 'डी गैंग' कहा जाता है. धर्मस्थला के कुछ बड़े लोगों का इस गैंग को समर्थन हासिल है."
महेश शेट्टी थिमारोड़ी, एक व्यक्ति को ज़िंदा जलाए जाने के कथित मामले में क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. वह कहते हैं कि पिछले 13 वर्षों में उनके ख़िलाफ़ 25 एफ़आईआर दर्ज किए गए हैं.
उन्होंने कहा, "मैं बचपन से यह सब देख रहा हूं. क्या आपको उन शवों की गिनती पता है जो जंगल में सड़ गए या सड़कों के नीचे दफ़नाए गए?"
उनके साथ इस मामले में लड़ रहे पूर्व पुलिस अधिकारी और पूर्व बीजेपी नेता गिरीश मत्तेन्नवर ने आरोप लगाया कि सैकड़ों बलात्कार और हत्या के मामले कभी दर्ज ही नहीं हुए.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "दोषी धर्म और भगवान की आड़ लेकर ये सब करते हैं."
हाल के वर्षों में भी कई कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने मंदिर चलाने वाले परिवार पर बदले का रवैया अपनाने का आरोप लगाया है.
छात्र नेता तनुश शेट्टी ने बताया कि जब उन्होंने सोशल मीडिया पर धर्मस्थला परिवार के ख़िलाफ़ लिखना शुरू किया, तो उन्हें एक मैसेज मिला, "जल्द ही तुम्हारा एक्सीडेंट होने वाला है."
उनके मुताबिक़, क़रीब दो महीने बाद उन्हें एक ऑटो रिक्शा ने टक्कर मारी. फिर उन्हें एक और मैसेज मिला, "मैंने तुम्हारा एक्सीडेंट देखा. वह भगवान की मर्ज़ी थी."
तनुश ने आरोप लगाया कि पुलिस ने शुरू में शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया और एफ़आईआर तभी दर्ज हुई जब उन्होंने पुलिस अधीक्षक से संपर्क किया.
तनुश ने बताया, "लेकिन फिर अदालत से जांच पर रोक लगा दी गई. जो भी धर्मस्थला के रसूख़दार लोगों के ख़िलाफ़ बोलता है, उसे निशाना बनाया जाता है,"
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कर्नाटक के एक प्रमुख यूट्यूब पत्रकार एमडी समीर ने भी बीबीसी से कहा कि धर्मस्थला के प्रभावशाली लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्टिंग करने की वजह से उन्हें निशाना बनाया गया.
साल 2012 में नाबालिग़ लड़की की मौत के बाद स्थानीय सोशल मीडिया पत्रकार समीर ने इस मुद्दे को उठाने में अहम भूमिका निभाई थी.
समीर ने बताया कि उनके ख़िलाफ़ इस वक्त तीन केस चल रहे हैं और यूट्यूब से कई कंटेंट हटाने के लिए उन्हें लीगल नोटिस मिले हैं.
इस मामले में शिकायतकर्ता ने, जो ख़ुद को धर्मस्थला का पूर्व सफाईकर्मी बताते हैं, अपने बयान में आशंका जताई कि नाम उजागर करने से पहले कहीं उन्हें 'गायब न कर दिया जाए या उनकी हत्या न कर दी जाए.'
बीबीसी ने धर्मस्थला मंदिर के प्रतिनिधियों से इन आरोपों पर प्रतिक्रिया के लिए संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
महेश शेट्टी थिमारोडी ने दावा किया कि मंदिर चलाने वाला परिवार इसलिए रसूख़दार है क्योंकि बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर), तीनों प्रमुख पार्टियों ने अब तक उनका समर्थन किया है.
थिमारोडी कहते हैं, "राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नेता उनसे मिलने जाते हैं."
हालांकि तीनों दलों ने उनके आरोपों से इनकार किया है.
नाम न छापने की शर्त पर बीजेपी के एक प्रवक्ता ने कहा, "इस मामले की जांच एसआईटी कर रही है. जांच पूरी होने दें, फिर रिपोर्ट सार्वजनिक होगी."
कांग्रेस मीडिया समिति के उपाध्यक्ष सत्य प्रकाश ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने ही एसआईटी गठित की है.
उनका कहना है, "दोषी चाहे जितने प्रभावशाली क्यों न हों, उन्हें न्याय के कटघरे में लाना कांग्रेस की ज़िम्मेदारी है. साथ ही जो लोग सच बोल रहे हैं, उनको सुरक्षा देना भी हमारी ज़िम्मेदारी है."
जेडीएस के प्रवक्ता अरिवलागन ने कहा, "हमारे किसी नेता का उस परिवार से कोई संबंध नहीं है. एसआईटी की जांच का इंतज़ार करें."
मामले में शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील केवी धनुंजय ने बीबीसी से कहा कि शिकायतकर्ता के दावों की सच्चाई की जांच करना पुलिस की ज़िम्मेदारी है.
केवी धनुंजय बताते हैं, "उनके आरोपों का कोई संबंध पुराने मामलों या चल रही जांचों से नहीं है. यह पूरी तरह एक नई शिकायत है. मेरी जानकारी में यह भारतीय न्यायपालिका का एक दुर्लभ मामला है."
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