पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 26 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी.
इस पर भारत ने बयान तो जारी किया है, लेकिन ये नहीं बताया कि उसकी रणनीति क्या होगी?
भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने अमेरिकी टैरिफ़ पर में कहा था, "नए घटनाक्रम से होने वाले असर का आकलन और इससे प्रभावित होने वाले सभी पक्षों से सलाह मशविरा किया जा रहा है."
"अमेरिकी व्यापार नीति में हुए नए बदलाव के कारण पैदा होने वाले नए अवसरों का भी अध्ययन किया जा रहा है."

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इससे अलग चीन अमेरिकी टैरिफ़ का जवाब दे रहा है. उसने जवाबी कार्रवाई के रूप में अमेरिका पर 34 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा दिया है.
हालाँँकि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन को चेतावनी दी है कि अगर उसने ये टैरिफ़ वापस नहीं लिया, तो उस पर 50 फ़ीसदी और टैरिफ़ लगा दिया जाएगा.
लेकिन भारत अमेरिकी टैरिफ़ के जवाब में क्या क़दम उठाएगा? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब अभी तक नहीं मिला है.
इस बीच, भारत के विदेश मंत्री ने कहा है कि अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो से द्विपक्षीय व्यापार समझौते से जुड़े मुद्दे पर बातचीत हुई है.
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ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के फ़ाउंडर और विशेषज्ञ अजय श्रीवास्तव ने अमेरिका के लगाए टैरिफ़ पर भारत की ओर से अब तक कोई जवाबी कार्रवाई ना करने के तीन कारण बताए हैं.
- पहलाः भारत और अमेरिका के बीच व्यापार पर द्विपक्षीय वार्ता में फ़्री ट्रेड पर बातचीत चल रही है. पहले चरण की बातचीत अगस्त से अक्तूबर तक पूरी हो जाएगी, जिसमें टैरिफ़ को हटाने पर बात होगी. इससे टैरिफ़ कम हो सकते हैं या भारत पर से रेसिप्रोकल टैरिफ़ हट सकते हैं.
- दूसराः अमेरिका के टैरिफ़ लगाने के बाद से व्यापार की दुनिया में परेशानियां बढ़ गई हैं. इस टैरिफ़ का सबसे ज़्यादा असर अमेरिकी नगारिकों और वहाँ के व्यापारियों पर पड़ रहा है. जैसे अमेरिका में कार की मैन्युफै़क्चरिंग होती है, तो अमेरिका इसके लिए अन्य देशों से सामान आयात करता है, जिससे अमेरिका में बनने वाली कारों की क़ीमतें बढ़ जाएँगी. इससे वैश्विक स्तर पर अमेरिकी कार की ख़रीद में गिरावट आ सकती है. यही कारण है कि भारत सरकार को लग रहा है कि टैरिफ़ टिकाऊ नहीं है.
- तीसराः ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान मार्च 2018 में अमेरिका ने भारत के स्टील पर 25 फ़ीसदी और एल्यूमीनियम पर 10 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया था. उस समय भी भारत ने तुरंत जवाबी कार्रवाई नहीं की थी. जून 2019 में भारत ने अमेरिका के 29 प्रोडक्ट्स पर जवाबी कार्रवाई करते हुए टैरिफ़ लगाया था.
फेडरेशन ऑफ़ इंडियन माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइज़ेज के सेक्रेटरी जनरल अनिल भारद्वाज भी इसी से मिलती-जुलती राय रखते हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "ये ज़्यादा जवाबी कार्रवाई का मुद्दा नहीं है. टैरिफ़ सिर्फ़ भारत पर ही नहीं लगाया गया है और ना ही सबसे ज़्यादा टैरिफ़ भारत पर लगा है."
"हमें सोच-समझकर अमेरिका के साथ बातचीत करनी चाहिए. ऐसी डील करनी चाहिए, जिससे भारत और अमेरिका दोनों का फ़ायदा हो."
वहीं, काउंसिल फ़ॉर सोशल डेवलपमेंट में प्रोफ़ेसर डॉ. बिस्वजीत धर का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे में दोनों देशों के बीच व्यापार पर द्विपक्षीय बातचीत का फ़ैसला किया गया था. इस बातचीत में व्यापार पर हुए फ़ैसलों के बाद ही भारत कोई क़दम उठाएगा.
ये भी पढ़ेंइस बीच, सोमवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाक़ात की है. मुलाक़ात के बाद उन्होंने पर लिखा कि बातचीत अच्छी रही.
उन्होंने लिखा, "मार्को रुबियो से हुई बातचीत अच्छी रही. इंडो-पेसिफ़िक, भारतीय उप-महाद्वीप, यूरोप, मिडिल ईस्ट, पश्चिम एशिया से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई."
"द्विपक्षीय व्यापार समझौते को जल्दी से पूरा करने के महत्व पर सहमति बन गई है."
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भारत अमेरिका को दवाइयां, ऑटो कंपोनेंट्स और कपड़े जैसी चीज़ें निर्यात करता है और कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, सैन्य उपकरण और कृषि उत्पाद ख़रीदता है.
कच्चे तेल के मामले में अमेरिका, भारत का पाँचवाँ और एलएनजी (लिक्विफ़ाइड नेचुरल गैस) के मामले में आपूर्ति करने वाला बड़ा देश है.
भारत सरकार साल 2030 तक देश में प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल के शेयर को 6.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करना चाहती है.
अमेरिका भारत को निर्यात से अधिक आयात करता है. साल 2023 में भारत और अमेरिका के बीच 190 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था.
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. भारत और अमेरिका साल 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुँचाना चाहते हैं.
साल 2023 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 190.08 अरब अमेरिकी डॉलर का था. बाक़ी 66.19 अरब डॉलर का व्यापार सर्विसेस यानी सेवाओं का था.
इसमें भारत का माल निर्यात 83.77 अरब डॉलर और माल आयात आयात 40.12 अरब डॉलर था. यानी इस द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिका का व्यापार घाटा 43.65 अरब डॉलर का था.
ये भी पढ़ेंअमेरिका के अधिकारियों ने यह दावा किया कि जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तीन अप्रैल को टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी, तो उसके बाद से 50 से ज़्यादा देशों ने अमेरिका से बातचीत की कोशिश की.
भारत की तरह ही वियतनाम, ताइवान और इसराइल ने भी टैरिफ़ पर जवाबी कार्रवाई की जगह बातचीत के रास्ते को चुना है.
ताइवान के राष्ट्रपति विलियम लाई ने अमेरिका से बातचीत के लिए सामानों पर ज़ीरो टैरिफ़ का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि ताइवान अमेरिका से खेती, मशीनरी और रक्षा से जुड़े सामान ज़्यादा ख़रीदने की योजना बना रहा है.
वहीं, इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस मामले पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाक़ात की.
उन्होंने कहा, "हम अमेरिका के साथ व्यापार घाटे को खत्म कर देंगे. हमारा इरादा है कि इसे बहुत जल्द किया जाए. हमें लगता है कि यह सही क़दम है. हम व्यापार में आने वाली रुकावटों को भी ख़त्म करेंगे."
नेतन्याहू पहले अंतरराष्ट्रीय नेता हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ़ लगाने की घोषणा करने के बाद उनसे मुलाक़ात की है.
वियतनाम के प्रधानमंत्री फ़ाम मिन्ह चिन्ह ने कहा है कि वो अमेरिका से और ज़्यादा सामान ख़रीदेंगे. इनमें रक्षा उत्पाद भी शामिल हैं.
वियतनाम पर अमेरिका ने 46 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया है. वो इस टैरिफ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है.
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