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भारतीय वायु सेना के पास लड़ाकू विमानों की कमी, फ्रांस के साथ जल्द नई डील संभव; अगले महीने रिटायर होने वाले हैं मिग-21 एयरक्राफ्ट

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भारतीय वायु सेना (IAF) फ्रांस से और राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए सरकार-से-सरकार समझौते की दिशा में तेजी से काम कर रही है. यह प्रस्ताव लंबे समय से लंबित मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) कार्यक्रम का हिस्सा है. इस प्रोजेक्ट के तहत 114 फाइटर जेट्स खरीदे जाने हैं, जिनमें से ज्यादातर भारत में ही विदेशी सहयोग से बनाए जाएंगे.



TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वायु सेना अगले एक-दो महीनों में इस खरीद प्रोसेस के पहले स्टेप- स्वीकृति की आवश्यकता (ऐक्सेप्टेंस ऑफ नेससिटी-AoN) के लिए प्रस्ताव डिफेन्स एक्विजीशन काउंसिल (DAC) को भेजने की तैयारी कर रही है. DAC की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करते हैं. रक्षा सूत्रों के अनुसार, IAF ने सरकार के सामने अपनी यह चिंता रखी है कि उसके लड़ाकू स्क्वॉड्रनों की संख्या लगातार घट रही है, जिसे संभालने के लिए राफेल जैसे आधुनिक विमानों की तत्काल जरूरत है.



आने वाले सालों में अपनी ताकत बढ़ाने की तैयारी कर रही भारतीय वायु सेना

भारतीय वायु सेना (IAF) आने वाले सालों में अपनी ताकत बढ़ाने की तैयारी कर रही है. जब तक भारत का खुद का फाइटर जेट प्रोजेक्ट 'एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट' (AMCA) 2035 तक तैयार नहीं हो जाता, तब तक वायु सेना को दो से तीन स्क्वॉड्रन यानी लगभग 36–54 फाइटर जेट्स की जरूरत होगी. इसके लिए रूस के Sukhoi-57 और अमेरिका के F-35 जैसे आधुनिक विमानों पर भी नजर है. हालांकि अभी तक रूस या अमेरिका से इस बारे में कोई औपचारिक बातचीत शुरू नहीं हुई है.



राफेल खरीदना ज्यादा समझदारी वाला फैसला

इस बीच, IAF का मानना है कि अगर राफेल जैसे पहले से इस्तेमाल हो रहे विमान ही और खरीदे जाएं, तो यह ज्यादा समझदारी वाला फैसला होगा क्योंकि राफेल पहले से भारत में मौजूद हैं (36 विमान), अंबाला और हासीमारा एयरबेस पर इनके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से बना हुआ है और बिना ज्यादा खर्च के हर एयरबेस पर एक-एक स्क्वॉड्रन और जोड़ा जा सकता है.



इस तरह सरकार-से-सरकार समझौते के जरिए राफेल खरीदना न सिर्फ तेज और आसान होगा, बल्कि लॉजिस्टिक (जैसे मेंटेनेंस, स्पेयर पार्ट्स, ट्रेनिंग आदि) के लिहाज से भी ज्यादा फायदेमंद रहेगा. इसके अलावा, भारतीय नौसेना भी 2028 से 2030 के बीच INS विक्रांत से उड़ान भरने वाले 26 राफेल मरीन जेट्स पाने वाली है. यह सौदा भी फ्रांस से अप्रैल में करीब ₹63,887 करोड़ में तय हुआ है. यह पूरी योजना हाल ही में बनी एक उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुरूप है, जिसमें कहा गया है कि वायु सेना की ताकत को बढ़ाने के लिए DRDO और सरकारी रक्षा कंपनियों के साथ-साथ निजी कंपनियों की भूमिका भी बढ़ाई जाए.



ऑपरेशन 'सिंदूर' के बाद फिर से बढ़ी राफेल की मांग

भारतीय वायु सेना ने हाल ही में फिर से राफेल लड़ाकू विमानों की मांग तेज कर दी है. इसकी सबसे बड़ी वजह ऑपरेशन सिंदूर है, जो 7 से 10 मई के बीच हुआ. इस ऑपरेशन में IAF ने पाकिस्तान सीमा के पार लंबी दूरी के हमले किए और इसमें राफेल जेट्स ने बेहद अहम भूमिका निभाई. पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने इस दौरान भारत के 6 लड़ाकू विमान मार गिराए, जिनमें 3 राफेल भी थे. लेकिन भारत ने इन दावों को गलत बताया और कहा कि उसके किसी भी विमान को नुकसान नहीं हुआ. इस ऑपरेशन के जवाब में पाकिस्तान ने चीन से मिले J-10 फाइटर जेट्स लगाए थे. ये जेट PL-15 नाम की मिसाइलों से लैस थे, जो 200 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर तक किसी दुश्मन के विमान को मार गिरा सकती हैं.



IAF के पास फाइटर जेट्स की भारी कमी

फिलहाल भारतीय वायु सेना के पास केवल 31 फाइटर स्क्वॉड्रन हैं. हर स्क्वॉड्रन में लगभग 16–18 विमान होते हैं. अगले महीने पुराने हो चुके मिग-21 विमानों के रिटायर होने के बाद यह संख्या घटकर सिर्फ 29 स्क्वॉड्रन रह जाएगी, जो अब तक की सबसे कम संख्या होगी.



TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, यह आंकड़ा उस आधिकारिक आवश्यकता से कहीं कम है जो भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे दो मोर्चों से निपटने के लिए चाहिए. उस हिसाब से वायु सेना को कम से कम 42.5 स्क्वॉड्रन की जरूरत है. इस बीच चिंता की एक और बात यह है कि चीन जल्द ही पाकिस्तान को लगभग 40 J-35A फिफ्थ-जेनरेशन स्टेल्थ फाइटर जेट्स देने वाला है, जो तकनीकी रूप से काफी उन्नत माने जाते हैं. इन तमाम हालातों को देखते हुए IAF का मानना है कि ज्यादा राफेल विमान हासिल करना न सिर्फ जरूरी, बल्कि समय की मांग है.

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