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राजस्थान में दो बच्चों के कानून में बदलाव, कांग्रेस ने उठाए सवाल

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मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का नया निर्णय

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा

राजस्थान में 'दो बच्चे ही अच्छे' का सिद्धांत अब समाप्त होने जा रहा है। राज्य की बीजेपी सरकार 35 साल पुराना नियम बदलने की योजना बना रही है। अब दो से अधिक बच्चों वाले लोग पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में भाग ले सकेंगे, जिसमें सरपंच से लेकर जिला प्रमुख और पार्षद से लेकर मेयर तक शामिल हैं। कांग्रेस ने इस निर्णय पर आरोप लगाया है कि बीजेपी सरकार हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ाने के लिए यह कदम उठा रही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा था कि हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए। उनके बयान के बाद संघ और बीजेपी के अन्य नेताओं ने भी इसे समर्थन दिया। अब राजस्थान की बीजेपी सरकार इस दिशा में कदम बढ़ाने जा रही है।


कानून का इतिहास और बदलाव की आवश्यकता 1995 में भैरो सिंह सरकार द्वारा कानून का निर्माण

राजस्थान में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए यह नियम था कि दो से अधिक बच्चे वाले लोग चुनाव नहीं लड़ सकते। यह कानून 1995 में भैरो सिंह की बीजेपी सरकार द्वारा लागू किया गया था, लेकिन अब भजनलाल सरकार इसे बदलने की तैयारी कर रही है। हालांकि, इस बदलाव के लिए सरकार को कैबिनेट में निर्णय लेने और विधानसभा में कानून बनाने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी।


सरकार का तर्क और कांग्रेस की प्रतिक्रिया क्यों बदलने जा रही है कानून?

सरकार का कहना है कि सरकारी नौकरी में दो बच्चों की सीमा को 2018 में समाप्त कर दिया गया था, तो पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए यह क्यों लागू रहना चाहिए।

कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार हिंदू-मुस्लिम दृष्टिकोण से निर्णय ले रही है। कांग्रेस नेता प्रताप खाचरियावास ने कहा कि इस कानून के तहत जनसंख्या नियंत्रण हिंदुओं पर लागू हो रहा था, जबकि मुस्लिम जनसंख्या भी इसी अनुपात में बढ़ रही थी। उन्होंने चेतावनी दी कि इस बदलाव से बेरोजगारी में वृद्धि होगी।


राजस्थान विधानसभा में उठे मुद्दे बीजेपी का चुनावी मुद्दा

आरएसएस ने कई बार यह तर्क दिया है कि 'हम दो हमारे दो' जैसे नारों के कारण हिंदुओं ने बच्चों की संख्या कम कर दी है, जबकि मुस्लिम जनसंख्या बढ़ती जा रही है। इसी मुद्दे को राजस्थान विधानसभा में बीजेपी के विधायकों ने उठाया था, उनका तर्क था कि जब लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए दो बच्चों की सीमा नहीं है, तो पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में क्यों होनी चाहिए?


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