सनातन संस्कृति में जितने भी रीति रिवाज शामिल किए गए हैं, उनके पीछे केवल जरूरत ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी छिपे हैं। सनातन धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं, जिनमें मुंडन संस्कार सबसे महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक माना जाता है। मुंडन संस्कार के पीछे एक भी तर्क दिया जाता है कि मां के गर्भ में रहने के दौरान बच्चे के बालों में कई अशुद्ध तत्व आ जाते हैं। जब तक ये अशुद्ध तत्व बच्चे के बालों में रहते हैं, बच्चे का दिमागी विकास तेजी से नहीं हो पाता है। इसलिए माना जाता है कि मुंडन के बाद से बच्चे का बुद्धि ज्यादा तेज हो जाती है।
वैदिक परंपराओं और मुंडन के संदर्भ में यजुर्वेद में उल्लेख मिलता है कि मुंडन संस्कार कराने से बल, आयु, आरोग्य और तेज की वृद्धि होती है। जो किसी भी शिशु के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, ऐसा करने से बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास तेजी से होता है।
वैदिक काल में एक और संस्कार बहुत प्रचलित माना जाता था, जिसमें बच्चे के जन्म के 40 दिन के अंदर ही सिर से बार हटा दिए जाते हैं। मुंडन के बाद 7 सालों तक बच्चे के बालों को बढ़ने दिया जाता था, वहीं जब उनकी उम्र गुरुकुल जानें की होती थी तब दोबारा से बच्चे का दोबारा मुंडन करके जनेऊ संस्कार किया जाता था।
पाप से मुक्ति के लिए कराया जाता है मुंडन संस्कार :इसके पीछे की एक प्रचलित मान्यता के बारे में हमें बताया कि हिंदू धर्म में माना जाता है कि मनुष्य का जीवन हमें 84 लाख योनियों के बाद मिलता है, ऐसे में पिछले सभी जन्मों के ऋण और पाप उतारने के लिए शिशु के बाल भेंट स्वरूप काट दिए जाते हैं। इसके अलावा मस्तिष्क की पूजा करने के लिए भी यह संस्कार किया जाता है।
हिंदू और इस्लाम दोनों ही धर्मों में है बाल हटाने की परंपरा :हिंदू धर्म के साथ इस्लाम धर्म में भी बच्चों के बाल हटवाने की परंपरा प्रचलित है। मुस्लिम इस प्रक्रिया को अकीका कहते हैं, वहीं हिंदू धर्म में इसे मुंडन या चूड़ा कर्म के नाम से जाना जाता है। बता दें कि हिंदू धर्म में इस संस्कार को पूरे विधि-विधान और मंत्रों के उच्चारण के साथ संपन्न किया जाता है। ये खबर आप हिमाचली खबर में पढ़ रहे हैं। ।
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