New Delhi, 3 सितंबर . भारत में 1 से 7 सितंबर तक ‘राष्ट्रीय पोषण सप्ताह 2025’ मनाया जा रहा है, जिसकी थीम है- ‘ईट राइट फॉर ए बेटर लाइफ’ (बेहतर जीवन के लिए सही खानपान). इसका उद्देश्य लोगों को संतुलित आहार, स्वस्थ खानपान की आदतें, कुपोषण रोकथाम और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से बचाव के लिए जागरूक करना है. सर गंगा राम अस्पताल के डॉ. बिभु आनंद ने से इस अभियान पर विस्तृत चर्चा की.
डॉ. आनंद ने बताया कि भारत में कुपोषण एक गंभीर समस्या रही है. 1975 में एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से माताओं और बच्चों को पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी दी जाने लगी. 1983 में Government of India ने पहली बार राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की शुरुआत की, जो हर साल 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है. इसका लक्ष्य जनता को संतुलित आहार, स्वच्छ और स्वस्थ जीवनशैली की जानकारी देना है. मार्च 2018 में शुरू हुए राष्ट्रीय पोषण अभियान को Prime Minister मातृ वंदना योजना जैसे कार्यक्रमों से जोड़ा गया, जिसका उद्देश्य 2022 तक कुपोषण, एनीमिया, जन्म के समय कम वजन और बच्चों की वृद्धि रुकने जैसी समस्याओं को कम करना था. सितंबर 2018 से सितंबर माह को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाया जाता है, जिसमें जागरूकता रैलियां, स्कूल-कॉलेज कार्यक्रम, किचन गार्डन और हेल्दी फूड प्रदर्शनियां आयोजित होती हैं.
डॉ. आनंद ने लोगों की सहभागिता बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा, “स्थानीय स्तर पर ग्राम सभाओं, स्वास्थ्य शिविरों और आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण कार्यशालाएं आयोजित की जा सकती हैं. क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्तियों जैसे प्रधान, नेताओं और सामाजिक प्रभावशाली व्यक्तियों के जरिए आम लोगों तक पहुंच बनाई जा सकती है.” उन्होंने सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने के लिए इंटरैक्टिव गतिविधियों जैसे क्विज, निबंध लेखन, रेसिपी प्रतियोगिताओं और हेल्दी थाली प्रतियोगिताओं का सुझाव दिया.
social media को जागरूकता का प्रभावी माध्यम बताते हुए उन्होंने कहा, “युवा और शहरी वर्ग social media से जुड़े हैं. रील्स और छोटे वीडियो के जरिए लोगों तक तेजी से पहुंचा जा सकता है, लेकिन अप्रमाणित जानकारी से बचना जरूरी है.” उन्होंने सरकार से पोषण शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करने, हेल्दी कुकिंग डेमो और किचन गार्डन प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देने की अपील की. मिड-डे मील में सुधार और संतुलित भोजन की व्यवस्था पर भी जोर दिया.
डॉ. आनंद ने डिजिटल हेल्थ ऐप्स की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा, “ये ऐप्स व्यक्तिगत जानकारी जैसे आयु, वजन और स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर कैलोरी, प्रोटीन और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की जरूरत बताते हैं. इससे दैनिक कैलोरी इनटेक, व्यायाम और कदमों की संख्या की जानकारी मिलती है.”
ग्रामीण क्षेत्रों की चुनौतियों पर उन्होंने कहा, “कम साक्षरता और परंपरागत मान्यताएं कुपोषण का कारण बनती हैं. जैसे, गर्भवती महिलाओं को कम खाने की गलत धारणा के चलते नवजात शिशु कुपोषण का शिकार हो जाते हैं. महिला शिक्षा और निर्णय क्षमता की कमी भी एक बड़ी समस्या है.” ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच और आंगनबाड़ी केंद्रों के विकास की जरूरत पर भी उन्होंने ध्यान दिलाया. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाओं की कमी को दूर करने के लिए विचार-विमर्श की आवश्यकता है.
डॉ. आनंद ने आशा जताई कि राष्ट्रीय पोषण सप्ताह में सभी लोग सक्रिय भागीदारी करेंगे. उन्होंने कहा, “यह अभियान कुपोषण मुक्त भारत के सपने को साकार करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. स्कूलों में पोषण शिक्षा, प्रैक्टिकल और डिजिटल उपकरणों का उपयोग इस दिशा में प्रभावी हो सकता है.”
यह सप्ताह स्वास्थ्य और कुपोषण मुक्त भारत के लिए सामूहिक प्रयासों का प्रतीक है.
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एससीएच/एएस
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