New Delhi, 11 जुलाई . सफेदभाटी एक तरह का झाड़ीनुमा पौधा है और इसे ‘बियरबेरी’ के नाम से भी जाना जाता है. यह आमतौर पर उत्तरी गोलार्ध के ठंडे क्षेत्रों में पाया जाता है. पारंपरिक रूप से इसका प्रयोग गुर्दे की पथरी और जोड़ों के दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है.
सफेदभाटी का वैज्ञानिक नाम ‘अर्क्टोस्टेफिलोस यूवा-उर्सि’ है. यह पूरे साल हरा-भरा रहने वाला पौधा है. वसंत ऋतु में इस पर छोटे, घंटी के आकार के फूल खिलते हैं, जो सफेद से गुलाबी रंग के होते हैं. इन फूलों के बाद, इस पर चमकदार लाल या नारंगी रंग के छोटे, गोल जामुन जैसे फल लगते हैं. वहीं, इसका ‘बेयरबेरी’ नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसके फल भालुओं को बहुत पसंद होते हैं.
यह अपनी फैलने वाली प्रकृति और सदाबहार पत्तियों के कारण सजावटी पौधे के रूप में भी उपयोग किया जाता है, खासकर बागानों और पार्कों में, जहां इसे जमीन को ढकने (ग्राउंडकवर) के लिए लगाया जाता है.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के मुताबिक, सफेद भाटी की पत्तियों के अर्क में अर्बुटिन नामक एक सक्रिय घटक होता है, जो शरीर में हाइड्रोक्विनोन में बदल जाता है. हाइड्रोक्विनोन में मूत्र-नाशक (एंटीसेप्टिक) गुण होते हैं जो मूत्र पथ में बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं.
इसका उपयोग पारंपरिक रूप से यूरीन इंफेक्शन (जैसे सिस्टाइटिस) और मूत्राशय की सूजन के इलाज में किया जाता है. साथ ही यह मूत्र के पीएच को बैलेंस करने और मूत्र प्रवाह को बढ़ाने में भी काफी मददगार है, जिससे पथरी को बढ़ने से रोकने या उन्हें बाहर निकालने में मदद मिलती है. इसमें सूजन-रोधी गुण होते हैं, जो जोड़ों के दर्द और अन्य सूजन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं.
इसका उपयोग चिकित्सकीय सलाह के बिना नहीं करना चाहिए, खासकर जब गुर्दे की गंभीर समस्या हो. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका उपयोग नहीं करना चाहिए.
कुछ अमेरिकी जनजातियां इसकी सूखी पत्तियों को कभी-कभी धूम्रपान मिश्रण (तंबाकू के विकल्प के रूप में) के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं, जिसे ‘किनिकिनिक’ कहा जाता था.
इसका उपयोग चिकित्सकीय सलाह के बिना नहीं करना चाहिए, खासकर जब गुर्दे की गंभीर समस्या हो. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसके उपयोग से बचना चाहिए.
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एनएस/केआर
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