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हिमाचल के इस कस्बे में रावण दहन करने से होता है अपशकुन, नहीं खुलती सुनार की दुकान

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New Delhi, 1 अक्टूबर . देशभर में विजयादशी या दशहरा महापर्व 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा. दशहरा को लेकर देशभर में कई कहानियां और मान्यताएं मौजूद हैं. ज्यादातर जगहों पर रावण दहन सदियों से चला आ रहा है, लेकिन देश के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां दशहरा नहीं मनाया जाता.

कोई रावण को दामाद की तरह पूजता है तो कोई भक्त की तरह. हिमाचल के बैजनाथ कस्बे में भी सदियों से दशहरा नहीं मनाया जाता है.

एक तरफ पूरे देश में मेले का आयोजन होता है, तो दूसरी तरफ तपोभूमि बैजनाथ शिव की भक्ति में लीन होती है. मान्यता है कि बैजनाथ में आकर ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने कठोर तपस्या की थी. इसी धरती पर रावण ने भगवान शिव को अपनी भक्ति से दर्शन देने के लिए विवश कर दिया था और भगवान शिव ने खुद आकर रावण को वरदान दिया था. यहां के लोग रावण को भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं और यही कारण है कि यहां के लोग रावण दहन की परंपरा नहीं करते.

रावण दहन को लेकर लोगों के मन में डर भी है. वहां के लोगों का मानना है कि कई बार बैजनाथ में विजयादशमी मनाने की कोशिश की गई लेकिन कुछ न कुछ बुरा घटित हो जाता है. एक बार जिस शख्स ने बैजनाथ में रावण दहन किया था, वह ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहा.

वहां के लोग रावण को भगवान शिव के भक्त के रूप में पूजते हैं और पूरा आदर सम्मान करते हैं. उनका मानना है कि भगवान के सामने उनके परम भक्त को जलाया नहीं जा सकता है, ये भगवान और भक्त दोनों की श्रद्धा का अपमान है. इतना ही नहीं, कस्बे में कोई सुनार की दुकान भी नहीं खोलता है.

सोने-चांदी की चीज लेने के लिए मुख्य बाजार जाना पड़ता है. कहा जाता है कि वहां जो भी सोने की दुकान खोलता है, वह किसी न किसी परेशानी में फंस जाता है. इसके पीछे एक कहानी भी है. मान्यता है कि यहीं पर भगवान शिव ने रावण की सोने की लंका की पूजा की और पूजा में सुनार और भगवान विश्वकर्मा दोनों पहुंचे. अब रावण के मांगने पर भगवान शिव ने लंका को दान कर दिया. इस बात से मां पार्वती क्रोधित हो गईं और सुनार और भगवान विश्वकर्मा को श्राप दे दिया, जिसके बाद से बैजनाथ में कोई भी सोने-चांदी की दुकान नहीं खोलता.

पीएस/एएस

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