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वासुदेव द्वादशी: भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का विशेष दिन, जानें पूजा की विधि

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नई दिल्ली, 6 जुलाई . आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि, 7 जुलाई को वासुदेव द्वादशी के रूप में मनाई जाएगी. यह पवित्र दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.

शास्त्रों के अनुसार, महर्षि नारद ने माता देवकी को इस व्रत का महत्व बताया था. वासुदेव द्वादशी का व्रत देवशयनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है. इस साल यह सोमवार को पड़ रहा है, जो इसे और भी सिद्धिदायक बनाता है. इस दिन सूर्योदय सुबह 5:29 बजे और सूर्यास्त शाम 7:23 बजे होगा. राहुकाल सुबह 7:14 से 8:58 तक रहेगा, इस दौरान पूजा से बचना चाहिए. अनुराधा नक्षत्र और वृश्चिक राशि में चंद्रमा का संचार इस दिन को और शुभ बनाता है.

पौराणिक ग्रंथों में वासुदेव द्वादशी के व्रत और पूजन की विधि की जानकारी विस्तार से मिलती है. इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान वासुदेव और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराने के बाद लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करना चाहिए. इसके बाद भगवान को फूल, मौली, रोली, हल्दी आदि पूजन सामग्री चढ़ानी चाहिए और धूप, दीप दिखाने के बाद खीर या मिठाई का भोग लगाना चाहिए.

भगवान के सामने ध्यान लगाने के बाद माता लक्ष्मी को समर्पित कनकधारा का पाठ करने के बाद नारायण के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए. इसके बाद ब्राह्मण को दान करने का भी विशेष महत्व माना जाता है, जो अत्यंत पुण्यदायी है.

शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपतियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है. इस दिन भगवान शिव का पूजन भी विशेष शुभदायी माना जाता है, क्योंकि द्वादशी तिथि में शिव का वास होता है और यह दिन सोमवार को पड़ रहा है.

एमटी/केआर

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