POCSO एक्ट के गलत इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिंता बिल्कुल जायज है। शीर्ष अदालत ने बेहद गंभीर मुद्दे को उठाया है और इसका समाधान निकाला जाना चाहिए। बच्चों को यौन अपराध से सुरक्षित रखने के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि कोई बेकसूर इस कड़े कानून की वजह से परेशान न हो।
गलत इस्तेमाल । शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कई बार POCSO का दुरुपयोग पति-पत्नी के झगड़े या किशोर-किशोरियों के बीच आपसी सहमति से होने वाले संबंधों में किया जा रहा है। अदालत को यह टिप्पणी इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि ऐसे मामले आ चुके हैं, जहां निजी दुश्मनी या किसी विवाद में इस एक्ट का इस्तेमाल किया गया।
परेशानी की वजह । नाबालिगों को किसी भी तरह के यौन अपराध से बचाने के लिए इस कठोर कानून को नवंबर 2012 से लागू किया गया था। इस एक्ट के तहत नाबालिग की सहमति भी मायने नहीं रखती। लेकिन, इसी प्रावधान की वजह से कुछ समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं। पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने एक युवा जोड़े को बड़ी राहत देते हुए लड़के को POCSO से बरी किया था। यह जोड़ा प्रेम में था, लेकिन लड़की के नाबालिग होने के कारण लड़के को 10 साल की सजा मिल गई।
नैतिकता और कानून । दरअसल, POCSO से जुड़े हर केस को इसी तरह गहराई से देखने और व्यावहारिकता की कसौटी पर कसे जाने की जरूरत है। समाज की बनाई नैतिकता और कानून के प्रावधान दो अलग बातें हैं। अप्रैल 2024 के एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि एक गलत बरी होने से समाज के विश्वास को चोट पहुंचती है, वहीं एक गलत सजा कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली है। एक झूठा मुकदमा, खासकर बाल यौन शोषण का, किसी की भी जिंदगी बर्बाद कर सकता है। ट्रायल के दौरान जो मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है, और अक्सर बरी होने के बावजूद वह दाग जीवनभर के लिए नहीं मिटता।
संतुलित सुधार । हालांकि यह याद रखना होगा कि किसी भी कानून के साथ उसके दुरुपयोग की आशंका भी बनी रहती है। लेकिन, POCSO की वजह से बदलाव तो आया है। 2017 से 2022 के बीच में इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में 94% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। साथ ही सजा की दर भी 90% से अधिक बनी हुई थी यानी रिपोर्टिंग सिस्टम मजबूत हुआ है। तो इसको बनाए रखते हुए जिन खामियों की ओर शीर्ष अदालत ने ध्यान दिलाया है, उनको दूर करने की जरूरत है। साथ ही, लोगों को एक्ट के बारे में जागरूक किया जाए।
गलत इस्तेमाल । शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कई बार POCSO का दुरुपयोग पति-पत्नी के झगड़े या किशोर-किशोरियों के बीच आपसी सहमति से होने वाले संबंधों में किया जा रहा है। अदालत को यह टिप्पणी इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि ऐसे मामले आ चुके हैं, जहां निजी दुश्मनी या किसी विवाद में इस एक्ट का इस्तेमाल किया गया।
परेशानी की वजह । नाबालिगों को किसी भी तरह के यौन अपराध से बचाने के लिए इस कठोर कानून को नवंबर 2012 से लागू किया गया था। इस एक्ट के तहत नाबालिग की सहमति भी मायने नहीं रखती। लेकिन, इसी प्रावधान की वजह से कुछ समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं। पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने एक युवा जोड़े को बड़ी राहत देते हुए लड़के को POCSO से बरी किया था। यह जोड़ा प्रेम में था, लेकिन लड़की के नाबालिग होने के कारण लड़के को 10 साल की सजा मिल गई।
नैतिकता और कानून । दरअसल, POCSO से जुड़े हर केस को इसी तरह गहराई से देखने और व्यावहारिकता की कसौटी पर कसे जाने की जरूरत है। समाज की बनाई नैतिकता और कानून के प्रावधान दो अलग बातें हैं। अप्रैल 2024 के एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि एक गलत बरी होने से समाज के विश्वास को चोट पहुंचती है, वहीं एक गलत सजा कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली है। एक झूठा मुकदमा, खासकर बाल यौन शोषण का, किसी की भी जिंदगी बर्बाद कर सकता है। ट्रायल के दौरान जो मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है, और अक्सर बरी होने के बावजूद वह दाग जीवनभर के लिए नहीं मिटता।
संतुलित सुधार । हालांकि यह याद रखना होगा कि किसी भी कानून के साथ उसके दुरुपयोग की आशंका भी बनी रहती है। लेकिन, POCSO की वजह से बदलाव तो आया है। 2017 से 2022 के बीच में इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में 94% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। साथ ही सजा की दर भी 90% से अधिक बनी हुई थी यानी रिपोर्टिंग सिस्टम मजबूत हुआ है। तो इसको बनाए रखते हुए जिन खामियों की ओर शीर्ष अदालत ने ध्यान दिलाया है, उनको दूर करने की जरूरत है। साथ ही, लोगों को एक्ट के बारे में जागरूक किया जाए।
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