नई दिल्ली: अमेरिका की शॉर्ट-सेलर कंपनी Viceroy Research ने वेदांता ग्रुप की वित्तीय स्थिति पर एक गंभीर रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के बाद बुधवार को अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता और हिंदुस्तान जिंक के शेयरों में भारी गिरावट आई। वेदांता के शेयर 8% तक गिर गए। वहीं हिंदुस्तान जिंक के शेयर 4.8% तक लुढ़क गए। Viceroy Research का कहना है कि वेदान्ता समूह की वित्तीय हालत ठीक नहीं है। ग्रुप पर बहुत ज्यादा कर्ज है और यह ठीक से काम नहीं कर रहा है। इससे लेनदारों को भारी नुकसान हो सकता है।
Viceroy Research ने वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड (VRL) को एक पोंजी स्कीम बताया है। पोंजी स्कीम एक तरह का घोटाला होता है, जिसमें पुराने निवेशकों को नए निवेशकों के पैसे से भुगतान किया जाता है। Viceroy Research का कहना है कि VRL एक परजीवी कंपनी है। यह खुद कुछ नहीं करती, बल्कि वेदांता लिमिटेड से पैसे निकालकर अपना काम चलाती है। वेदांता लिमिटेड को Viceroy Research ने "मरता हुआ होस्ट" कहा है, जिससे VRL पैसे निकाल रही है। उसका कहना है कि वेदांता लिमिटेड के शेयरधारक VRL के लेनदारों के लिए "सकर्स" हैं।
फ्री कैश फ्लो में कमी
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि वेदांता रिसोर्सेज, वेदान्ता लिमिटेड से लगातार पैसे निकाल रही है। VRL यह पैसा अपना कर्ज चुकाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। इस वजह से वेदांता लिमिटेड को ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे VEDL की वैल्यू कम हो रही है, जबकि VEDL ही VRL के लेनदारों के लिए मुख्य गारंटी है।
Viceroy Research ने बताया कि पिछले तीन साल में वेदांता लिमिटेड के पास 5.6 बिलियन डॉलर की फ्री कैश फ्लो की कमी रही है। फ्री कैश फ्लो का मतलब है कि कंपनी के पास अपने खर्चों और कर्ज़ चुकाने के बाद कितना पैसा बचता है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि VRL ने वेदांता लिमिटेड से ज्यादा डिविडेंड मांगा। इस डिविडेंड को चुकाने के लिए वेदांता लिमिटेड ने नया कर्ज लिया, अपने काम करने के तरीके में बदलाव किया और अपने कैश रिजर्व को कम कर दिया।
पोंजी स्कीम
Viceroy Research का कहना है कि यह रणनीति एक पोंजी स्कीम की तरह है। वेदांता लिमिटेड के शेयरधारकों के साथ धोखा हो रहा है। रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया है कि वेदांता ग्रुप ने अपनी संपत्ति की वैल्यू बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई है और अरबों डॉलर के खर्चों को अपनी बैलेंस शीट से छिपाया है। बैलेंस शीट एक तरह का वित्तीय स्टेटमेंट होता है, जिसमें कंपनी की संपत्ति, देनदारी और इक्विटी दिखाई जाती है। Viceroy Research का कहना है कि वेदांता का ब्याज खर्च उसकी बताई गई ब्याज दरों से कहीं ज्यादा है। इससे पता चलता है कि कंपनी ने कुछ कर्ज छिपाए हैं या गलत तरीके से दिखाए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वेदांता रिसोर्सेज ने वित्त वर्ष 25 में 4.9 बिलियन डॉलर के कर्ज पर 835 मिलियन डॉलर का ब्याज चुकाया। इसका मतलब है कि ब्याज दर 15.8% है, जबकि कंपनी ने बताया था कि उसकी ब्याज दर 9-11% के बीच है। Viceroy Research का कहना है कि हमें सिर्फ तीन स्थितियां दिखती हैं जहां बताया गया ब्याज खर्च सही हो सकता है। ये सभी वित्तीय गड़बड़ी के बड़े उदाहरण हैं।
ब्रांड फीस
Viceroy Research ने आर्टिफिशियल ब्रांड फीस का भी जिक्र किया है। यह वह पैसा है जो वेदांता लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियों से हर साल लिया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका कोई व्यावसायिक कारण नहीं है। वित्त वर्ष 2024 में यह ब्रांड फीस 338 मिलियन डॉलर थी। VRL ने इस पैसे का इस्तेमाल विदेशों से कर्ज लेने के लिए किया।
वेदांता लिमिटेड पर यह भी आरोप है कि उसने VRL के शेयर खरीदने के लिए इंटरकंपनी लोन दिया। इंटरकंपनी लोन का मतलब है कि एक कंपनी दूसरी कंपनी को लोन देती है। Viceroy Research का कहना है कि यह लोन या तो माफ कर दिया गया या कभी चुकाया नहीं गया। 2020 में वेदांता लिमिटेड की सहायक कंपनियों ने VRL की सहयोगी कंपनियों को 7,934 करोड़ रुपये (956 मिलियन डॉलर) का लोन दिया। इस पैसे का इस्तेमाल वेदांता लिमिटेड पर कंट्रोल हासिल करने के लिए किया गया। Viceroy Research ने छिपी हुई वित्तीय चाल बताया है।
गवर्नेंस की कमी
Viceroy Research ने वेदांता ग्रुप में गवर्नेंस की कमियों का भी जिक्र किया है। गवर्नेंस का मतलब है कि कंपनी को कैसे चलाया जाता है। Viceroy Research का कहना है कि वेदांता ने ऐसे ऑडिटरों को चुना जो कंपनी की ठीक से जांच नहीं करते। Viceroy Research ने VRL को फाइनेंशियल वित्तीय जोंबी बताया जिसे वेदांता लिमिटेड से पैसे निकालकर जिंदा रखा जा रहा है।
यहां तक कि हिंदुस्तान जिंक, जो वेदांता की सबसे अच्छी कंपनी मानी जाती है, उसे भी इस रिपोर्ट में नहीं बख्शा गया। Viceroy Research का कहना है कि वेदांता ने सरकार के साथ हुए शेयरधारक समझौते का उल्लंघन किया है। समझौते के अनुसार, वेदांता को एक स्मेल्टर (धातु गलाने का प्लांट) बनाना था, जो उसने नहीं बनाया। Viceroy Research के मुताबिक इससे सरकार को यह अधिकार मिल गया है कि वह हिंदुस्तान जिंक के शेयर वापस खरीद ले या उन्हें बेच दे। इससे वेदांता को 10.66 बिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है।
हिंदुस्तान जिंक पर यह भी आरोप है कि उसने तीन साल में 1,562 करोड़ रुपये की ब्रांड फीस चुकाई है, जबकि वह उस ब्रांड का इस्तेमाल नहीं करती। Viceroy Research ने इसे माइनोरिटी शेयरधारकों के साथ सरासर अन्याय बताया है। रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि वेदांता ग्रुप ताश के पत्तों का घर है, जो अस्थिर कर्ज, लूटी गई संपत्ति और झूठे खातों पर बना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी का प्रस्तावित डिमर्जर सिर्फ समूह के दिवालियापन को कई कमजोर कंपनियों में फैला देगा और हर कंपनी पर कर्ज का बोझ होगा।
Viceroy Research ने वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड (VRL) को एक पोंजी स्कीम बताया है। पोंजी स्कीम एक तरह का घोटाला होता है, जिसमें पुराने निवेशकों को नए निवेशकों के पैसे से भुगतान किया जाता है। Viceroy Research का कहना है कि VRL एक परजीवी कंपनी है। यह खुद कुछ नहीं करती, बल्कि वेदांता लिमिटेड से पैसे निकालकर अपना काम चलाती है। वेदांता लिमिटेड को Viceroy Research ने "मरता हुआ होस्ट" कहा है, जिससे VRL पैसे निकाल रही है। उसका कहना है कि वेदांता लिमिटेड के शेयरधारक VRL के लेनदारों के लिए "सकर्स" हैं।
फ्री कैश फ्लो में कमी
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि वेदांता रिसोर्सेज, वेदान्ता लिमिटेड से लगातार पैसे निकाल रही है। VRL यह पैसा अपना कर्ज चुकाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। इस वजह से वेदांता लिमिटेड को ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे VEDL की वैल्यू कम हो रही है, जबकि VEDL ही VRL के लेनदारों के लिए मुख्य गारंटी है।
Viceroy Research ने बताया कि पिछले तीन साल में वेदांता लिमिटेड के पास 5.6 बिलियन डॉलर की फ्री कैश फ्लो की कमी रही है। फ्री कैश फ्लो का मतलब है कि कंपनी के पास अपने खर्चों और कर्ज़ चुकाने के बाद कितना पैसा बचता है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि VRL ने वेदांता लिमिटेड से ज्यादा डिविडेंड मांगा। इस डिविडेंड को चुकाने के लिए वेदांता लिमिटेड ने नया कर्ज लिया, अपने काम करने के तरीके में बदलाव किया और अपने कैश रिजर्व को कम कर दिया।
पोंजी स्कीम
Viceroy Research का कहना है कि यह रणनीति एक पोंजी स्कीम की तरह है। वेदांता लिमिटेड के शेयरधारकों के साथ धोखा हो रहा है। रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया है कि वेदांता ग्रुप ने अपनी संपत्ति की वैल्यू बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई है और अरबों डॉलर के खर्चों को अपनी बैलेंस शीट से छिपाया है। बैलेंस शीट एक तरह का वित्तीय स्टेटमेंट होता है, जिसमें कंपनी की संपत्ति, देनदारी और इक्विटी दिखाई जाती है। Viceroy Research का कहना है कि वेदांता का ब्याज खर्च उसकी बताई गई ब्याज दरों से कहीं ज्यादा है। इससे पता चलता है कि कंपनी ने कुछ कर्ज छिपाए हैं या गलत तरीके से दिखाए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वेदांता रिसोर्सेज ने वित्त वर्ष 25 में 4.9 बिलियन डॉलर के कर्ज पर 835 मिलियन डॉलर का ब्याज चुकाया। इसका मतलब है कि ब्याज दर 15.8% है, जबकि कंपनी ने बताया था कि उसकी ब्याज दर 9-11% के बीच है। Viceroy Research का कहना है कि हमें सिर्फ तीन स्थितियां दिखती हैं जहां बताया गया ब्याज खर्च सही हो सकता है। ये सभी वित्तीय गड़बड़ी के बड़े उदाहरण हैं।
ब्रांड फीस
Viceroy Research ने आर्टिफिशियल ब्रांड फीस का भी जिक्र किया है। यह वह पैसा है जो वेदांता लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियों से हर साल लिया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका कोई व्यावसायिक कारण नहीं है। वित्त वर्ष 2024 में यह ब्रांड फीस 338 मिलियन डॉलर थी। VRL ने इस पैसे का इस्तेमाल विदेशों से कर्ज लेने के लिए किया।
वेदांता लिमिटेड पर यह भी आरोप है कि उसने VRL के शेयर खरीदने के लिए इंटरकंपनी लोन दिया। इंटरकंपनी लोन का मतलब है कि एक कंपनी दूसरी कंपनी को लोन देती है। Viceroy Research का कहना है कि यह लोन या तो माफ कर दिया गया या कभी चुकाया नहीं गया। 2020 में वेदांता लिमिटेड की सहायक कंपनियों ने VRL की सहयोगी कंपनियों को 7,934 करोड़ रुपये (956 मिलियन डॉलर) का लोन दिया। इस पैसे का इस्तेमाल वेदांता लिमिटेड पर कंट्रोल हासिल करने के लिए किया गया। Viceroy Research ने छिपी हुई वित्तीय चाल बताया है।
गवर्नेंस की कमी
Viceroy Research ने वेदांता ग्रुप में गवर्नेंस की कमियों का भी जिक्र किया है। गवर्नेंस का मतलब है कि कंपनी को कैसे चलाया जाता है। Viceroy Research का कहना है कि वेदांता ने ऐसे ऑडिटरों को चुना जो कंपनी की ठीक से जांच नहीं करते। Viceroy Research ने VRL को फाइनेंशियल वित्तीय जोंबी बताया जिसे वेदांता लिमिटेड से पैसे निकालकर जिंदा रखा जा रहा है।
यहां तक कि हिंदुस्तान जिंक, जो वेदांता की सबसे अच्छी कंपनी मानी जाती है, उसे भी इस रिपोर्ट में नहीं बख्शा गया। Viceroy Research का कहना है कि वेदांता ने सरकार के साथ हुए शेयरधारक समझौते का उल्लंघन किया है। समझौते के अनुसार, वेदांता को एक स्मेल्टर (धातु गलाने का प्लांट) बनाना था, जो उसने नहीं बनाया। Viceroy Research के मुताबिक इससे सरकार को यह अधिकार मिल गया है कि वह हिंदुस्तान जिंक के शेयर वापस खरीद ले या उन्हें बेच दे। इससे वेदांता को 10.66 बिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है।
हिंदुस्तान जिंक पर यह भी आरोप है कि उसने तीन साल में 1,562 करोड़ रुपये की ब्रांड फीस चुकाई है, जबकि वह उस ब्रांड का इस्तेमाल नहीं करती। Viceroy Research ने इसे माइनोरिटी शेयरधारकों के साथ सरासर अन्याय बताया है। रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि वेदांता ग्रुप ताश के पत्तों का घर है, जो अस्थिर कर्ज, लूटी गई संपत्ति और झूठे खातों पर बना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी का प्रस्तावित डिमर्जर सिर्फ समूह के दिवालियापन को कई कमजोर कंपनियों में फैला देगा और हर कंपनी पर कर्ज का बोझ होगा।
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