कला की दुनिया में उनका 'आरंभ ही प्रचंड' रहा है। अस्सी के दशक में थिएटर करने एनएसडी पहुंचे, तो हेमलेट का रूप धर रंगमंच के राजा बन गए। मायानगरी का रुख किया तो कारी बदरी जवानी की छंटने को थी, फिर भी ऐक्टर, लेखक, गायक, हर रूप में अपना सिक्का जमाया। वहीं, अपने अलहदा अंदाज वाले बैंड बल्लीमारान से दुनिया भर में धूम मचा दी। अपने ढंग की यह अनूठी शख्सियत हैं, ऐक्टर, गीतकार, सिंगर पीयूष मिश्रा, जो जल्द ही टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के साथ भारत के नौ शहरों में अपना म्यूजिकल शो आरंभ 2.0 लेकर आ रहे हैं। इसी सिलसिले में 'उपमा सिंह' ने उनसे की खास बातचीत:
थिएटर का राजा और सिनेमा का सितारा बनने के बाद बैंड का 'आरंभ' करने का ख्याल कैसे आया? अब तो आप आरंभ 2.0 लेकर आ रहे हैं। ये म्यूजिकल सफर कैसा रहा?
ये आइडिया निशांत अग्रवाल, जो मेरे गिटारिस्ट हैं, उनका था। वह मुझे चंडीगढ़ में मिले थे और कहा कि आप ये गाने दोस्तों के बीच महफिलों में गाते फिरते हैं, आप बैंड क्यों नहीं बनाते? निशांत ने दिल्ली तक मेरा पीछा किया। फिर एक दिन मुंबई में मेरे घर पहुंच गए। फिर, निशांत, मैंने और मेरे पर्कशनिस्ट जयंत पटनायक, हम तीन लोगों ने यह बैंड बनाया। दिसंबर 2016 में गुड़गांव में हमने पहली परफॉर्मेंस दी। वहां से बढ़ते-बढ़ते आज यह 14 लोगों का बैंड बन चुका है। इस सफर में नए गाने जुड़ते रहे। कई बार गाने काटने पड़े कि यार, इसे बहुत गा लिया, मजा नहीं आ रहा तो दिल पर पत्थर रखकर उसे हटाया। सारे गाने लिखता मैं हूं, कंपोज हम सब करते हैं। अभी तो यूरोप और अमेरिका में भी बहुत बढ़िया टूर हुआ। ऑस्ट्रेलिया, यूके में भी टूर की बातें चल रही हैं, तो अब ये बैंड बहुत बड़ा बन गया है। गाने भी इतने ज्यादा हो गए हैं कि हमें हटाना पड़ता है कि यार, इस वाले शो में ये गाने नहीं गाएंगे, ये गाएंगे। वहीं, आरंभ 2.0 में पूरा फील नया है। नए गाने हैं, नया म्यूजिक है, नए इंस्ट्रूमेंट हैं, नए प्रयोग है, नया नजरिया है।
आपके शोज यूथ भी खूब इंजॉय करते हैं। जबकि, कहा जा रहा है कि आज की Gen Z पीढ़ी का साहित्य, कला, संस्कृति से कुछ खास साबका रह नहीं गया है?
मेरे ख्याल से ऐसा नहीं है। यह गलतफहमी है। मैंने तो यूथ के लिए ही गाया है और वे खूब रिलेट करते हैं। 'आरंभ' पर तो पागल हो जाते हैं। 'इक बगल में चांद' मेरे साथ गाते हैं। जब मैंने गुलाल की थी तो लगा था कि वो इस पीढ़ी के सिर से निकल जाएगी लेकिन सबसे ज्यादा गाने गुलाल के गाए जाते हैं। आरंभ है प्रचंड... सबसे ज्यादा कैंपस में ही बजता है। जब स्टूडेंट एग्जाम देने जाते हैं, तब बजाते हैं। नौकरी के लिए अप्लाई करते हैं, तब बजाते हैं, तो मैं कैसे बोलूं कि Gen Z पीढ़ी ये नहीं समझती। ऐसा होता तो ये गाने पसंद नहीं किए जाते, क्योंकि ये तो बिल्कुल ही अलग गाने हैं। ये फिल्में गाने नहीं हैं। ऐसे भी नहीं हैं जो पहले बहुत गाए गए हों, फिर भी लोग इन्हें सुनकर गुनगुनाने की हिम्मत रखते हैं।
आपकी पहचान एक विद्रोही राइटर की रही है। बेबाकपना आपका व्यक्तित्व रहा है। वक्त के साथ आप खुद में कोई बदलाव पाते हैं या वही तेवर बरकरार रखा है?
लेखक तो मैं वैसा ही हूं। उसमें कुछ खास फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अब मेरी सोच बहुत बदल गई है। अध्यात्म और विपश्यना से जुड़ने के बाद विद्रोही शब्द मेरे लिए बहुत छोटा हो चुका है। विद्रोही जब लेफ्टिस्ट थे, कम्युनिस्ट तो मैं कभी नहीं था, ये लोगों का बहुत बड़ा मुग़ालता है कि मैं कम्युनिस्ट था। मैं लेफ्टिस्ट था और उस दौर में हमारे साथ जो बंदे गाते थे, वो हर बंदा लेफ्ट का था। राइट विंग का कोई था ही नहीं। अब मैं लेफ्ट से एक कदम आगे बढ़ चुका हूं कि अपने अंदर बदलाव करना है। अध्यात्म और विपश्यना अपनाने के बाद मैंने ये समझा कि अगर आपने खुद को बदल लिया तो समाज की एक यूनिट को बदल दिया। आपने समाज को बदल दिया। पहले ये सोचते थे कि बाहर जाओ, नारे लगाओ, इंकलाब करो, जबकि असली इंकलाब आपके अंदर होता है।
कहते हैं, कला या गान क्राइसिस में पनपती है। आपका बचपन काफी ट्रॉमैटिक रहा है। क्या आपके भीतर के कलाकार को धधकाने में बचपन के उन घावों का योगदान रहा?
बिल्कुल। मेरी मां के साथ बहुत अत्याचार होता था तो मैंने अपनी पहली कविता मां के लिए लिखी थी कि 'जिंदा हो तुम हां कोई शक नहीं', तब मैं आठवीं में पढ़ता था तो इन चीज़ों से बहुत धक्का मिलता है। आपकी जिंदगी में सब अच्छा है, आपने जिंदगी में कुछ झेला ही नहीं है तो आप क्या लिखेंगे? कोई धक्का, कोई चोट, कोई कचोट हो, तभी तो आप रचेंगे। उसमें कई बार लड़की भी आती है। आपका प्रेम प्रसंग भी आता है, माता-पिता आते हैं। टीचर आते हैं, दोस्त, गुरु आते हैं। वैसे, मुझे गुरुओं से बहुत नफरत है। मेरे राजनीतिक, आध्यात्मिक, थिएटर के गुरु, सभी ने एक हद के बाद धोखा दिया। सबने कहा कि तुम हमें पूरी तरह स्वीकार कर लो, तब हम तुम्हारे गुरु हैं। वे काबिल लोग थे लेकिन उनका कहना था कि पूरी तरह से स्वीकार कर लो, फिर कोई सवाल नहीं पूछो, ये कैसे हो सकता है? सवाल नहीं पूछेंगे तो आप इवॉल्व कैसे होंगे? यही पंगा हुआ। कुछ गुरुओं को बड़ा गुस्सा आया करता है, तो भैया आपको आपका गुस्सा मुबारक हो, मुझे अपनी शांति मुबारक हो।
अपने जीवन और क्रिएटिविटी के सफर में आप किंत्सुगी(टूटी चीजों को सोने से जोड़ने की जापानी प्रथा) स्टाइल में टूटे, जुड़े, चमके। आज आपकी सबसे बड़ी ख्वाहिश क्या है?
यही कि यार, अब तूझे 15 साल बाद मरना है। मृत्यु का इंतजार है तो बहुत आराम से मरें। शांतचित्त होकर जाएं। जब जाएं तो ईगो पूरा चकनाचूर हो चुका हो। किसी का बुरा करके नहीं जाएं और तीन चार बड़े रोल करके जाएं, ये जरूर इच्छा है। एक रोल मैंने अभी लॉस एंजिल्स में किया। उसके लिए मुझे अवॉर्ड मिला। मैं उसमें इकलौता हिंदुस्तानी सिंगर था। बाकी, क्या ख्वाहिश होगी यार, सबकुछ तो है मेरे पास।
थिएटर का राजा और सिनेमा का सितारा बनने के बाद बैंड का 'आरंभ' करने का ख्याल कैसे आया? अब तो आप आरंभ 2.0 लेकर आ रहे हैं। ये म्यूजिकल सफर कैसा रहा?
ये आइडिया निशांत अग्रवाल, जो मेरे गिटारिस्ट हैं, उनका था। वह मुझे चंडीगढ़ में मिले थे और कहा कि आप ये गाने दोस्तों के बीच महफिलों में गाते फिरते हैं, आप बैंड क्यों नहीं बनाते? निशांत ने दिल्ली तक मेरा पीछा किया। फिर एक दिन मुंबई में मेरे घर पहुंच गए। फिर, निशांत, मैंने और मेरे पर्कशनिस्ट जयंत पटनायक, हम तीन लोगों ने यह बैंड बनाया। दिसंबर 2016 में गुड़गांव में हमने पहली परफॉर्मेंस दी। वहां से बढ़ते-बढ़ते आज यह 14 लोगों का बैंड बन चुका है। इस सफर में नए गाने जुड़ते रहे। कई बार गाने काटने पड़े कि यार, इसे बहुत गा लिया, मजा नहीं आ रहा तो दिल पर पत्थर रखकर उसे हटाया। सारे गाने लिखता मैं हूं, कंपोज हम सब करते हैं। अभी तो यूरोप और अमेरिका में भी बहुत बढ़िया टूर हुआ। ऑस्ट्रेलिया, यूके में भी टूर की बातें चल रही हैं, तो अब ये बैंड बहुत बड़ा बन गया है। गाने भी इतने ज्यादा हो गए हैं कि हमें हटाना पड़ता है कि यार, इस वाले शो में ये गाने नहीं गाएंगे, ये गाएंगे। वहीं, आरंभ 2.0 में पूरा फील नया है। नए गाने हैं, नया म्यूजिक है, नए इंस्ट्रूमेंट हैं, नए प्रयोग है, नया नजरिया है।
आपके शोज यूथ भी खूब इंजॉय करते हैं। जबकि, कहा जा रहा है कि आज की Gen Z पीढ़ी का साहित्य, कला, संस्कृति से कुछ खास साबका रह नहीं गया है?
मेरे ख्याल से ऐसा नहीं है। यह गलतफहमी है। मैंने तो यूथ के लिए ही गाया है और वे खूब रिलेट करते हैं। 'आरंभ' पर तो पागल हो जाते हैं। 'इक बगल में चांद' मेरे साथ गाते हैं। जब मैंने गुलाल की थी तो लगा था कि वो इस पीढ़ी के सिर से निकल जाएगी लेकिन सबसे ज्यादा गाने गुलाल के गाए जाते हैं। आरंभ है प्रचंड... सबसे ज्यादा कैंपस में ही बजता है। जब स्टूडेंट एग्जाम देने जाते हैं, तब बजाते हैं। नौकरी के लिए अप्लाई करते हैं, तब बजाते हैं, तो मैं कैसे बोलूं कि Gen Z पीढ़ी ये नहीं समझती। ऐसा होता तो ये गाने पसंद नहीं किए जाते, क्योंकि ये तो बिल्कुल ही अलग गाने हैं। ये फिल्में गाने नहीं हैं। ऐसे भी नहीं हैं जो पहले बहुत गाए गए हों, फिर भी लोग इन्हें सुनकर गुनगुनाने की हिम्मत रखते हैं।
आपकी पहचान एक विद्रोही राइटर की रही है। बेबाकपना आपका व्यक्तित्व रहा है। वक्त के साथ आप खुद में कोई बदलाव पाते हैं या वही तेवर बरकरार रखा है?
लेखक तो मैं वैसा ही हूं। उसमें कुछ खास फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अब मेरी सोच बहुत बदल गई है। अध्यात्म और विपश्यना से जुड़ने के बाद विद्रोही शब्द मेरे लिए बहुत छोटा हो चुका है। विद्रोही जब लेफ्टिस्ट थे, कम्युनिस्ट तो मैं कभी नहीं था, ये लोगों का बहुत बड़ा मुग़ालता है कि मैं कम्युनिस्ट था। मैं लेफ्टिस्ट था और उस दौर में हमारे साथ जो बंदे गाते थे, वो हर बंदा लेफ्ट का था। राइट विंग का कोई था ही नहीं। अब मैं लेफ्ट से एक कदम आगे बढ़ चुका हूं कि अपने अंदर बदलाव करना है। अध्यात्म और विपश्यना अपनाने के बाद मैंने ये समझा कि अगर आपने खुद को बदल लिया तो समाज की एक यूनिट को बदल दिया। आपने समाज को बदल दिया। पहले ये सोचते थे कि बाहर जाओ, नारे लगाओ, इंकलाब करो, जबकि असली इंकलाब आपके अंदर होता है।
कहते हैं, कला या गान क्राइसिस में पनपती है। आपका बचपन काफी ट्रॉमैटिक रहा है। क्या आपके भीतर के कलाकार को धधकाने में बचपन के उन घावों का योगदान रहा?
बिल्कुल। मेरी मां के साथ बहुत अत्याचार होता था तो मैंने अपनी पहली कविता मां के लिए लिखी थी कि 'जिंदा हो तुम हां कोई शक नहीं', तब मैं आठवीं में पढ़ता था तो इन चीज़ों से बहुत धक्का मिलता है। आपकी जिंदगी में सब अच्छा है, आपने जिंदगी में कुछ झेला ही नहीं है तो आप क्या लिखेंगे? कोई धक्का, कोई चोट, कोई कचोट हो, तभी तो आप रचेंगे। उसमें कई बार लड़की भी आती है। आपका प्रेम प्रसंग भी आता है, माता-पिता आते हैं। टीचर आते हैं, दोस्त, गुरु आते हैं। वैसे, मुझे गुरुओं से बहुत नफरत है। मेरे राजनीतिक, आध्यात्मिक, थिएटर के गुरु, सभी ने एक हद के बाद धोखा दिया। सबने कहा कि तुम हमें पूरी तरह स्वीकार कर लो, तब हम तुम्हारे गुरु हैं। वे काबिल लोग थे लेकिन उनका कहना था कि पूरी तरह से स्वीकार कर लो, फिर कोई सवाल नहीं पूछो, ये कैसे हो सकता है? सवाल नहीं पूछेंगे तो आप इवॉल्व कैसे होंगे? यही पंगा हुआ। कुछ गुरुओं को बड़ा गुस्सा आया करता है, तो भैया आपको आपका गुस्सा मुबारक हो, मुझे अपनी शांति मुबारक हो।
अपने जीवन और क्रिएटिविटी के सफर में आप किंत्सुगी(टूटी चीजों को सोने से जोड़ने की जापानी प्रथा) स्टाइल में टूटे, जुड़े, चमके। आज आपकी सबसे बड़ी ख्वाहिश क्या है?
यही कि यार, अब तूझे 15 साल बाद मरना है। मृत्यु का इंतजार है तो बहुत आराम से मरें। शांतचित्त होकर जाएं। जब जाएं तो ईगो पूरा चकनाचूर हो चुका हो। किसी का बुरा करके नहीं जाएं और तीन चार बड़े रोल करके जाएं, ये जरूर इच्छा है। एक रोल मैंने अभी लॉस एंजिल्स में किया। उसके लिए मुझे अवॉर्ड मिला। मैं उसमें इकलौता हिंदुस्तानी सिंगर था। बाकी, क्या ख्वाहिश होगी यार, सबकुछ तो है मेरे पास।
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