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शीलभंग हुआ पर डॉक्टर ने नहीं दी राय...तुमने खुद मोल ली मुसीबत, रेप पीड़िता से ये क्या बोल गए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज?

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नई दिल्ली: संवेदनशीलता एक छोटा सा शब्द है, मगर इसकी अहमियता बहुत ज्यादा है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में संवेदनशीलता पर बेहद जोर दिया है। कई बार हाईकोर्ट के जजों को इस बारे में नसीहत भी दी है, मगर जज हैं कि मानते ही नहीं हैं। दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेप के एक आरोपी की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि भले ही पीड़िता का आरोप सही मान लिया जाए, तो भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत मोल ली और इसके लिए वह खुद जिम्मेदार है। जस्टिस संजय कुमार सिंह ने पिछले महीने पारित इस आदेश में कहा कि युवती की मेडिकल जांच में उसका शील भंग पाया गया, लेकिन डाक्टर ने यौन हमले के बारे में कोई ‘एक्सपर्ट ओपिनियन’ नहीं दी। जज ने इसके साथ ही आरोपी को जमानत दे दी। ऐसी टिप्पणी को लेकर घमासान मच गया है। जानते हैं फैसला सुनाने में संवेदनशीलता क्या चीज है? सुप्रीम कोर्ट बार-बार किस संवेदनशीलता की बात करता है? लीगल एक्सपर्ट से समझते हैं। क्या हुआ था इस मामले में, जिसमें जज ने की ऐसी टिप्पणीयाचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि यह पीड़िता ने स्वीकार किया है कि वह बालिग है और पीजी छात्रावास में रहती है। वकील ने कहा कि वह (पीड़िता) नियम तोड़कर अपनी सहेलियों और पुरुष मित्रों के साथ एक रेस्तरां बार में गई, जहां उसने सबके साथ शराब पी। उन्होंने कहा कि लड़की अपने साथियों के साथ उस बार में तड़के तीन बजे तक रही। इसके बाद छात्रा ने अपने पुरुष मित्र पर रेप का आरोप लगाया था। यह मामला सितंबर 2024 का है। जस्टिस संजय कुमार ने इस मामले में अभियुक्त की याचिका पर सुनवाई करते हुए जमानत दे दी। एक फैसले में कहा-जज में संवेदनशीलता की कमीबीते महीने 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के फैसले पर कहा था कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय जज की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा-निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था, बल्कि इसे सुरक्षित रखने के चार महीने बाद फैसला सुनाया गया। इसलिए इसमें विवेक का प्रयोग नहीं किया गया। image एक जज ने कहा था-प्राइवेट पार्ट छूना रेप नहींसुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस विवादित फैसले पर रोक लगा दी थी। दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने अपने 17 मार्च के एक फैसले में कहा था कि 'पीड़िता के प्राइवेट पार्ट को छूना और पायजामे की डोरी तोड़ने को रेप या रेप की कोशिश के मामले में नहीं गिना जा सकता है। इसी पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि क्योंकि फैसला 'पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय नजरिए को दिखाता है', इसलिए फैसले पर रोक लगाना जरूरी है। image सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी पलटा था इस तरह का फैसलाइससे पहले भी ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के फैसले को पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में कहा कि किसी बच्चे के यौन अंगों को यौन इरादे से छूना पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन हिंसा माना जाएगा। इसमें चाहे त्वचा का संपर्क नहीं हुआ हो लेकिन इरादा महत्वपूर्ण है। इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की एडीशनल जज पुष्पा गनेरीवाला ने अभियुक्त को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि हाईकोर्ट ने त्वचा से त्वचा का संपर्क न होने के आधार पर फैसला सुनाया था। image ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन कैमरे में कार्यवाही : धारा 327 CrPC के तहत, अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुनवाई बंद कमरे (Closed Court) में हो ताकि पीड़िता की गरिमा बनी रहे। स्क्रीन या अलग कमरे का इस्तेमाल: पीड़िता को आरोपी के सामने नहीं लाया जाना चाहिए। जरूरी हो तो अदालत एक स्क्रीन लगा सकती है या आरोपी को गवाही के दौरान बाहर भेज सकती है। सम्मानजनक जिरह: बचाव पक्ष के वकील को पीड़िता के यौन इतिहास से जुड़े अपमानजनक प्रश्न पूछने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। जल्द से जल्द जिरह पूरी करना: अदालतों को कोशिश करनी चाहिए कि पीड़िता की जिरह एक ही दिन में पूरी हो ताकि उसे बार-बार मानसिक आघात न सहना पड़े। प्रभावी जांच की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि यौन उत्पीड़न मामलों में जांच निष्पक्ष और प्रभावी होनी चाहिए। महाराष्ट्र राज्य बनाम बंदू दौलत (2018) 11 SCC 163 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी राज्यों में विशेष केंद्र बनाए जाएं, जहां यौन अपराधों की पीड़िताएं सुरक्षित माहौल में बयान दर्ज करा सकें। सुरक्षित वातावरण: स्मृति तुकाराम बडाडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2022 SCC OnLine SC 78) में सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश दिए कि पीड़ितों को एक सुरक्षित वातावरण मिले जहां वे बिना डर के अपनी गवाही दर्ज करा सकें। सुप्रीम कोर्ट सबकी भूमिका तय कर चुका हैअनिल सिंह बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में पुलिस, मजिस्ट्रेट और अदालतों की क्या भूमिका होनी चाहिए। अदालत ने दोहराया कि पुलिस को FIR दर्ज करने से इनकार नहीं करना चाहिए और मजिस्ट्रेट को धारा 156(3) CrPC के तहत विवेकाधिकार का उचित उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, न्यायालयों को सुनवाई के दौरान पीड़िता की गरिमा और मानसिक स्थिति का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मेघालय हाईकोर्ट का वो बयान क्या था2022 में मेघालय हाईकोर्ट ने एक मामले में यह अहम फैसला देते हुए कहा था कि कपड़ों के ऊपर से महिला के प्राइवेट पार्ट को छूना रेप माना जाएगा। रेप की व्याख्या करते हुए मेघालय हाईकोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत रेप के मामलों में सिर्फ पेनिट्रेशन जरूरी नहीं है। आईपीसी की धारा 375 (बी) के मुताबिक किसी भी महिला के प्राइवेट पार्ट में मेल प्राइवेट पार्ट का पेनिट्रेशन रेप की श्रेणी में आता है। ऐसे में पीड़िता ने भले ही घटना के समय अंडरगारमेंट पहना हुआ था, फिर भी इसे पेनिट्रेशन मानते हुए रेप कहा जाएगा।' यह मामला 2006 का था। सुप्रीम कोर्ट ने स्टीरियोटाइप्स शब्दों से बचने की दी थी सलाहसुप्रीम कोर्ट ने 2023 में 'हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स' जारी की थी। इसका मकसद अदालत में सुनवाई के दौरान ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाना है, जो सालों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं। ये स्टीरियोटाइप्ड कहलाते हैं। स्टीरियोटाइप्ड का मतलब उस चलन से है, जिसमें तार्किकता और संवेदनशीलता समय सापेक्ष नहीं होती हैं। अदालतों की बहसों में इस्तेमाल होने वाले टर्म को बदलने का मकसद लैंगिक संवेदनशीलता को सुनिश्चित करना है। उस वक्त CJI रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था लीगल कम्युनिटी और जजों के सहयोग के लिए इसे बनाया गया है ताकि कानून के विषयों में महिलाओं को लेकर स्टीरियोटाइप को खत्म किया जा सके। ये हैंडबुक जजों और वकीलों के लिए है। ये हैं कुछ स्टीरियोटाइप शब्द, जिनकी जगह इनका इस्तेमालअफेयर: शादी से बाहर रिश्ता, बास्टर्ड यानी नाजायज़: ऐसा बच्चा, जिसके मां-बाप ने शादी नहीं की थी, करियर वीमन: वीमन या महिला, कार्नल इंटरकोर्स : सेक्सुअल इंटरकोर्स, ड्यूटीफुल वाइफ, गुड वाइफ: वाइफ या पत्नी, ईव टीजिंग: स्ट्रीट सेक्सुअल हैरेसमेंट, फोर्सिबल रेप यानी जबरदस्ती रेप: रेप, हुकर यानी वेश्या: सेक्स वर्कर या यौनकर्मी, हाउसवाइफ: होम मेकर, हॉर यानी वेश्या: महिला, ट्रांससेक्शुअल: ट्रांसजेंडर, स्लट: महिला, स्पिनसटर: अविवाहित महिला।
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