नई दिल्ली: अमेरिका की ओर से लगाए गए भारी टैरिफ के कारण भारत के निर्यात में बड़ी गिरावट आई है। थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की नई रिपोर्ट से इसका पता चलता है। इसके अनुसार, मई से सितंबर 2025 के बीच चार महीने लगातार भारत का निर्यात अमेरिका को 37.5% तक गिर गया है। यह गिरावट अप्रैल की शुरुआत में अमेरिका की ओर से टैरिफ बढ़ाने के बाद शुरू हुई। अगस्त के अंत तक यह 50% तक पहुंच गई। इस कारण भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका को निर्यात 8.8 अरब डॉलर से घटकर 5.5 अरब डॉलर रह गया। यह हाल के वर्षों में सबसे तेज गिरावटों में से एक है।
यह रिपोर्ट रविवार को जारी हुई। जीटीआरआई ने मई-सितंबर 2025 के व्यापार आंकड़ों की तुलना करके टैरिफ बढ़ोतरी के तत्काल असर का आकलन किया। अमेरिका ने 2 अप्रैल से भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाना शुरू किया था। शुरुआत में यह 10% था। इसे अगस्त की शुरुआत में बढ़ाकर 25% कर दिया गया। फिर उसी महीने के अंत तक कई भारतीय उत्पादों पर 50% तक पहुंचा दिया गया।
किन उत्पादों पर पड़ा सबसे ज्यादा असर?जिन उत्पादों पर पहले कोई टैरिफ नहीं था, उन पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। ये उत्पाद भारत के कुल अमेरिकी निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा थे। इन निर्यात में 47% की गिरावट आई, जो मई में 3.4 अरब डॉलर से घटकर सितंबर में 1.8 अरब डॉलर रह गया।
जीटीआरआई ने कहा, 'स्मार्टफोन और फार्मास्यूटिकल्स सबसे बड़े शिकार बने।' स्मार्टफोन निर्यात 58% तक गिर गया। अप्रैल-सितंबर 2024 और इस साल की समान अवधि के बीच यह 197% बढ़ा था। मई में यह 2.29 अरब डॉलर था, जो सितंबर में घटकर 88.46 करोड़ डॉलर रह गया। जून में यह 2 अरब डॉलर था, अगस्त में 96.48 करोड़ डॉलर और फिर सितंबर में और भी गिर गया।
फार्मास्युटिकल निर्यात में भी इसी अवधि में 15.7% की गिरावट आई, जो 74.56 करोड़ डॉलर से घटकर 62.83 करोड़ डॉलर रह गया।
औद्योगिक मेटल और ऑटो कंपोनेंट्स में अपेक्षाकृत कम 16.7% की गिरावट देखी गई। इन पर सभी देशों के लिए एक समान टैरिफ लागू था। यह 0.6 अरब डॉलर से घटकर 0.5 अरब डॉलर रह गया। एल्यूमीनियम निर्यात में 37% की गिरावट आई, तांबे में 25%, ऑटो पार्ट्स में 12% और लोहा और इस्पात में 8% की गिरावट दर्ज की गई।
तकरीबन हर क्षेत्र के एक्सपोर्ट में गिरावट
जीटीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है, 'चूंकि सभी ग्लोबल सप्लायर्स को समान टैरिफ का सामना करना पड़ा, इसलिए यह गिरावट भारतीय प्रतिस्पर्धात्मकता के किसी भी नुकसान की तुलना में अमेरिकी औद्योगिक गतिविधि में मंदी से ज्यादा जुड़ी हुई लगती है।'
कपड़ा, रत्न और आभूषण, रसायन, कृषि-खाद्य पदार्थ और मशीनरी जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र में 33% की गिरावट दर्ज की गई। ये मिलकर अमेरिका को भारत के निर्यात का लगभग 60% हिस्सा बनाते हैं। मई में यह 4.8 अरब डॉलर था, जो सितंबर में घटकर 3.2 अरब डॉलर रह गया।
रत्न और आभूषण निर्यात में 59.5% की भारी गिरावट आई। यह 50.02 करोड़ डॉलर से घटकर 20.28 करोड़ डॉलर रह गया। इससे सूरत और मुंबई जैसे मैन्युफैक्चिंरग केंद्रों को बड़ा झटका लगा है। रिपोर्ट के अनुसार, थाईलैंड और वियतनाम ने भारत के खोए हुए अमेरिकी ऑर्डर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हासिल कर लिया है।
सौर पैनलों का निर्यात 60.8% तक गिर गया। कभी भारत के रिन्यूएबल एनर्जी एक्सपोर्ट का यह बढ़ता हुआ हिस्सा था। यह 20.26 करोड़ डॉलर से घटकर 7.94 करोड़ डॉलर रह गया। जीटीआरआई ने इसका कारण प्रतिस्पर्धात्मकता का भारी नुकसान बताया। कारण है कि चीन को इसी तरह के उत्पादों पर केवल 30% टैरिफ और वियतनाम को 20% टैरिफ का सामना करना पड़ा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रसायन, समुद्री और समुद्री भोजन, कपड़ा और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात में भी बड़ी गिरावट देखी गई।
वियतनाम, चीन, मैक्सिको के हाथों बाजार खोने का डर
निर्यातकों ने अब इस संकट से निपटने के लिए तत्काल नीतिगत समर्थन की मांग की है। जीटीआरआई ने कहा, 'प्राथमिकता उपायों में वित्तपोषण लागत को कम करने के लिए ब्याज समकरण सहायता बढ़ाना, तरलता दबाव को कम करने के लिए तेजी से ड्यूटी छूट देना और एमएसएमई निर्यातकों के लिए आपातकालीन क्रेडिट लाइनें शामिल हैं।'
बिना तत्काल हस्तक्षेप के भारत वियतनाम, मैक्सिको और चीन जैसे देशों से बाजार हिस्सेदारी खोने का जोखिम उठा रहा है। यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी जहां उसका पारंपरिक रूप से दबदबा था।
जीटीआरआई ने निष्कर्ष निकाला, 'नवीनतम आंकड़े एक बात स्पष्ट करते हैं। टैरिफ ने न केवल भारत के व्यापार मार्जिन को निचोड़ा है, बल्कि प्रमुख निर्यात उद्योगों में संरचनात्मक कमजोरियों को भी उजागर किया है।'
यह रिपोर्ट रविवार को जारी हुई। जीटीआरआई ने मई-सितंबर 2025 के व्यापार आंकड़ों की तुलना करके टैरिफ बढ़ोतरी के तत्काल असर का आकलन किया। अमेरिका ने 2 अप्रैल से भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाना शुरू किया था। शुरुआत में यह 10% था। इसे अगस्त की शुरुआत में बढ़ाकर 25% कर दिया गया। फिर उसी महीने के अंत तक कई भारतीय उत्पादों पर 50% तक पहुंचा दिया गया।
किन उत्पादों पर पड़ा सबसे ज्यादा असर?जिन उत्पादों पर पहले कोई टैरिफ नहीं था, उन पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। ये उत्पाद भारत के कुल अमेरिकी निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा थे। इन निर्यात में 47% की गिरावट आई, जो मई में 3.4 अरब डॉलर से घटकर सितंबर में 1.8 अरब डॉलर रह गया।
जीटीआरआई ने कहा, 'स्मार्टफोन और फार्मास्यूटिकल्स सबसे बड़े शिकार बने।' स्मार्टफोन निर्यात 58% तक गिर गया। अप्रैल-सितंबर 2024 और इस साल की समान अवधि के बीच यह 197% बढ़ा था। मई में यह 2.29 अरब डॉलर था, जो सितंबर में घटकर 88.46 करोड़ डॉलर रह गया। जून में यह 2 अरब डॉलर था, अगस्त में 96.48 करोड़ डॉलर और फिर सितंबर में और भी गिर गया।
फार्मास्युटिकल निर्यात में भी इसी अवधि में 15.7% की गिरावट आई, जो 74.56 करोड़ डॉलर से घटकर 62.83 करोड़ डॉलर रह गया।
औद्योगिक मेटल और ऑटो कंपोनेंट्स में अपेक्षाकृत कम 16.7% की गिरावट देखी गई। इन पर सभी देशों के लिए एक समान टैरिफ लागू था। यह 0.6 अरब डॉलर से घटकर 0.5 अरब डॉलर रह गया। एल्यूमीनियम निर्यात में 37% की गिरावट आई, तांबे में 25%, ऑटो पार्ट्स में 12% और लोहा और इस्पात में 8% की गिरावट दर्ज की गई।
तकरीबन हर क्षेत्र के एक्सपोर्ट में गिरावट
जीटीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है, 'चूंकि सभी ग्लोबल सप्लायर्स को समान टैरिफ का सामना करना पड़ा, इसलिए यह गिरावट भारतीय प्रतिस्पर्धात्मकता के किसी भी नुकसान की तुलना में अमेरिकी औद्योगिक गतिविधि में मंदी से ज्यादा जुड़ी हुई लगती है।'
कपड़ा, रत्न और आभूषण, रसायन, कृषि-खाद्य पदार्थ और मशीनरी जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र में 33% की गिरावट दर्ज की गई। ये मिलकर अमेरिका को भारत के निर्यात का लगभग 60% हिस्सा बनाते हैं। मई में यह 4.8 अरब डॉलर था, जो सितंबर में घटकर 3.2 अरब डॉलर रह गया।
रत्न और आभूषण निर्यात में 59.5% की भारी गिरावट आई। यह 50.02 करोड़ डॉलर से घटकर 20.28 करोड़ डॉलर रह गया। इससे सूरत और मुंबई जैसे मैन्युफैक्चिंरग केंद्रों को बड़ा झटका लगा है। रिपोर्ट के अनुसार, थाईलैंड और वियतनाम ने भारत के खोए हुए अमेरिकी ऑर्डर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हासिल कर लिया है।
सौर पैनलों का निर्यात 60.8% तक गिर गया। कभी भारत के रिन्यूएबल एनर्जी एक्सपोर्ट का यह बढ़ता हुआ हिस्सा था। यह 20.26 करोड़ डॉलर से घटकर 7.94 करोड़ डॉलर रह गया। जीटीआरआई ने इसका कारण प्रतिस्पर्धात्मकता का भारी नुकसान बताया। कारण है कि चीन को इसी तरह के उत्पादों पर केवल 30% टैरिफ और वियतनाम को 20% टैरिफ का सामना करना पड़ा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रसायन, समुद्री और समुद्री भोजन, कपड़ा और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात में भी बड़ी गिरावट देखी गई।
वियतनाम, चीन, मैक्सिको के हाथों बाजार खोने का डर
निर्यातकों ने अब इस संकट से निपटने के लिए तत्काल नीतिगत समर्थन की मांग की है। जीटीआरआई ने कहा, 'प्राथमिकता उपायों में वित्तपोषण लागत को कम करने के लिए ब्याज समकरण सहायता बढ़ाना, तरलता दबाव को कम करने के लिए तेजी से ड्यूटी छूट देना और एमएसएमई निर्यातकों के लिए आपातकालीन क्रेडिट लाइनें शामिल हैं।'
बिना तत्काल हस्तक्षेप के भारत वियतनाम, मैक्सिको और चीन जैसे देशों से बाजार हिस्सेदारी खोने का जोखिम उठा रहा है। यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी जहां उसका पारंपरिक रूप से दबदबा था।
जीटीआरआई ने निष्कर्ष निकाला, 'नवीनतम आंकड़े एक बात स्पष्ट करते हैं। टैरिफ ने न केवल भारत के व्यापार मार्जिन को निचोड़ा है, बल्कि प्रमुख निर्यात उद्योगों में संरचनात्मक कमजोरियों को भी उजागर किया है।'
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