नई दिल्ली : चीन बेहद शातिर दुश्मन है। वह नियंत्रण रेखा (LAC) पर गुपचुप तरीके से अपनी तैयारी कर रहा है। चिंता की बात यह है कि चीन यह तैयारी अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास कर रहा है, जो अरुणाचल के तवांग इलाके से करीब 100 किलोमीटर दूर है। वहीं, जटिल दुश्मन चीन भारत से बातचीत भी कर रहा है। यानी चीन मुंह में राम बगल में छुरी वाली चाल चल रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर भी चीन के साथ भारत के संबंध को बेहद जटिल बता चुके हैं। वेडनेसडे बिग टिकट में पूरी बात समझते हैं।
भारत-चीन में सीमा संबंधी बेहद एक्टिव कम्युनिकेशन
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से बुधवार को चीन के रक्षा मंत्रालय ने बताया कि भारत और चीन ने सीमा संबंधी मुद्दों पर चर्चा की। दोनों पक्षों ने चीन-भारत सीमा के पश्चिमी हिस्से पर नियंत्रण को लेकर सक्रिय और गहन बातचीत की। बयान में आगे कहा गया कि दोनों देश संपर्क बनाए रखने पर सहमत हुए। रॉयटर्स के हवाले से मंत्रालय ने कहा-सैन्य और राजनयिक माध्यमों से संवाद और संवाद बनाए रखने पर सहमति बनी। वहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि दोनों देशों के बीच एक्टिव कम्युनिकेशन पर सहमति बनी। यह घटनाक्रम कोलकाता और ग्वांगझू के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू होने के कुछ दिनों बाद हुआ है। दोनों शहरों के बीच उड़ान सेवा रविवार को फिर से शुरू हुई, जो पांच साल के अंतराल के बाद पहला सीधा वाणिज्यिक संपर्क है।
चीन ने LAC पर बना लिए 36 मजबूत शेल्टर
वहीं, एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने तिब्बत में अपने ल्हुंजे एयरबेस पर लड़ाकू विमानों को खड़ा करने के लिए 36 मजबूत शेल्टर विमान आश्रयों, नए प्रशासनिक ब्लॉकों और एक नए एप्रन का निर्माण पूरा कर लिया है। यह मैकमोहन रेखा से लगभग 40 किलोमीटर उत्तर में है, जो अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र में भारत और चीन के बीच की सीमा है। सैटेलाइट इमेज से ये खुलासा हुआ है।
कहां पर ये बड़ी तैयारी कर रहा चीन
रिपोर्ट में कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश के रणनीतिक शहर तवांग से लगभग 107 किलोमीटर दूर ल्हुंजे में नए मजबूत शेल्टरों के बनाने से चीन को अपने शस्त्रागार में लड़ाकू विमानों और कई ड्रोन प्रणालियों को अग्रिम मोर्चे पर तैनात करने का विकल्प मिलता है और इससे भारतीय वायु सेना के लिए अरुणाचल प्रदेश और असम में स्थित अपने एयरबेसों से किसी भी हवाई खतरे का जवाब देने में लगने वाले प्रतिक्रिया समय में कमी आती है।
पूर्व वायुसेना प्रमुख ने पहले ही जता दी थी आशंका
पूर्व भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ (सेवानिवृत्त) ने एनडीटीवी को बताया-ल्हुंजे में 36 मज़बूत विमान आश्रयों का निर्माण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अगली घटना के दौरान उनकी सेना के समर्थन में काम करने वाले उनके सामरिक लड़ाकू विमान और हमलावर हेलीकॉप्टर ल्हुंजे में ही तैनात होंगे। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में भूमिगत सुरंगों में गोला-बारूद और ईंधन पहले से ही मौजूद होगा। उन्होंने आगे कहा-मैंने डोकलाम घटना (2017 में) के दौरान अपने कर्मचारियों से कहा था कि तिब्बत में पीएलएएएफ (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स) की समस्या विमान नहीं, बल्कि तैनाती है। मैंने तब भविष्यवाणी की थी कि जिस दिन वे तिब्बत में अपने हवाई अड्डों में मजबूत विमान आश्रयों का निर्माण शुरू करेंगे, उसका मतलब होगा कि वे हमारे साथ युद्ध की तैयारी कर रहे होंगे। तिब्बत में उनकी मुख्य कमजोरी दूर हो जाएगी।
कितना बड़ा खतरा-लद्दाख, अरुणाचल के ठिकाने जद में
रिपोर्ट के अनुसार, चीन के टिंगरी, ल्हुंजे और बुरांग जैसे एयरबेस वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब 50-150 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। यह निकटता पीएलए वायु सेना की संपत्तियों को अग्रिम ठिकानों पर त्वरित तैनाती और सीमा पर तनाव बढ़ने की स्थिति में कम समय में जवाब देने में सक्षम बनाएगी। ये एयरफील्ड अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और लद्दाख में भारतीय ठिकानों को कवर करने में सक्षम हैं।
तवांग से इतना खौफ क्यों खाता है चीन
भारत और चीन के बीच 3,800 किलोमीटर (2,360 मील) लंबी सीमा है, जो ठीक से तय नहीं है। 1962 में दोनों देशों के बीच एक छोटी लेकिन भयानक लड़ाई हुई थी। इसके अलावा, दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें होती रही हैं। 2020 में गलवां घाटी में हुई ऐसी लड़ाई में 20 भारतीय और चार चीनी सैनिक मारे गए थे। इस तरह की घटनाओं से दोनों देशों के बीच तनाव बना रहता है। अरुणाचल में तवांग मठ का संबंध तिब्बत के पोटला हाउस मठ से है, जहां से चीन के खिलाफ चिंगारी भड़कने का डर है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा और तवांग के बौद्ध मठों के बीच गहरा संबंध है।
लोंगजू में चीन ने दिया था बड़ा धोखा
डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, चीन ने एक धोखा लोंगजू में दिया था। लोंगजू (Longju) अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी जिले में स्थित एक गांव है। इस पर चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंकते हुए 25 अगस्त, 1959 को हमला करते हुए इस पर अपना दावा कर लिया। यह तिब्बत की सीमा से सटा हुआ है।
लोंगजू में असम राइफल्स के सैनिकों पर हमला
चीन के तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद अगस्त, 1959 में यहां सीमा नाका पर तैनात असम राइफल्स के चंद सैनिकों पर अचानक धावा बोल दिया था। तब से यहां पर चीन का कब्ज़ा है। हालांकि, भारत इसे अपना अभिन्न अंग मानता है। यहां से लगभग 2.5 किमी उत्तर में तिब्बत की मिग्यितुन बस्ती है।
सीमावर्ती क्षेत्रों को सेना ने दे दिया था
लेखक श्रीनाथ राघवन ने अपनी पुस्तक ‘वॉर एंड पीस इन मॉडर्न इंडिया‘ में कहा है कि लोंगजू मुठभेड़ के बाद ही भारत सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ युद्ध की संभावनाओं को गंभीरता से लेना शुरू किया था। खासकर तब जब लोंगजू वाली झड़प के बाद ही ‘सीमावर्ती क्षेत्रों’ पर सेना के नियंत्रण में दे दिया गया था।
पंचशील समझौते के 2 महीने बाद पीठ में घोंपा छुरा
1954 में पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर होने के बमुश्किल दो महीने बाद भारत को पता चला कि सभी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है। पहली चीनी घुसपैठ जून 1954 में बाराहोती में हुई थी। इसके बाद सैकड़ों की संख्या में घुसपैठ का सिलसिला शुरू हुआ। भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता था। इस समझौते पर 29 अप्रैल, 1954 को हस्ताक्षर हुए थे। इसके दो महीने बाद ही चीन ने घुसपैठ करनी शुरू कर दी, जिसके बाद 1962 में चीन ने अचानक हमला करते हुए भारत को युद्ध में झोंक दिया था।
भारत-चीन में सीमा संबंधी बेहद एक्टिव कम्युनिकेशन
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से बुधवार को चीन के रक्षा मंत्रालय ने बताया कि भारत और चीन ने सीमा संबंधी मुद्दों पर चर्चा की। दोनों पक्षों ने चीन-भारत सीमा के पश्चिमी हिस्से पर नियंत्रण को लेकर सक्रिय और गहन बातचीत की। बयान में आगे कहा गया कि दोनों देश संपर्क बनाए रखने पर सहमत हुए। रॉयटर्स के हवाले से मंत्रालय ने कहा-सैन्य और राजनयिक माध्यमों से संवाद और संवाद बनाए रखने पर सहमति बनी। वहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि दोनों देशों के बीच एक्टिव कम्युनिकेशन पर सहमति बनी। यह घटनाक्रम कोलकाता और ग्वांगझू के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू होने के कुछ दिनों बाद हुआ है। दोनों शहरों के बीच उड़ान सेवा रविवार को फिर से शुरू हुई, जो पांच साल के अंतराल के बाद पहला सीधा वाणिज्यिक संपर्क है।
Tracking construction at China’s Lhunze airbase, 100 kilometers from Tawang, India - reveals the development of 36 new hardened shelters for aircraft/helicopters since April this year, highlighting Beijing's effort to scale up air capability near the Line of Actual Control https://t.co/63wUEJHHBq pic.twitter.com/6imIimt6pO
— Damien Symon (@detresfa_) October 22, 2025
चीन ने LAC पर बना लिए 36 मजबूत शेल्टर
वहीं, एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने तिब्बत में अपने ल्हुंजे एयरबेस पर लड़ाकू विमानों को खड़ा करने के लिए 36 मजबूत शेल्टर विमान आश्रयों, नए प्रशासनिक ब्लॉकों और एक नए एप्रन का निर्माण पूरा कर लिया है। यह मैकमोहन रेखा से लगभग 40 किलोमीटर उत्तर में है, जो अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र में भारत और चीन के बीच की सीमा है। सैटेलाइट इमेज से ये खुलासा हुआ है।
China Accelerates Military Buildup Near Arunachal Pradesh: Completes 36 Hardened Aircraft Shelters at Lhunze Airbase, Enhancing Rapid-Response Capability and Raising Regional Security Concerns for India. pic.twitter.com/I5smxHtHGb
— War Records (@war_record) October 27, 2025
कहां पर ये बड़ी तैयारी कर रहा चीन
रिपोर्ट में कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश के रणनीतिक शहर तवांग से लगभग 107 किलोमीटर दूर ल्हुंजे में नए मजबूत शेल्टरों के बनाने से चीन को अपने शस्त्रागार में लड़ाकू विमानों और कई ड्रोन प्रणालियों को अग्रिम मोर्चे पर तैनात करने का विकल्प मिलता है और इससे भारतीय वायु सेना के लिए अरुणाचल प्रदेश और असम में स्थित अपने एयरबेसों से किसी भी हवाई खतरे का जवाब देने में लगने वाले प्रतिक्रिया समय में कमी आती है।
पूर्व वायुसेना प्रमुख ने पहले ही जता दी थी आशंका
पूर्व भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ (सेवानिवृत्त) ने एनडीटीवी को बताया-ल्हुंजे में 36 मज़बूत विमान आश्रयों का निर्माण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अगली घटना के दौरान उनकी सेना के समर्थन में काम करने वाले उनके सामरिक लड़ाकू विमान और हमलावर हेलीकॉप्टर ल्हुंजे में ही तैनात होंगे। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में भूमिगत सुरंगों में गोला-बारूद और ईंधन पहले से ही मौजूद होगा। उन्होंने आगे कहा-मैंने डोकलाम घटना (2017 में) के दौरान अपने कर्मचारियों से कहा था कि तिब्बत में पीएलएएएफ (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स) की समस्या विमान नहीं, बल्कि तैनाती है। मैंने तब भविष्यवाणी की थी कि जिस दिन वे तिब्बत में अपने हवाई अड्डों में मजबूत विमान आश्रयों का निर्माण शुरू करेंगे, उसका मतलब होगा कि वे हमारे साथ युद्ध की तैयारी कर रहे होंगे। तिब्बत में उनकी मुख्य कमजोरी दूर हो जाएगी।
कितना बड़ा खतरा-लद्दाख, अरुणाचल के ठिकाने जद में
रिपोर्ट के अनुसार, चीन के टिंगरी, ल्हुंजे और बुरांग जैसे एयरबेस वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब 50-150 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। यह निकटता पीएलए वायु सेना की संपत्तियों को अग्रिम ठिकानों पर त्वरित तैनाती और सीमा पर तनाव बढ़ने की स्थिति में कम समय में जवाब देने में सक्षम बनाएगी। ये एयरफील्ड अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और लद्दाख में भारतीय ठिकानों को कवर करने में सक्षम हैं।
तवांग से इतना खौफ क्यों खाता है चीन
भारत और चीन के बीच 3,800 किलोमीटर (2,360 मील) लंबी सीमा है, जो ठीक से तय नहीं है। 1962 में दोनों देशों के बीच एक छोटी लेकिन भयानक लड़ाई हुई थी। इसके अलावा, दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें होती रही हैं। 2020 में गलवां घाटी में हुई ऐसी लड़ाई में 20 भारतीय और चार चीनी सैनिक मारे गए थे। इस तरह की घटनाओं से दोनों देशों के बीच तनाव बना रहता है। अरुणाचल में तवांग मठ का संबंध तिब्बत के पोटला हाउस मठ से है, जहां से चीन के खिलाफ चिंगारी भड़कने का डर है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा और तवांग के बौद्ध मठों के बीच गहरा संबंध है।
लोंगजू में चीन ने दिया था बड़ा धोखा
डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, चीन ने एक धोखा लोंगजू में दिया था। लोंगजू (Longju) अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी जिले में स्थित एक गांव है। इस पर चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंकते हुए 25 अगस्त, 1959 को हमला करते हुए इस पर अपना दावा कर लिया। यह तिब्बत की सीमा से सटा हुआ है।
लोंगजू में असम राइफल्स के सैनिकों पर हमला
चीन के तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद अगस्त, 1959 में यहां सीमा नाका पर तैनात असम राइफल्स के चंद सैनिकों पर अचानक धावा बोल दिया था। तब से यहां पर चीन का कब्ज़ा है। हालांकि, भारत इसे अपना अभिन्न अंग मानता है। यहां से लगभग 2.5 किमी उत्तर में तिब्बत की मिग्यितुन बस्ती है।
सीमावर्ती क्षेत्रों को सेना ने दे दिया था
लेखक श्रीनाथ राघवन ने अपनी पुस्तक ‘वॉर एंड पीस इन मॉडर्न इंडिया‘ में कहा है कि लोंगजू मुठभेड़ के बाद ही भारत सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ युद्ध की संभावनाओं को गंभीरता से लेना शुरू किया था। खासकर तब जब लोंगजू वाली झड़प के बाद ही ‘सीमावर्ती क्षेत्रों’ पर सेना के नियंत्रण में दे दिया गया था।
पंचशील समझौते के 2 महीने बाद पीठ में घोंपा छुरा
1954 में पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर होने के बमुश्किल दो महीने बाद भारत को पता चला कि सभी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है। पहली चीनी घुसपैठ जून 1954 में बाराहोती में हुई थी। इसके बाद सैकड़ों की संख्या में घुसपैठ का सिलसिला शुरू हुआ। भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता था। इस समझौते पर 29 अप्रैल, 1954 को हस्ताक्षर हुए थे। इसके दो महीने बाद ही चीन ने घुसपैठ करनी शुरू कर दी, जिसके बाद 1962 में चीन ने अचानक हमला करते हुए भारत को युद्ध में झोंक दिया था।
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