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वन भूमि पर लगे सेब के अवैध पेड़ों को अब नहीं काट पाएगी हिमाचल सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला

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शिमला: सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमे उसने आदेश दिया था कि राज्य में वन भूमि पर अवैध रूप से लगे सभी सेब के बागों को काट दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस आदेश पर रोक लगा दी है। हालांकि, कोर्ट ने राज्य सरकार को यह अनुमति दी है कि वह पेड़ों को काटे बिना, अवैध रूप से कब्जा की गई वन भूमि को अपने कब्जे में लेकर सेब की फसल को बेच सकती है। कोर्ट ने यह फैसला शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवार और वकील राजीव राय की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।





पेड़ न काटने की डाली थी याचिका

याचिका में हिमालयी राज्य में पारिस्थितिक और सामाजिक-आर्थिक नुकसान को रोकने की बात कही गई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को 16 सितंबर तक जवाब दाखिल करने का नोटिस दिया है। हिमाचल प्रदेश के एडवोकेट जनरल अनूप कुमार रतन ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने भी हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। लेकिन उनकी याचिका सोमवार को लिस्ट नहीं हुई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों मामलों को एक साथ जोड़ा जाए।याचिकाकर्ता के वकील सुभाष चंद्रन के.आर. ने TOI को बताया कि हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने से राज्य भर में 50,000 से एक लाख सेब के पेड़ नष्ट हो जाएंगे। इनमें से लगभग 5,000 पेड़ शिमला जिले में पहले ही काटे जा चुके हैं।





हिमाचल को होगा नुकसान

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई से, खासकर मानसून के दौरान, हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन और मिट्टी के कटाव का खतरा बढ़ जाएगा। यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधि और पारिस्थितिक संवेदनशीलता के लिए जाना जाता है। याचिका में यह भी कहा गया कि सेब के बाग सिर्फ अतिक्रमण नहीं हैं, बल्कि वे मिट्टी को स्थिर करते हैं। आगे कहा गया कि ये पेड़ स्थानीय वन्यजीवों के लिए आवास प्रदान करते हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो हजारों किसानों की आजीविका का समर्थन करते हैं।







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