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Sawan Maas Katha : सावन मास व्रत कथा, अध्याय 2

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भगवान शिव बोले हे महाभाग सनत्कुमार! तुमने मुझसे जो श्रावण मास के विषय में पूछा है, वह अत्यंत उचित और पुण्यकारी है। तुम्हारी भक्ति, विनम्रता और श्रद्धा देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम्हारे मन में कोई द्वेष नहीं है, इसी कारण तुम सबके प्रिय भी हो। मैंने तुम्हारे पिता ब्रह्माजी का एक मस्तक काटा था, फिर भी तुमने मुझसे कोई बैर नहीं रखा — यह तुम्हारी महानता है। इसलिए मैं तुम्हें सावन मास का पूरा माहात्म्य सुनाऊंगा, ध्यान लगाकर सुनो।



हे योगियों में श्रेष्ठ!
मनुष्य को चाहिए कि श्रावण मास में नियमपूर्वक व्रत करें, विशेष रूप से नक्तव्रत (दिन में उपवास, रात को भोजन) करें और रोज़ रुद्राभिषेक करें। जो वस्तुएं मन को प्रिय हों, उनका त्याग कर दें। पुष्प, फल, तुलसीदल, बिल्वपत्र आदि से शिवजी का पूजन करें। इस मास में एक करोड़ शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करना और ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायक है। पूरे महीने फलाहार, उपवास और धरती पर शयन करने से पुण्य कई गुना बढ़ता है। श्रावण मास में पंचामृत से अभिषेक करना विशेष फलदायी है। जो भी शुभ कर्म इस माह में होता है, वह अनंत गुना फल देता है। इस माह में झूठ, हिंसा, व्यर्थ बातों से बचना चाहिए। पत्ते पर भोजन करना, शाकाहार करना और शाक का त्याग करना भी उत्तम माना गया है।



भक्त को चाहिए कि इस मास में प्रतिदिन भोर में स्नान कर शिव का पूजन करे। इस महीने किया गया मंत्रजप, रुद्राक्ष जप, गायत्री जप या वेदपाठ निश्चित रूप से सिद्धि प्रदान करता है। पुरुषसूक्त का पाठ विशेष फल देता है। गृहयज्ञ, कोटि होम, लक्ष होम आदि यज्ञ इस मास में शीघ्र फल देते हैं।



हे मुनिवर!
जो सावन में एक दिन भी व्रत नहीं करता, उसे नरक में कष्ट भोगना पड़ता है। सावन मास कामनाओं को पूरा करने वाला और मोक्ष देने वाला महीना है। भगवान शिव ने आगे बताया इस मास में सप्ताह के हर दिन के अनुसार अलग-अलग व्रत बताए गए हैं रविवार को सूर्यव्रत करें, सोमवार को शिवपूजन करें और नक्तव्रत करें, मंगलवार को मंगल गौरी व्रत, बुधवार व गुरुवार को सामान्य उपवास, शुक्रवार को जीवंतिका व्रत, शनिवार को हनुमान व नृसिंह व्रत करें।



श्रावण मास के विशेष व्रत भी हैं जैसे शुक्ल द्वितीया को औदुम्बर व्रत, तृतीया को गौरी व्रत, चतुर्थी को दूर्वा गणपति व्रत या विनायकी चतुर्थी, पंचमी को नागपंचमी, षष्ठी को सुपौदन व्रत, सप्तमी को शीतला व्रत, अष्टमी या चतुर्दशी को देवी पवित्रारोपण व्रत, नवमी को नक्तव्रत, दशमी को आशा व्रत, एकादशी-द्वादशी को विष्णुपूजन। पूर्णिमा को रक्षाबंधन, हयग्रीव अवतार आदि पर्व मनाए जाते हैं। कृष्ण पक्ष में संकष्ट चतुर्थी, पंचमी को ‘मानवकल्पादि व्रत’ और अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाना चाहिए। श्रावण मास की अमावस्या को पिठोराव्रत होता है। इसी माह में सूर्य देव ‘गभस्ति’ नाम से पूजनीय होते हैं। अगस्त्य मुनि का उदय भी इस महीने में होता है। अगस्त्य को अर्घ्य देना चाहिए।



श्रावण में वर्जित चीजें


श्रावण में शाक का, भाद्रपद में दही का, आश्विन में दूध का और कार्तिक में दाल का त्याग करना चाहिए। अगर कोई सभी मासों में न कर पाए तो सिर्फ श्रावण में ही शाक का त्याग करके पुण्यफल पा सकता है। भगवान शिव ने कहा जो सावन मास में व्रत, तप, स्नान, दान, मंत्रजप और उपवास करता है, वह मुझे और विष्णु दोनों को प्रसन्न करता है। मेरे और विष्णु में कोई भेद नहीं। जो भेद करता है, वह दुख पाता है। इसलिए हे सनत्कुमार! सावन मास में पूरी श्रद्धा से धर्म आचरण करो।

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