भारत में जब भी टाइगर की बात होती है तो मध्य प्रदेश का नाम सबसे पहले लिया जाता है। क्योंकि देश में सबसे ज्यादा बाघ इसी प्रदेश में हैं और इसी की वजह से आज दुनिया की 70 फीसदी आबादी भारत में है। मगर अब बाघों पर इसी राज्य में खतरा पैदा हो गया है। जंगल में शिकार करने वाला बाघ लगातार शिकारियों का निशाना बनता जा रहा है। इस साल मध्य प्रदेश में 36वें बाघ की मौत हो गई है।
यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है। एमपी के नर्मदापुरम में तवा नदी के पास एक बूढ़े नर बाघ का शव मिला है। निशान देखकर साफ पता चल रहा है कि यह काम शिकारियों का है। शिकार का यह पहला मामला सामने आया है। इससे चिंतित वन्यजीव अधिकारियों का मानना है कि फील्ड स्टाफ की लापरवाही की वजह से ऐसा हो रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में राजस्व भूमि के पास एक बूढ़ा बाघ मरा हुआ मिला। इसके पंजे गायब थे, जो साफ बता रहा था कि यहां फिर से शिकार सक्रिय हो गए हैं।
25 दिन में 6 मौत सतपुड़ा के ही जंगलों में करीब 10 दिन पहले एक और बाघ मरा हुआ मिला था। कहा गया कि यह बाघों के बीच आपसी संघर्ष की वजह से हुआ है। 19 अगस्त को संजय टाइगर रिजर्व में एक बाघ की मौत करंट लगने से हो गई। जानकारी के मुताबिक फसल बचाने के लिए लगाई गई बिजली की तार में बाघ फंस गया। टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर्स और वन अधिकारियों को पत्र भेजा गया है। इसके मुताबिक 20-25 दिनों में से 5-6 बाघ और तेंदुओं के मारे जाने की बात कही गई है।
मानसून में नहीं हो पा रही निगरानी पत्र में लिखा गया है कि M-Strips और मानसून में गश्त करने के लिए जरूरी निगरानी उपकरणों के इस्तेमाल न करने की वजह से यह दिक्कतें आ रही हैं। उपकरण होने के बावजूद मौत होना बताता है कि घोर लापरवाही बरती जा रही है। इस संबंध में वन अधिकारियों और कर्मचारियों को सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है। पेंच और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत के पीछे आपसी संघर्ष बताया गया। हालांकि चिट्ठी में कहा गया कि बाघों की आपसी लड़ाई का पता गांव वालों को पहले लगता है जबकि वन विभाग को बाद में। यह लापरवाही का नतीजा है।
यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है। एमपी के नर्मदापुरम में तवा नदी के पास एक बूढ़े नर बाघ का शव मिला है। निशान देखकर साफ पता चल रहा है कि यह काम शिकारियों का है। शिकार का यह पहला मामला सामने आया है। इससे चिंतित वन्यजीव अधिकारियों का मानना है कि फील्ड स्टाफ की लापरवाही की वजह से ऐसा हो रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में राजस्व भूमि के पास एक बूढ़ा बाघ मरा हुआ मिला। इसके पंजे गायब थे, जो साफ बता रहा था कि यहां फिर से शिकार सक्रिय हो गए हैं।
25 दिन में 6 मौत सतपुड़ा के ही जंगलों में करीब 10 दिन पहले एक और बाघ मरा हुआ मिला था। कहा गया कि यह बाघों के बीच आपसी संघर्ष की वजह से हुआ है। 19 अगस्त को संजय टाइगर रिजर्व में एक बाघ की मौत करंट लगने से हो गई। जानकारी के मुताबिक फसल बचाने के लिए लगाई गई बिजली की तार में बाघ फंस गया। टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर्स और वन अधिकारियों को पत्र भेजा गया है। इसके मुताबिक 20-25 दिनों में से 5-6 बाघ और तेंदुओं के मारे जाने की बात कही गई है।
मानसून में नहीं हो पा रही निगरानी पत्र में लिखा गया है कि M-Strips और मानसून में गश्त करने के लिए जरूरी निगरानी उपकरणों के इस्तेमाल न करने की वजह से यह दिक्कतें आ रही हैं। उपकरण होने के बावजूद मौत होना बताता है कि घोर लापरवाही बरती जा रही है। इस संबंध में वन अधिकारियों और कर्मचारियों को सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है। पेंच और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत के पीछे आपसी संघर्ष बताया गया। हालांकि चिट्ठी में कहा गया कि बाघों की आपसी लड़ाई का पता गांव वालों को पहले लगता है जबकि वन विभाग को बाद में। यह लापरवाही का नतीजा है।
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