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शराब पर नई नीति से बढ़ा आबकारी विभाग का राजस्व लेकिन घटी लखनऊ नगर निगम की आमदनी, कंपोजिट शॉप पर फंसा पेच

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लखनऊ: शराब की दुकानों की नई नीति से आबकारी विभाग का तो राजस्व बढ़ने की ओर है, लेकिन नगर निगम की आमदनी गिरने लगी है। शराब की कंपोजिट दुकानें खुलने के बाद ट्रेड लाइसेंस पर विवाद शुरू हो गया है। दुकानदार एक ही ट्रेड लाइसेंस की फीस देने पर अड़े हैं, जबकि नगर निगम हर कंपोजिट दुकान के लिए शराब और बीयर का अलग-अलग ट्रेड लाइसेंस शुल्क जमा करने का दबाव बना रहा है। इस कारण अब तक पांच फीसदी कंपोजिट दुकानों के भी ट्रेड लाइसेंस नहीं बन पाए हैं।



देशी शराब, अंग्रेजी शराब, बीयर की दुकान और मॉडल शॉप के लिए अलग-अलग लाइसेंस शुल्क तय है। नए वित्तीय वर्ष में आबकारी विभाग ने अंग्रेजी शराब और बीयर शॉप के लिए कंपोजिट शॉप के नाम से एक लाइसेंस जारी किया है। ये दुकानें खुलने के बाद नगर निगम के टैक्स इंस्पेक्टर बीयर और शराब बेचने पर अलग-अलग ट्रेड लाइसेंस बनवाने को कह रहे हैं, जबकि दुकानदारों का कहना है कि जब दुकान एक है तो दो लाइसेंस बनवाएं। इस विवाद के कारण शराब की दुकानों के ट्रेड लाइसेंस नहीं बन रहे। दुकानदारों का कहना है कि कंपोजिट शॉप के नाम से एक ही लाइसेंस शुल्क देंगे।



3366 में महज 168 का लाइसेंस बना

वित्तीय वर्ष 2024-25 में शराब की दुकानों, रेस्तरां और होटलों के ट्रेड लाइसेंस के मद में में नगर निगम की 35 लाख रुपये कमाई हुई थी। नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार ट्रेड लाइसेंस लेने वाले 3366 दुकानदार हैं, लेकिन मौजूदा वित्तीय वर्ष 2025-26 में 30 जून तक महज 168 लाइसेंस बन पाए हैं और रेवेन्यू के तौर पर महज 9 लाख रुपये जमा हुए हैं।





इस तरह तय है सालाना ट्रेड लाइसेंस शुल्क

  • ₹30,000 बीयर शॉप के लिए
  • ₹30,000 देसी शराब की दुकान के लिए
  • ₹55,000 अंग्रेजी शराब की दुकान का
  • ₹60,000 मॉडल शॉप का
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