पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में रिकॉर्ड 65 फीसदी मतदान के साथ जनता ने जोश दिखाया है। यह राज्य के चुनावी इतिहास में अब तक का सबसे ऊंचा मतदान है। अंतिम चरण मंगलवार को होगा और नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। हालांकि जातीय और गठबंधन आधारित राजनीति का केंद्र रहने वाले बिहार के मतदाता जागरूक और अप्रत्याशित माने जाते हैं। यही कारण है कि कोई भी दल अब तक 25 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर कभी हासिल नहीं कर पाया है।
बिहार में वोट शेयर की असली कहानी
2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 19.46 फीसदी वोट मिले, जबकि 2015 में उसका वोट शेयर 24.42 फीसदी था। आरजेडी ने 2020 में 23.11 फीसदी और 2015 में 18.35 फीसदी वोट हासिल किए।
जदयू का प्रदर्शन भी लगातार गिरावट में रहा। 2020 में जदयू को 15.39 फीसदी और 2015 में 16.83 फीसदी वोट शेयर रहा। कांग्रेस को 2020 में 9.48 प्रतिशत और 2015 में 6.66 प्रतिशथ वोट मिले।
दिलचस्प बात यह है कि बिहार में अक्सर सबसे बड़ी पार्टी हार जाती है और गठबंधन जीतता है। 2015 में बीजेपी वोटों के लिहाज से आगे थी, फिर भी आरजेडी-जदयू गठबंधन जीत गया। 2020 में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार एनडीए ने बनाई। यही बिहार की राजनीति का नियम है- 'यहां सबसे बड़ा नहीं, सबसे सही गठबंधन जीतता है।'
2025 के चुनाव के नए समीकरण और नए चेहरे
इस बार एनडीए में बीजेपी, जदयू, एलजेपी (चिराग पासवान), हम और उपेंद्र कुशवाह की रालोमो शामिल हैं। वहीं महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल और वीआईपी हैं। बीजेपी और जदयू दोनों 101-101 सीटों पर लड़ रही हैं। यह पहली बार है, जब दोनों बराबरी के साथ मैदान में हैं। एनडीए में लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें दी गई हैं। बीजेपी ने एक बार फिर नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा घोषित किया है। वहीं, महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव सीएम उम्मीदवार हैं और मुकेश सहनी की वीआईपी को डिप्टी सीएम पद का वादा किया गया है।
2020 में कैसा था जेडीयू-बीजेपी, राजद-कांग्रेस का स्ट्राइक रेट?
2020 में बीजेपी का स्ट्राइक रेट 67 प्रतिशत (110 में से 74 सीटें) था, जबकि आरजेडी का 52 फीसदी (144 में से 75 सीटें) रहा। कांग्रेस ने 70 में से केवल 19 सीटें जीतीं, जिससे उसका स्ट्राइक रेट 27 प्रतिशत रहा। हालांकि बीजेपी का स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा था, लेकिन नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने। विश्लेषकों का मानना है कि 2020 में चिराग पासवान की बगावत ने जदयू को नुकसान पहुंचाया, जबकि कांग्रेस ने आरजेडी के प्रदर्शन को कमजोर किया।
2025 में NDA के पक्ष में काम कर रहे पांच फैक्टर
2025 के चुनाव में बीजेपी के लिए पांच फैक्टर काम कर सकते हैं। पहला- महिलाओं के लिए 10,000 रुपये की योजना, जिसने 1.3 करोड़ महिला मतदाताओं को साधा है। दूसरा- वृद्धावस्था पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये की गई। तीसरा- 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना, जिसका श्रेय नीतीश कुमार को मिल रहा है। चौधा- नीतीश कुमार की स्थिर और भरोसेमंद छवि, और पांचवा फैक्टर- पीएम मोदी का बिहार चुनाव में 'जंगल राज' नैरेटिव तैयार करना, जो लालू-राबड़ी शासनकाल की याद दिलाता है।
महागठबंधन की ताकत के पांच आधार
इस बार के बिहार चुनाव में महागठबंधन के लिए भी पांच चीजें काम कर सकती हैं। पहला- तेजस्वी यादव का युवा कनेक्शन, खासकर पहले बार वोट देने वालों में लोकप्रियता। दूसरा- हर परिवार को नौकरी का वादा, जो बेरोजगारी झेल रहे राज्य में बड़ा मुद्दा है। तीसरा- महिलाओं को 30,000 रुपये प्रति साल नकद सहायता का वादा, जो एनडीए की योजना का जवाब है। चौथा- नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर। और पांचवा- महागठबंधन का स्पष्ट नेतृत्व, तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा घोषित करना।
बिहार चुनाव के नतीजे 14 नवबंर को आएंगे, तब पता चलेगा कि बिहार की जनता ने एनडीए की कल्याणकारी योजनाओं और मोदी-नीतीश ब्रांड पर बटन दबाया है या महागठबंधन के एजेंडे पर।
बिहार में वोट शेयर की असली कहानी
2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 19.46 फीसदी वोट मिले, जबकि 2015 में उसका वोट शेयर 24.42 फीसदी था। आरजेडी ने 2020 में 23.11 फीसदी और 2015 में 18.35 फीसदी वोट हासिल किए।
जदयू का प्रदर्शन भी लगातार गिरावट में रहा। 2020 में जदयू को 15.39 फीसदी और 2015 में 16.83 फीसदी वोट शेयर रहा। कांग्रेस को 2020 में 9.48 प्रतिशत और 2015 में 6.66 प्रतिशथ वोट मिले।
दिलचस्प बात यह है कि बिहार में अक्सर सबसे बड़ी पार्टी हार जाती है और गठबंधन जीतता है। 2015 में बीजेपी वोटों के लिहाज से आगे थी, फिर भी आरजेडी-जदयू गठबंधन जीत गया। 2020 में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार एनडीए ने बनाई। यही बिहार की राजनीति का नियम है- 'यहां सबसे बड़ा नहीं, सबसे सही गठबंधन जीतता है।'
2025 के चुनाव के नए समीकरण और नए चेहरे
इस बार एनडीए में बीजेपी, जदयू, एलजेपी (चिराग पासवान), हम और उपेंद्र कुशवाह की रालोमो शामिल हैं। वहीं महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल और वीआईपी हैं। बीजेपी और जदयू दोनों 101-101 सीटों पर लड़ रही हैं। यह पहली बार है, जब दोनों बराबरी के साथ मैदान में हैं। एनडीए में लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें दी गई हैं। बीजेपी ने एक बार फिर नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा घोषित किया है। वहीं, महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव सीएम उम्मीदवार हैं और मुकेश सहनी की वीआईपी को डिप्टी सीएम पद का वादा किया गया है।
2020 में कैसा था जेडीयू-बीजेपी, राजद-कांग्रेस का स्ट्राइक रेट?
2020 में बीजेपी का स्ट्राइक रेट 67 प्रतिशत (110 में से 74 सीटें) था, जबकि आरजेडी का 52 फीसदी (144 में से 75 सीटें) रहा। कांग्रेस ने 70 में से केवल 19 सीटें जीतीं, जिससे उसका स्ट्राइक रेट 27 प्रतिशत रहा। हालांकि बीजेपी का स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा था, लेकिन नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने। विश्लेषकों का मानना है कि 2020 में चिराग पासवान की बगावत ने जदयू को नुकसान पहुंचाया, जबकि कांग्रेस ने आरजेडी के प्रदर्शन को कमजोर किया।
2025 में NDA के पक्ष में काम कर रहे पांच फैक्टर
2025 के चुनाव में बीजेपी के लिए पांच फैक्टर काम कर सकते हैं। पहला- महिलाओं के लिए 10,000 रुपये की योजना, जिसने 1.3 करोड़ महिला मतदाताओं को साधा है। दूसरा- वृद्धावस्था पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये की गई। तीसरा- 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना, जिसका श्रेय नीतीश कुमार को मिल रहा है। चौधा- नीतीश कुमार की स्थिर और भरोसेमंद छवि, और पांचवा फैक्टर- पीएम मोदी का बिहार चुनाव में 'जंगल राज' नैरेटिव तैयार करना, जो लालू-राबड़ी शासनकाल की याद दिलाता है।
महागठबंधन की ताकत के पांच आधार
इस बार के बिहार चुनाव में महागठबंधन के लिए भी पांच चीजें काम कर सकती हैं। पहला- तेजस्वी यादव का युवा कनेक्शन, खासकर पहले बार वोट देने वालों में लोकप्रियता। दूसरा- हर परिवार को नौकरी का वादा, जो बेरोजगारी झेल रहे राज्य में बड़ा मुद्दा है। तीसरा- महिलाओं को 30,000 रुपये प्रति साल नकद सहायता का वादा, जो एनडीए की योजना का जवाब है। चौथा- नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर। और पांचवा- महागठबंधन का स्पष्ट नेतृत्व, तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा घोषित करना।
बिहार चुनाव के नतीजे 14 नवबंर को आएंगे, तब पता चलेगा कि बिहार की जनता ने एनडीए की कल्याणकारी योजनाओं और मोदी-नीतीश ब्रांड पर बटन दबाया है या महागठबंधन के एजेंडे पर।
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