नई दिल्ली: भारत का रूस के साथ व्यापार, खासतौर से तेल आयात, अब अमेरिका और पश्चिमी देशों को बहुत अखरने लगा है। उन्होंने भारत पर तलवार लटका दी है। यह किसी 'अग्निपरीक्षा' से कम नहीं है। भारत पर अपनी ऑयल स्ट्रैटेजी को बदलने का भारी दबाव है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारत का रूसी तेल आयात पश्चिमी देशों के बयानबाजी का केंद्र बना हुआ है। नाटो (NATO) के महासचिव मार्क रुटे और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं ने भारत, चीन और ब्राजील को रूस के साथ व्यापार जारी रखने पर सेकेंडरी सैंक्शनंस और भारी टैरिफ की चेतावनी दे दी है। इन धमकियों को रूस पर दबाव डालने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है ताकि वह शांति वार्ता के लिए गंभीर हो। हालांकि, भारत ने अब तक रूस से अपने तेल आयात में कटौती नहीं की है। अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को उसने सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा है।
वहीं, इकोनॉमिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) का मानना है कि भारत को रूस से तेल खरीदने के अपने फैसले पर अडिग रहना चाहिए। उसे अमेरिका के दबाव को खारिज कर देना चाहिए। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, रियायती रूसी कच्चे तेल ने ग्लोबल उथल-पुथल के बावजूद भारत को महंगाई कंट्रोल में रखने और मैक्रोइकॉनोमिक स्थिरता बनाए रखने में भूमिका निभाई है। उनका तर्क है कि बाहरी दबाव में अपनी नीति बदलने से अमेरिकी धमकियां खत्म नहीं होंगी, बल्कि यह केवल और अधिक मांगों को दावत देगा। श्रीवास्तव ने यह भी जोड़ा कि वाशिंगटन के साथ एक व्यापार सौदा भी संरक्षण की गारंटी नहीं देगा। कारण है कि ट्रंप बाद में टारगेट बदल सकते हैं।
भारत पर लटक रही है तलवार अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध और टैरिफ की अनिश्चितताओं के बीच भारत का रूस के साथ व्यापार फिर से पश्चिमी देशों की बातों में छाया हुआ है। ये बातें रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर हो रही हैं। NATO के सेक्रेटरी जनरल मार्क रूटे ने बुधवार को कहा कि अगर भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश रूस के साथ व्यापार करना जारी रखते हैं तो उन्हें सेकेंडरी सैंक्शंस का बहुत बुरा असर झेलना पड़ सकता है। रूटे ने वाशिंगटन में कहा कि रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन करके कहना चाहिए कि उन्हें शांति वार्ता को लेकर गंभीर होना पड़ेगा। नहीं तो इसका ब्राजील, भारत और चीन पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।
कुछ हफ्ते पहले भारत में अमेरिका के एक बिल को लेकर चिंता जताई गई थी। इस बिल में रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी धमकी दी थी कि अगर 50 दिनों के अंदर रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौता नहीं होता है तो रूसी सामान खरीदने वालों पर 100% की दर से 'कड़े' सेकेंडी टैरिफ लगाए जाएंगे।
पुतिन पर दबाव बनाने की रणनीति
इंडस्ट्री के जानकारों और एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये सब पुतिन पर दबाव बनाने की रणनीति है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि रूस से आयात करने वाले देशों पर दबाव बनाया जा सके। भारत ने अभी तक रूस से तेल का आयात कम नहीं किया है। भारत का कहना है कि वह सबसे अच्छी कीमत पर तेल खरीदने को तैयार है, बशर्ते कि तेल पर कोई सैंक्शन न लगा हो। अभी रूसी तेल पर सीधे तौर पर कोई सैंक्शन नहीं है। लेकिन, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत सीमा तय की है। इसके अनुसार, अगर रूसी तेल की कीमत इस स्तर से ऊपर जाती है तो पश्चिमी शिपर्स और इंश्योरेंस कंपनियां रूसी तेल के व्यापार में शामिल नहीं हो सकती हैं। भारत और चीन रूसी तेल के सबसे बड़े आयातक हैं।
भारत सरकार अमेरिकी सांसदों और ट्रंप प्रशासन के साथ बातचीत कर रही है ताकि भारत की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर अपनी चिंताएं बता सके। भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 88% आयात करता है। रूस लगभग तीन सालों से भारत के तेल आयात का मुख्य स्रोत रहा है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों ने रूसी तेल से किनारा कर लिया। इसके बाद रूस ने इच्छुक खरीदारों को अपने तेल पर छूट देनी शुरू कर दी। भारतीय रिफाइनर ने तुरंत इस मौके का फायदा उठाया। नतीजा ये हुआ कि रूस, जो पहले भारत को तेल की थोड़ी-बहुत सप्लाई करता था, अब भारत के लिए कच्चे तेल का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
इसने पारंपरिक पश्चिम एशियाई सप्लायर्स को पीछे छोड़ दिया है। समय के साथ छूट में बदलाव आया है। लेकिन, पश्चिमी देशों के दबाव और रूस के तेल व्यापार पर लगे सीमित सैंक्शंस के बावजूद भारत में रूसी तेल का प्रवाह मजबूत बना हुआ है। रूस के साथ बढ़ते तेल व्यापार ने रूस को भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों की लिस्ट में भी ला दिया है।
रूस से तेल आयात 11 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर
भारत का रूस से तेल का आयात जून में 11 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। इससे ये बात और पक्की हो गई कि नई दिल्ली के तेल आयात में रूस का दबदबा लगातार बना हुआ है। टैंकर के आंकड़ों के अनुसार, जून में भारत के कुल तेल आयात में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी 43.2% थी। ये आंकड़ा अगले तीन सबसे बड़े सप्लायर्स - पश्चिम एशियाई देशों इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात - के कुल आयात से भी ज्यादा है।
ग्लोबल कमोडिटी मार्केट एनालिटिक्स फर्म केप्लर के वेसल ट्रैकिंग डेटा के अनुसार, जून में भारत ने रूस से 2.08 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) कच्चे तेल का आयात किया। ये जुलाई 2024 के बाद सबसे ज्यादा है। महीने-दर-महीने के आधार पर 12.2% ज्यादा है। भारत के आधिकारिक व्यापार आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 में रूस से तेल का आयात 8.74 करोड़ टन था। ये भारत के कुल तेल आयात 24.4 करोड़ टन का लगभग 36% है।
यूक्रेन में युद्ध से पहले भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 2% से भी कम थी। 2024-25 में रूस से भारत के तेल आयात का मूल्य 50 अरब डॉलर से ज्यादा था। यह भारत के कुल तेल आयात 143 अरब डॉलर का 35% है।
केप्लर में रिफाइनिंग एंड मॉडलिंग के लीड रिसर्च एनालिस्ट सुमित रितोलिया ने कहा, 'रूसी तेल की मात्रा में ये उछाल कमर्शियल प्रोत्साहन और भू-राजनीतिक बदलावों को दर्शाता है। रूसी तेल छूट, भुगतान के तरीकों और वैकल्पिक शिपिंग और इंश्योरेंस नेटवर्क के जरिए लॉजिस्टिकल फ्लेक्सिबिलिटी के कारण बहुत प्रतिस्पर्धी बना हुआ है। पश्चिमी देशों के बढ़ते सैंक्शंस के बावजूद भारतीय रिफाइनर रूस से खरीद को बनाए रखने और यहां तक कि बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। जब तक कोई गंभीर लॉजिस्टिकल या रेगुलेटरी रुकावट नहीं आती है, तब तक ये ट्रेंड आने वाले महीनों में भी जारी रहने की संभावना है।'
इन सभी बातों को देखते हुए यह संभावना कम ही है कि भारत रूस से अपनी ऑयल इम्पोर्ट स्ट्रैटेजी में किसी तरह का बदलाव करेगा। यह भारत के हित में भी नहीं है।
वहीं, इकोनॉमिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) का मानना है कि भारत को रूस से तेल खरीदने के अपने फैसले पर अडिग रहना चाहिए। उसे अमेरिका के दबाव को खारिज कर देना चाहिए। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, रियायती रूसी कच्चे तेल ने ग्लोबल उथल-पुथल के बावजूद भारत को महंगाई कंट्रोल में रखने और मैक्रोइकॉनोमिक स्थिरता बनाए रखने में भूमिका निभाई है। उनका तर्क है कि बाहरी दबाव में अपनी नीति बदलने से अमेरिकी धमकियां खत्म नहीं होंगी, बल्कि यह केवल और अधिक मांगों को दावत देगा। श्रीवास्तव ने यह भी जोड़ा कि वाशिंगटन के साथ एक व्यापार सौदा भी संरक्षण की गारंटी नहीं देगा। कारण है कि ट्रंप बाद में टारगेट बदल सकते हैं।
भारत पर लटक रही है तलवार अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध और टैरिफ की अनिश्चितताओं के बीच भारत का रूस के साथ व्यापार फिर से पश्चिमी देशों की बातों में छाया हुआ है। ये बातें रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर हो रही हैं। NATO के सेक्रेटरी जनरल मार्क रूटे ने बुधवार को कहा कि अगर भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश रूस के साथ व्यापार करना जारी रखते हैं तो उन्हें सेकेंडरी सैंक्शंस का बहुत बुरा असर झेलना पड़ सकता है। रूटे ने वाशिंगटन में कहा कि रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन करके कहना चाहिए कि उन्हें शांति वार्ता को लेकर गंभीर होना पड़ेगा। नहीं तो इसका ब्राजील, भारत और चीन पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।
कुछ हफ्ते पहले भारत में अमेरिका के एक बिल को लेकर चिंता जताई गई थी। इस बिल में रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी धमकी दी थी कि अगर 50 दिनों के अंदर रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौता नहीं होता है तो रूसी सामान खरीदने वालों पर 100% की दर से 'कड़े' सेकेंडी टैरिफ लगाए जाएंगे।
पुतिन पर दबाव बनाने की रणनीति
इंडस्ट्री के जानकारों और एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये सब पुतिन पर दबाव बनाने की रणनीति है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि रूस से आयात करने वाले देशों पर दबाव बनाया जा सके। भारत ने अभी तक रूस से तेल का आयात कम नहीं किया है। भारत का कहना है कि वह सबसे अच्छी कीमत पर तेल खरीदने को तैयार है, बशर्ते कि तेल पर कोई सैंक्शन न लगा हो। अभी रूसी तेल पर सीधे तौर पर कोई सैंक्शन नहीं है। लेकिन, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत सीमा तय की है। इसके अनुसार, अगर रूसी तेल की कीमत इस स्तर से ऊपर जाती है तो पश्चिमी शिपर्स और इंश्योरेंस कंपनियां रूसी तेल के व्यापार में शामिल नहीं हो सकती हैं। भारत और चीन रूसी तेल के सबसे बड़े आयातक हैं।
भारत सरकार अमेरिकी सांसदों और ट्रंप प्रशासन के साथ बातचीत कर रही है ताकि भारत की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर अपनी चिंताएं बता सके। भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 88% आयात करता है। रूस लगभग तीन सालों से भारत के तेल आयात का मुख्य स्रोत रहा है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों ने रूसी तेल से किनारा कर लिया। इसके बाद रूस ने इच्छुक खरीदारों को अपने तेल पर छूट देनी शुरू कर दी। भारतीय रिफाइनर ने तुरंत इस मौके का फायदा उठाया। नतीजा ये हुआ कि रूस, जो पहले भारत को तेल की थोड़ी-बहुत सप्लाई करता था, अब भारत के लिए कच्चे तेल का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
इसने पारंपरिक पश्चिम एशियाई सप्लायर्स को पीछे छोड़ दिया है। समय के साथ छूट में बदलाव आया है। लेकिन, पश्चिमी देशों के दबाव और रूस के तेल व्यापार पर लगे सीमित सैंक्शंस के बावजूद भारत में रूसी तेल का प्रवाह मजबूत बना हुआ है। रूस के साथ बढ़ते तेल व्यापार ने रूस को भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों की लिस्ट में भी ला दिया है।
रूस से तेल आयात 11 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर
भारत का रूस से तेल का आयात जून में 11 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। इससे ये बात और पक्की हो गई कि नई दिल्ली के तेल आयात में रूस का दबदबा लगातार बना हुआ है। टैंकर के आंकड़ों के अनुसार, जून में भारत के कुल तेल आयात में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी 43.2% थी। ये आंकड़ा अगले तीन सबसे बड़े सप्लायर्स - पश्चिम एशियाई देशों इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात - के कुल आयात से भी ज्यादा है।
ग्लोबल कमोडिटी मार्केट एनालिटिक्स फर्म केप्लर के वेसल ट्रैकिंग डेटा के अनुसार, जून में भारत ने रूस से 2.08 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) कच्चे तेल का आयात किया। ये जुलाई 2024 के बाद सबसे ज्यादा है। महीने-दर-महीने के आधार पर 12.2% ज्यादा है। भारत के आधिकारिक व्यापार आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 में रूस से तेल का आयात 8.74 करोड़ टन था। ये भारत के कुल तेल आयात 24.4 करोड़ टन का लगभग 36% है।
यूक्रेन में युद्ध से पहले भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 2% से भी कम थी। 2024-25 में रूस से भारत के तेल आयात का मूल्य 50 अरब डॉलर से ज्यादा था। यह भारत के कुल तेल आयात 143 अरब डॉलर का 35% है।
केप्लर में रिफाइनिंग एंड मॉडलिंग के लीड रिसर्च एनालिस्ट सुमित रितोलिया ने कहा, 'रूसी तेल की मात्रा में ये उछाल कमर्शियल प्रोत्साहन और भू-राजनीतिक बदलावों को दर्शाता है। रूसी तेल छूट, भुगतान के तरीकों और वैकल्पिक शिपिंग और इंश्योरेंस नेटवर्क के जरिए लॉजिस्टिकल फ्लेक्सिबिलिटी के कारण बहुत प्रतिस्पर्धी बना हुआ है। पश्चिमी देशों के बढ़ते सैंक्शंस के बावजूद भारतीय रिफाइनर रूस से खरीद को बनाए रखने और यहां तक कि बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। जब तक कोई गंभीर लॉजिस्टिकल या रेगुलेटरी रुकावट नहीं आती है, तब तक ये ट्रेंड आने वाले महीनों में भी जारी रहने की संभावना है।'
इन सभी बातों को देखते हुए यह संभावना कम ही है कि भारत रूस से अपनी ऑयल इम्पोर्ट स्ट्रैटेजी में किसी तरह का बदलाव करेगा। यह भारत के हित में भी नहीं है।
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