दुशांबे: भारत के हाथों से ताजिकिस्तान का अयनी एयरबेस निकल गया है। ताजिकिस्तान ने अयनी एयरबेस के लिए भारत के साथ कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद भारत को अयनी एयरबेस खाली करना पड़ा। दिप्रिंट समेत कई मीडिया संस्थानों ने दावा किया है कि भारत ने करीब दो दशकों के बाद मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में एक रणनीतिक सैन्य अड्डे पर अपनी उपस्थिति समाप्त कर दी है। इसके पीछे चीन और रूस को संभावित कारण बताया गया है।
अयनी एयरबेस को गिस्सार सैन्य हवाई अड्डा के नाम से भी जाना जाता है, वो एक वक्त भारतीय वायुसेना के लिए सेन्ट्रल एशिया में रणनीतिक एयरबेस था। अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद भारतीय लोगों को निकालने के लिए भारत ने इसी एयरबेस का इस्तेमाल किया था और पिछले दो दशकों से ये एयरबेस, भारत को रणनीतिक बढ़त देता रहा है। लेकिन अब ये भारत के हाथों से निकल गया है।
रूस और चीन ने बनाया था ताजिकिस्तान पर प्रेशर
अयनी एयरबेस ने भारत को उपमहाद्वीप के बाहर भारतीय वायुसेना को रणनीतिक रूप से मजबूती प्रदान की और पाकिस्तान की हवाई सीमा की सीमाओं को दरकिनार करते हुए मध्य एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की क्षमता प्रदान की। ताजिकिस्तान, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा था, उसकी सीमा अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान से लगती है। इसीलिए भारत का वहां से हटना, इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे मध्य एशिया रूस, चीन और भारत, तीन परमाणु शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा का एक क्षेत्र बन गया है, जो इस क्षेत्र के सुरक्षा संतुलन को आकार देने की कोशिश कर रही हैं।
दप्रिंट की बुधवार की रिपोर्ट में कहा गया है कि, ताजिकिस्तान ने 2021 में भारत को बताया था कि एयरबेस को लेकर लीज नहीं बढ़ाया जाएगा। जिसके बाद भारत ने साल 2022 में अयनी एयरबेस से वापसी शुरू कर दी। रिपोर्ट में अज्ञात सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि बेस पर गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों को लेकर रूस और चीन के दबाव की वजह से ताजिकिस्तान एयरबेस के लीज का विस्तार नहीं करना चाहता था। इंडिया टीवी वेबसाइट के मुताबिक, भारत ने ताजिकिस्तान के साथ 2002 के एक समझौते के तहत लगभग 25 वर्षों तक इस एयरबेस को ऑपरेट कर रहा था, जिसके तहत नई दिल्ली ने इस एयरेबस को नये सिरे से डेवलप किया। भारत ने इस एयरबेस को पूरी तरह से सैन्य इस्तेमाल के लायक बना दिया था और यहां पर भारतीय Su-30MKI लड़ाकू विमान भी उतरता था।
दोस्त रूस ने भारत को क्यों दिया झटका?
दरअसल, ताजिकिस्तान न सिर्फ रूस की "कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (CSTO)" का सदस्य है, बल्कि वहां रूस का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य ठिकाना भी स्थित है। दूसरी तरफ, चीन ताजिकिस्तान की सीमा से सटा हुआ है और उसने इस देश में भारी निवेश कर रखा है। खासकर सीमा सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी परियोजनाओं में। ब्रिटेन स्थित ब्लूम्सबरी इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी इंस्टीट्यूट (BISI) के मुताबिक, ताजिकिस्तान को चीन, रूस, भारत, अमेरिका, ईरान और यूरोपीय संघ से भी आर्थिक और सैन्य सहायता मिलती रही है। BISI की सीनियर जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट एंड्रिया स्टाउडर ने जुलाई में एक रिपोर्ट में लिखा था कि "जहां रूस और चीन का प्रभाव गहरा है, वहीं भारत के पास अब भी अवसर है कि वह सुरक्षा से आगे बढ़कर आर्थिक सहयोग के जरिए अपनी भूमिका मजबूत करे।"
कुल मिलाकर फिलहाल देखा जाए तो ताजिकिस्तान के अयनी बेस से भारत के बाहर निकलने से रूस और चीन का प्रभाव और मजबूत होगा, जिससे मध्य एशिया में नई दिल्ली की सैन्य पहुंच सीमित हो जाएगी। क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखने के लिए भारत अब आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों पर निर्भर होना पड़ेगा।
अयनी एयरबेस को गिस्सार सैन्य हवाई अड्डा के नाम से भी जाना जाता है, वो एक वक्त भारतीय वायुसेना के लिए सेन्ट्रल एशिया में रणनीतिक एयरबेस था। अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद भारतीय लोगों को निकालने के लिए भारत ने इसी एयरबेस का इस्तेमाल किया था और पिछले दो दशकों से ये एयरबेस, भारत को रणनीतिक बढ़त देता रहा है। लेकिन अब ये भारत के हाथों से निकल गया है।
रूस और चीन ने बनाया था ताजिकिस्तान पर प्रेशर
अयनी एयरबेस ने भारत को उपमहाद्वीप के बाहर भारतीय वायुसेना को रणनीतिक रूप से मजबूती प्रदान की और पाकिस्तान की हवाई सीमा की सीमाओं को दरकिनार करते हुए मध्य एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की क्षमता प्रदान की। ताजिकिस्तान, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा था, उसकी सीमा अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान से लगती है। इसीलिए भारत का वहां से हटना, इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे मध्य एशिया रूस, चीन और भारत, तीन परमाणु शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा का एक क्षेत्र बन गया है, जो इस क्षेत्र के सुरक्षा संतुलन को आकार देने की कोशिश कर रही हैं।
दप्रिंट की बुधवार की रिपोर्ट में कहा गया है कि, ताजिकिस्तान ने 2021 में भारत को बताया था कि एयरबेस को लेकर लीज नहीं बढ़ाया जाएगा। जिसके बाद भारत ने साल 2022 में अयनी एयरबेस से वापसी शुरू कर दी। रिपोर्ट में अज्ञात सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि बेस पर गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों को लेकर रूस और चीन के दबाव की वजह से ताजिकिस्तान एयरबेस के लीज का विस्तार नहीं करना चाहता था। इंडिया टीवी वेबसाइट के मुताबिक, भारत ने ताजिकिस्तान के साथ 2002 के एक समझौते के तहत लगभग 25 वर्षों तक इस एयरबेस को ऑपरेट कर रहा था, जिसके तहत नई दिल्ली ने इस एयरेबस को नये सिरे से डेवलप किया। भारत ने इस एयरबेस को पूरी तरह से सैन्य इस्तेमाल के लायक बना दिया था और यहां पर भारतीय Su-30MKI लड़ाकू विमान भी उतरता था।
दोस्त रूस ने भारत को क्यों दिया झटका?
दरअसल, ताजिकिस्तान न सिर्फ रूस की "कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (CSTO)" का सदस्य है, बल्कि वहां रूस का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य ठिकाना भी स्थित है। दूसरी तरफ, चीन ताजिकिस्तान की सीमा से सटा हुआ है और उसने इस देश में भारी निवेश कर रखा है। खासकर सीमा सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी परियोजनाओं में। ब्रिटेन स्थित ब्लूम्सबरी इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी इंस्टीट्यूट (BISI) के मुताबिक, ताजिकिस्तान को चीन, रूस, भारत, अमेरिका, ईरान और यूरोपीय संघ से भी आर्थिक और सैन्य सहायता मिलती रही है। BISI की सीनियर जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट एंड्रिया स्टाउडर ने जुलाई में एक रिपोर्ट में लिखा था कि "जहां रूस और चीन का प्रभाव गहरा है, वहीं भारत के पास अब भी अवसर है कि वह सुरक्षा से आगे बढ़कर आर्थिक सहयोग के जरिए अपनी भूमिका मजबूत करे।"
कुल मिलाकर फिलहाल देखा जाए तो ताजिकिस्तान के अयनी बेस से भारत के बाहर निकलने से रूस और चीन का प्रभाव और मजबूत होगा, जिससे मध्य एशिया में नई दिल्ली की सैन्य पहुंच सीमित हो जाएगी। क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखने के लिए भारत अब आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों पर निर्भर होना पड़ेगा।
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