इस्लामाबाद/नई दिल्ली: साल 1971 की लड़ाई में भारतीय नौसेना ने जब कराची पोर्ट पर बमबारी की थी तो कम से कम एक हफ्ते कर आग जलती रही थी। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने अपने कुछ युद्धपोत को भारतीय नौसेना से बचाने के लिए ईरान की सीमा के करीब और कुछ युद्धपोत को ग्वादर पोर्ट भेज दिया था। भारतीय नौसेना की अरब सागर में मजबूत मौजूदगी से पाकिस्तान हमेशा डरा रहता है। लेकिन इस बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवाली भारतीय नौसेना के साथ समुद्र में मनाई है। यह उनका सशस्त्र बलों के साथ 12वां दिवाली उत्सव था, लेकिन नौसेना के साथ पहला। इसीलिए पाकिस्तान को कुछ खास संदेश भेजा गया है।
प्रधानमंत्री मोदी का INS Vikrant पर जाना और नौसेना के साथ दिवाली मनाना कोई प्रतीकात्मक कदम नहीं था। बल्कि पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर (GHQ) को भेजा गया एक सशक्त राजनीतिक संदेश था। इंडिया टुडे में लिखते हुए प्रसिद्ध डिफेंस जर्नलिस्ट संदीप उन्नीनाथन ने इसे पाकिस्तान के लिए खास रणनीतिक संदेश माना है। समुद्र में तैनात आईएनएस विक्रांत पर मौजूद जवानों से संवाद करते हुए मोदी ने कहा, कि "कुछ महीने पहले ही हमने देखा कि कैसे INS Vikrant का नाम पाकिस्तान में डर की लहरें पैदा कर गया। यही उसकी शक्ति है, एक ऐसा नाम जो दुश्मन का साहस तोड़ देता है।"
INS Vikrant से क्यों डरता है पाकिस्तान?
दरअसल, सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला था कि मई महीने में संघर्ष के दौरान पाकिस्तान नौसेना ने कराची और ओरमारा में अपने पारंपरिक नौसेना अड्डे खाली कर दिए थे। इस दौरान उसने अपने युद्धपोतों को नागरिक बंदरगाहों और चीन की तरफ से ऑपरेट किए जाने वाले ग्वादर पोर्ट पर भेज दिया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि समुद्र में 300 नॉटिकल मील दक्षिण दिशा में भारत का विक्रांत कैरियर बैटल ग्रुप ऑपरेट हो रहा था, जिसके चार एस्कॉर्ट जहाजों पर ब्रह्मोस मिसाइलें लक्ष्य साधने को तैयार थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर 10 मई को युद्धविराम लागू नहीं होता और युद्ध थोड़ा और लंबा होता तो कराची बंदरगाह पर हमला तय हो गया था, बस आदेश मिलने का इंतजार था।
संदीप उन्नीनाथन ने लिखा है कि अगर भारत ने उस समय पाकिस्तान के 1,000 किलोमीटर लंबे समुद्री तट पर हमला किया होता, तो इसके सीधे आर्थिक और सामरिक परिणाम होते। विदेशी जहाज पाकिस्तानी बंदरगाहों से दूर चले जाते, तेल आपूर्ति रूक जाती (पाकिस्तान हर दिन 5 लाख बैरल तेल आयात करता है) और पाकिस्तान, जिसकी ऊर्जा भंडारन क्षमता सिर्फ 10-20 दिनों के लिए है, वहां तेल के लिए अफरातफरी मच जाती। इसके अलावा, भारतीय नौसैनिक नाकाबंदी, पाकिस्तान को करीब करीब लैंड लॉक्ड देश बना देती। यानि पाकिस्तान ऊर्जा आयात के लिए पूरी तरह से अपने पड़ोसियों ईरान, अफगानिस्तान और चीन पर निर्भर हो जाता।
पाकिस्तान के लिए अपने बंदरगाह बचाना क्यों है मुश्किल?
दरअसल, पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी दिक्कत उसका भूगोल और नौसेना की सीमित क्षमता है। अरब सागर से सटी उसकी तटीय रेखा एक बंद कॉरिडोर जैसी है। संदीप उन्नीनाथन लिखते हैं कि उस क्षेत्र से बचकर बाहर निकलने के रास्ते कम हैं। इसके ऊपर, भारतीय नौसेना के मुकाबले में पाकिस्तानी नौसेना संख्या और तकनीक दोनों में पिछड़ी हुई है। हालिया ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना ने कराची के पास मलिर कैंटोनमेंट में अमेरिकी सर्विलांस रडार को नष्ट कर दिया, जिससे पाकिस्तान की नौसैनिक तैनाती लगभग निष्क्रिय हो गई।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि युद्ध के समय पाकिस्तान की नौसेना अपने जहाजों को बंदरगाहों से बाहर नहीं निकाल पाएगी, जिससे देश की समुद्री गतिविधियां ठप हो जाएंगी। शांति काल में यही नौसेना अभ्यासों और एंटी-पायरेसी अभियानों के लिए उपयोगी रहती है, लेकिन भारत के खिलाफ संघर्ष के दौरान पाकिस्तान की नौसेना किसी काम की नहीं रहती है।
पीएम मोदी ने समंदर से कैसे दी पाकिस्तान को चेतावनी?
1971 के युद्ध में भी भारत ने पाकिस्तान को समुद्र से करारी शिकस्त दी थी। उस दो हफ्ते की लड़ाई में भारतीय नौसेना ने कराची के पास पाकिस्तानी जहाजों को डुबो दिया था। PNS खैबर, PNS मुहाफिज और MV Venus Challenger समेत कई युद्धपोत को भारत ने पूरी तरह से तबाह कर दिए थे। जिससे पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तानी नौसेना लगभग निष्क्रिय हो गई थी।
इसके अलावा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भी INS Vikrant के नेतृत्व में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान की सेनाओं के भागने के रास्ते को ब्लॉक कर दिया था। इसीलिए मोदी ने साफ संदेश दिया है कि इतिहास खुद को दोहरा सकता है। क्योंकि 2025 में पाकिस्तान के युद्धपोत एक बार फिर ग्वादर और पासनी जैसे बंदरगाहों में छिपने को मजबूर दिखे। फील्ड मार्शल आसीम मुनीर ने पसनी बंदरगाह अमेरिका को देने की कोशिश की है और पाकिस्तान ऐसा इसीलिए कर रहा है, ताकि युद्ध के दौरान वो भारतीय नौसेना से बच सके। यानि, अगर पसनी बंदरगाह पर अमेरिकी रहेंगे और ग्वादर बंदरगाह पर चीन रहेगा तो भारतीय नौसेना से पाकिस्तान बच सकेगा।
प्रधानमंत्री मोदी का INS Vikrant पर जाना और नौसेना के साथ दिवाली मनाना कोई प्रतीकात्मक कदम नहीं था। बल्कि पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर (GHQ) को भेजा गया एक सशक्त राजनीतिक संदेश था। इंडिया टुडे में लिखते हुए प्रसिद्ध डिफेंस जर्नलिस्ट संदीप उन्नीनाथन ने इसे पाकिस्तान के लिए खास रणनीतिक संदेश माना है। समुद्र में तैनात आईएनएस विक्रांत पर मौजूद जवानों से संवाद करते हुए मोदी ने कहा, कि "कुछ महीने पहले ही हमने देखा कि कैसे INS Vikrant का नाम पाकिस्तान में डर की लहरें पैदा कर गया। यही उसकी शक्ति है, एक ऐसा नाम जो दुश्मन का साहस तोड़ देता है।"
INS Vikrant से क्यों डरता है पाकिस्तान?
दरअसल, सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला था कि मई महीने में संघर्ष के दौरान पाकिस्तान नौसेना ने कराची और ओरमारा में अपने पारंपरिक नौसेना अड्डे खाली कर दिए थे। इस दौरान उसने अपने युद्धपोतों को नागरिक बंदरगाहों और चीन की तरफ से ऑपरेट किए जाने वाले ग्वादर पोर्ट पर भेज दिया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि समुद्र में 300 नॉटिकल मील दक्षिण दिशा में भारत का विक्रांत कैरियर बैटल ग्रुप ऑपरेट हो रहा था, जिसके चार एस्कॉर्ट जहाजों पर ब्रह्मोस मिसाइलें लक्ष्य साधने को तैयार थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर 10 मई को युद्धविराम लागू नहीं होता और युद्ध थोड़ा और लंबा होता तो कराची बंदरगाह पर हमला तय हो गया था, बस आदेश मिलने का इंतजार था।
संदीप उन्नीनाथन ने लिखा है कि अगर भारत ने उस समय पाकिस्तान के 1,000 किलोमीटर लंबे समुद्री तट पर हमला किया होता, तो इसके सीधे आर्थिक और सामरिक परिणाम होते। विदेशी जहाज पाकिस्तानी बंदरगाहों से दूर चले जाते, तेल आपूर्ति रूक जाती (पाकिस्तान हर दिन 5 लाख बैरल तेल आयात करता है) और पाकिस्तान, जिसकी ऊर्जा भंडारन क्षमता सिर्फ 10-20 दिनों के लिए है, वहां तेल के लिए अफरातफरी मच जाती। इसके अलावा, भारतीय नौसैनिक नाकाबंदी, पाकिस्तान को करीब करीब लैंड लॉक्ड देश बना देती। यानि पाकिस्तान ऊर्जा आयात के लिए पूरी तरह से अपने पड़ोसियों ईरान, अफगानिस्तान और चीन पर निर्भर हो जाता।
पाकिस्तान के लिए अपने बंदरगाह बचाना क्यों है मुश्किल?
दरअसल, पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी दिक्कत उसका भूगोल और नौसेना की सीमित क्षमता है। अरब सागर से सटी उसकी तटीय रेखा एक बंद कॉरिडोर जैसी है। संदीप उन्नीनाथन लिखते हैं कि उस क्षेत्र से बचकर बाहर निकलने के रास्ते कम हैं। इसके ऊपर, भारतीय नौसेना के मुकाबले में पाकिस्तानी नौसेना संख्या और तकनीक दोनों में पिछड़ी हुई है। हालिया ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना ने कराची के पास मलिर कैंटोनमेंट में अमेरिकी सर्विलांस रडार को नष्ट कर दिया, जिससे पाकिस्तान की नौसैनिक तैनाती लगभग निष्क्रिय हो गई।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि युद्ध के समय पाकिस्तान की नौसेना अपने जहाजों को बंदरगाहों से बाहर नहीं निकाल पाएगी, जिससे देश की समुद्री गतिविधियां ठप हो जाएंगी। शांति काल में यही नौसेना अभ्यासों और एंटी-पायरेसी अभियानों के लिए उपयोगी रहती है, लेकिन भारत के खिलाफ संघर्ष के दौरान पाकिस्तान की नौसेना किसी काम की नहीं रहती है।
पीएम मोदी ने समंदर से कैसे दी पाकिस्तान को चेतावनी?
1971 के युद्ध में भी भारत ने पाकिस्तान को समुद्र से करारी शिकस्त दी थी। उस दो हफ्ते की लड़ाई में भारतीय नौसेना ने कराची के पास पाकिस्तानी जहाजों को डुबो दिया था। PNS खैबर, PNS मुहाफिज और MV Venus Challenger समेत कई युद्धपोत को भारत ने पूरी तरह से तबाह कर दिए थे। जिससे पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तानी नौसेना लगभग निष्क्रिय हो गई थी।
इसके अलावा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भी INS Vikrant के नेतृत्व में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान की सेनाओं के भागने के रास्ते को ब्लॉक कर दिया था। इसीलिए मोदी ने साफ संदेश दिया है कि इतिहास खुद को दोहरा सकता है। क्योंकि 2025 में पाकिस्तान के युद्धपोत एक बार फिर ग्वादर और पासनी जैसे बंदरगाहों में छिपने को मजबूर दिखे। फील्ड मार्शल आसीम मुनीर ने पसनी बंदरगाह अमेरिका को देने की कोशिश की है और पाकिस्तान ऐसा इसीलिए कर रहा है, ताकि युद्ध के दौरान वो भारतीय नौसेना से बच सके। यानि, अगर पसनी बंदरगाह पर अमेरिकी रहेंगे और ग्वादर बंदरगाह पर चीन रहेगा तो भारतीय नौसेना से पाकिस्तान बच सकेगा।
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