इंटरनेट डेस्क। आपने देखा होगा की आज के समय में रिश्ते एक नाजुक डोर से बंधे होते है। इनको आप जितना संभाल के रखोगे उतना ही अच्छा रहेगा। अगर आपके रिश्ते में दरार आ जाती हैं तो फिर उनका संभलना मुश्किल हो जाता है। वैसे श्रीकृष्ण ने हजारों साल पहले ही गीता में रिश्तों में मजबूती बनाए रखने को लेकर रास्ता बता दिया था। तो जानते हैं उनके बारे में।
खुद को जानने से ही होती है रिश्तों की शुरुआत
हर रिश्ते की मजबूत नींव खुद की पहचान से बनती है, गीता हमें सिखाती है कि जब हम अपनी चाहत, डर, सामर्थ्य और कमजोरियों को नहीं पहचानते, तब तक किसी और से सही संबंध नहीं बना सकते।
मोह की बेड़ियों से रिश्ता बनता है बोझ
जब हम किसी से जरूरत से ज्यादा जुड़ जाते हैं, तो वह लगाव धीरे-धीरे बंधन में बदलने लगता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि अत्यधिक मोह रिश्तों में घुटन और खटास ला सकता है। इसलिए सामने वाले के प्रति निस्वार्थता का भाव और स्वतंत्रता देना जरूरी है।
प्रेम में सम्मान है सबसे बड़ी नींव
सिर्फ प्यार ही काफी नहीं होता, उसे टिकाए रखने के लिए सम्मान जरूरी है। गीता का संदेश है कि यदि आप अपने जीवनसाथी या प्रेमी से सच्चा रिश्ता निभाना चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्हें मान देना सीखें।
pc- jagran
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