भगवान गणेश, जिन्हें प्रथम पूज्य देव, विध्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में जाना जाता है, उनके जन्म और सिर कटने से जुड़ी पौराणिक कथाएं कई धार्मिक ग्रंथों में वर्णित हैं। लेकिन एक रहस्य ऐसा भी है, जो आज भी लोगों के मन में प्रश्न बनकर घूमता है — आख़िर गणेश जी का असली मस्तक कटने के बाद कहां गया था? क्या वह नष्ट हो गया या किसी विशेष कारण से उसे छुपा दिया गया? इस रहस्य का संबंध शनिदेव की दृष्टि से भी जुड़ा है।
आइए जानते हैं इस रहस्यमयी कथा के पीछे की वह पावन कहानी, जो न केवल भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी है बल्कि शनिदेव और ब्रह्मांड की गूढ़ शक्तियों का भी संकेत देती है।
माता पार्वती ने किया गणेश का निर्माणपुराणों के अनुसार, जब भगवान शिव ध्यानमग्न थे, तब माता पार्वती ने अपने उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण फूंके। यही बालक गणेश कहलाए। उन्होंने पार्वती जी के कहने पर उनके स्नान करते समय द्वारपाल की भूमिका निभाई और किसी को अंदर नहीं जाने दिया।
भगवान शिव ने काट दिया गणेश का मस्तकजब शिव जी वापस लौटे और बालक गणेश ने उन्हें भीतर जाने से रोका, तब क्रोधित होकर शिव जी ने त्रिशूल से गणेश का मस्तक काट दिया। यह देखकर माता पार्वती अत्यंत दुखी हुईं और क्रोधित भी हो उठीं। उन्होंने समस्त सृष्टि को विनाश की चेतावनी दे डाली। तब देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की कि वह गणेश को पुनर्जीवित करें।
शनिदेव की दृष्टि और गणेश का सिरअब इस पूरी कथा में एक महत्वपूर्ण भूमिका शनिदेव की मानी जाती है। कथा के अनुसार, जब गणेश का जन्म हुआ था, उस समय सभी देवता उन्हें आशीर्वाद देने आए। लेकिन शनिदेव दूर खड़े रहे, क्योंकि उन्हें डर था कि उनकी दृष्टि किसी पर भी पड़ जाए तो वह दुर्भाग्य का शिकार हो सकता है।
माता पार्वती ने जब शनिदेव से पूछा कि वह पास क्यों नहीं आ रहे, तो उन्होंने संकोच से कहा कि मेरी दृष्टि दुर्भाग्य लाती है। माता पार्वती ने फिर भी आग्रह किया कि वे बालक गणेश के मुख को देखें और आशीर्वाद दें। शनिदेव ने जैसे ही बालक के मुख पर अपनी दृष्टि डाली, उसी क्षण गणेश का सिर धड़ से अलग हो गया।
गणेश का मस्तक गया कहां?अब प्रश्न उठता है कि जब गणेश का सिर कट गया, तो उसका असली मस्तक कहां गया? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश जी का मस्तक शनिदेव की दृष्टि के प्रभाव से किसी अन्य लोक में अदृश्य हो गया था। यह कोई सामान्य मृत्यु नहीं थी, बल्कि ब्रह्मांडीय शक्तियों की लीला थी।
कुछ पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि गणेश जी का मूल सिर कैलाश के एक गुप्त स्थान में अमृत रक्षित रूप में सुरक्षित रखा गया है, और यह केवल ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संज्ञान में है। हालांकि यह सिर अब किसी कार्य में नहीं लाया जा सकता क्योंकि उस पर शनिदेव की दृष्टि का प्रभाव लग चुका है।
गजमुख (हाथी का सिर) क्यों और कैसे लगाया गया?जब शिव जी ने गणेश को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया, तो उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि वह उत्तर दिशा की ओर जाएं और जिस जीव का सिर सबसे पहले दिखाई दे, उसे लेकर आएं। तब उन्हें एक हाथी का सिर मिला, जिसे लाकर गणेश के धड़ पर स्थापित किया गया। तभी से गणेश जी को गजमुख यानी हाथी मुख वाले देवता कहा जाता है।
क्या है इस कथा से सीख?यह कथा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि ब्रह्मांडीय शक्तियां, समय, दृष्टि और कर्म का कितना गहरा प्रभाव होता है। शनिदेव की दृष्टि से एक अनहोनी घटी, लेकिन उसी अनहोनी से गणेश जी को नई पहचान, नई शक्ति और ब्रह्मांड में अद्वितीय स्थान प्राप्त हुआ।
निष्कर्षभगवान गणेश के असली मस्तक का रहस्य और शनिदेव की भूमिका इस कथा को और भी गूढ़ बनाते हैं। यह महज एक पुरानी पौराणिक कहानी नहीं, बल्कि उस गहन दर्शन का प्रतीक है जिसमें हर घटना के पीछे एक कारण और हर कारण के पीछे एक ब्रह्मांडीय योजना छिपी होती है।
You may also like
युवा मजबूत होंगे तो चीन मजबूत होगा
आईपीएल 2025 : पंजाब किंग्स ने जीता टॉस, मुंबई इंडियंस पहले करेगी बल्लेबाजी
Ukraine Russia War : 40 रूसी जेट विमानों पर यूक्रेन ने किया हमला, फिर रूस ने किया सबसे बड़ा ड्रोन हमला...
2nd ODI: वेस्टइंडीज ने इंग्लैंड को दिया 309 रनों का लक्ष्य, इन 3 खिलाड़ियों ने मचाया धमाल
खेलने निकली बच्ची कभी घर नहीं लौटी… फिर जो हुआ उसने पूरे गांव को हिला दिया!