शिमला, 21 जून (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों से न्यायालयीन मामलों के प्रभावी और समयबद्ध निपटारे के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी निभाने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि विभाग को कानूनी मामलों के प्रबंधन में सुधार लाकर वित्तीय और प्रशासनिक बोझ को कम करना होगा।
मुख्य सचिव शनिवार काे आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे, जिसका उद्देश्य विभाग में न्यायिक मामलों के प्रबंधन को सुदृढ़ बनाना और अधिकारियों की क्षमता में वृद्धि करना था। उन्होंने कहा कि केवल मध्यस्थता प्रक्रिया पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है, बल्कि प्रत्येक मामले में गंभीरता और उत्तरदायित्व की आवश्यकता है।
उन्होंने अन्य राज्यों से सीख लेने, न्यायालयीन प्रक्रियाओं को सरल बनाने, और लंबित मामलों के समाधान के लिए विधायी विकल्पों पर विचार करने की बात कही। साथ ही मीडिया में प्रकाशित मामलों पर सतर्क निगाह रखने और राज्य सरकार द्वारा गठित मंत्रिमंडलीय उप-समिति में सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता भी बताई।
कार्यशाला के दौरान विभागीय सचिव डॉ. अभिषेक जैन ने जानकारी दी कि भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों के चलते विभाग पर अब तक 300 करोड़ रुपये की वित्तीय देनदारी बन चुकी है, जो सभी लंबित मामलों को मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये तक जा सकती है। उन्होंने फाइलों के दोहराव से बचने और लागत घटाने पर भी जोर दिया।
प्रधान सचिव (विधि) शरद कुमार लगवाल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर संवैधानिक दायित्वों की ओर ध्यान दिलाया और विधिसम्मत प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता बताई। विभाग के विशेष सचिव हरबंस सिंह ब्रसकोन ने राज्य में लंबित करीब 1,600 मामलों की जानकारी दी और निजी भूमि पर सड़कों के निर्माण से उत्पन्न विवादों को बड़ी चुनौती बताया।
कार्यशाला में दो पैनल चर्चाएं आयोजित की गईं, जिनमें विभिन्न सर्कलों और जोनों के अभियंताओं ने न्यायालयीन मामलों से जुड़ी व्यावहारिक समस्याएं और समाधान साझा किए।
हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता अनूप रतन ने सुझाव दिया कि अदालतों में प्रस्तुत किए जाने वाले जवाब मुख्यालय स्तर पर तैयार किए जाएं ताकि समय पर और प्रभावी पैरवी संभव हो। उन्होंने विभागीय अभियंताओं को मध्यस्थता अधिनियम का अध्ययन करने की भी सलाह दी।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
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