आबूरोड, 13 जुलाई (Udaipur Kiran) । जब किसी भी तरह के नशे का पदार्थ बार-बार लिया जाता है, तो मस्तिष्क में डोपामिन रिसेप्टर्स में कमी हो जाती है। मस्तिष्क खुद को संतुलित करने के लिए डोपामिन रिसेप्टर्स की संख्या घटा देता है। इससे सामान्य गतिविधियों में खुशी नहीं मिलती है। ऐसे व्यक्ति को संगीत, रिश्ते, खेल या अध्यात्म से मिलने वाली प्रसन्नता कम लगने लगती है। परिणामस्वरूप, व्यक्ति नशा न करने पर चिड़चिड़ापन, अवसाद, बेचैनी और निराशा का अनुभव करता है, जिससे वह फिर उसी पदार्थ की ओर लौटता है।
यह कहना है दिल्ली के जीबी पंत हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. स्वप्न गुप्ता का। वे ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के मेडिकल विंग द्वारा मान सरोवर परिसर में आयोजित राष्ट्रीय नशामुक्ति प्रशिक्षण शिविर में संबोधित कर रहे थे।
नशामुक्त भारत अभियान के अंतर्गत आयोजित इस शिविर में देशभर से 300 से अधिक डॉक्टर्स, सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवी और ब्रह्माकुमार भाई-बहनें भाग ले रहे हैं।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान द्वारा सिखाया जाने वाला राजयोग ध्यान, मस्तिष्क के डोपामिन सिस्टम को संतुलित करने में सहायक सिद्ध हुआ है। ध्यान से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और आदतों पर नियंत्रण कर पाता है। एमआरआई और ईईजी जैसी जांचों से यह सिद्ध हुआ है कि ध्यान करने वालों के मस्तिष्क में प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स अधिक सक्रिय रहता है, जिससे निर्णय शक्ति और आत्म संयम बढ़ता है। चिकित्सकीय परामर्श, सामाजिक और पारिवारिक सहयोग, आध्यात्मिक मार्गदर्शन और राजयोग ध्यान के अभ्यास से किसी भी तरह के नशे से पीड़ित व्यक्ति बाहर निकल सकता है।
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गोमती अग्रवाल ने व्यसन समस्या का परिमाण विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर वर्ष लाखों लोग व्यसनजनित रोगों से असमय मृत्यु का शिकार होते हैं। भारत जैसे युवा राष्ट्र में यह समस्या और भी चिंताजनक है, जहां युवा वर्ग अपनी ऊर्जा को व्यसन में गंवा रहा है। व्यसन न केवल स्वास्थ्य को नष्ट करता है, बल्कि आर्थिक क्षति, सामाजिक विघटन और अपराधों को भी जन्म देता है। व्यसन से छुटकारा पाने के लिए आत्मबल, सही मार्गदर्शन और आध्यात्मिक जागृति की आवश्यकता है। ब्रह्माकुमारीज़ संस्था राजयोग के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार और व्यसन मुक्ति का संदेश देकर समाज को एक नई दिशा दे रही हैं।
कोलकाता के बीके अमित भाई ने बताया कि जब कोई पदार्थ या व्यवहार बार-बार दोहराया जाता है, तो मस्तिष्क में ‘डोपामिन’ नामक रसायन की सक्रियता बढ़ जाती है, जिससे खुशी मिलती है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को बार-बार उस अनुभव की ओर खींचती है। साथ ही जीवन में प्रेम, मान, उद्देश्य या शांति की कमी व्यक्ति को बाहरी साधनों में खुशी खोजने की ओर ले जाती है। इसे भावनात्मक रिक्तता कहते हैं यह भी नशे का एक कारण है। नशे से ग्रसित व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक रीति से संपूर्ण काउंसलिंग जरूरी है।
मुंबई के डॉ. सचिन परब ने बताया कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए हर विद्यालय-कॉलेज में नशामुक्ति क्लब की स्थापना जरूरी है। नशे से संबंधित पाठों को वैकल्पिक विषय के रूप में जोड़ना होगा। साथ ही नियमित योग-ध्यान सत्र आयोजित करना होंगे। सकारात्मक और नैतिक नेतृत्व करने वाले शिक्षक व अभिभावकों की भूमिका जरूरी है। हर छात्र संकल्प करे कि मैं नशे से मुक्त रहूंगा और दूसरों को भी बचाऊंगा।
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(Udaipur Kiran) / रोहित
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