– अधिकारी गायब, वसूली की भी फुसफुसाहट
मीरजापुर, 28 मई . मनरेगा योजना के तहत छानबे ब्लॉक के 97 गांवों में हुए कार्यों की मंगलवार को सोशल ऑडिट हुई, जिसमें चौंकाने वाला खुलासा हुआ—महड़ौरा गांव सबसे निचले पायदान पर निकला. हालात ऐसे कि बीआरपी झब्बूलाल ने चंद मिनटों में ही बैठक खत्म कर ‘रास्ता नापा’, तो दूसरी ओर अधिकारी खुद दसवीं बैठक से गायब रहे. सवाल उठता है—आखिर जिम्मेदारी कौन लेगा?
सूत्रों की मानें तो कुछ गांवों में आडिट टीम अधिकारियों के नाम पर वसूली के लिए धौंस जमाते दिखे. एक प्रधान ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह आडिट कम और धमकी ज्यादा लग रही थी. हालांकि ब्लॉक क्वार्डिनेटर प्रतिमा सिंह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सत्यापन पूरी पारदर्शिता से किया जा रहा है. वसूली का आरोप निराधार है.
बीआरपी अनीता दुबे ने बताया कि कुशहां गांव में सक्रिय मजदूरों की संख्या 250 है और बीते साल में 39 लाख रुपये मजदूरी व सामग्री पर खर्च हुए. मनिकठी में 24 लाख का व्यय हुआ, बैठक में प्रधान कमलेश बिंद भी रहे मौजूद. कुरौठी पांडेय गांव में महज 3 लाख की राशि खर्च, प्रधान दिवाकर सिंह ने सौ दिन काम दिलाने का भरोसा जताया. वहीं महड़ौरा में कोई कार्ययोजना नहीं, जॉब कार्डधारी बेहाल हैं. प्रधान जयनारायण ने पौधरोपण और नाली निर्माण का हवाला दिया, लेकिन तस्वीर साफ है—गांव फिसड्डी बना हुआ है.
जागरूकता बनाम गैरहाजिरी
नगंवासी गांव में बीआरपी संजय गौरव ने मजदूरों संग जागरूकता रैली निकाली, लेकिन दूसरी ओर कई गांवों में सचिव, तकनीकी सहायक और रोजगार सेवक बैठक में पहुंचे ही नहीं. मजदूरों ने इन हालातों की शिकायत मुख्य विकास अधिकारी से की है.
आखिर कब सुधरेगा सिस्टम?
इस पूरी ऑडिट से साफ है कि कहीं मेहनत रंग ला रही है तो कहीं व्यवस्था ही बिखरी पड़ी है. सवाल यही है—क्या मनरेगा सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाएगा या ज़मीन पर भी कुछ बदलेगा?
/ गिरजा शंकर मिश्रा
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