रांची, 20 जुलाई (Udaipur Kiran) । निरंकारी संत समागम का आयोजन रविवार को धुर्वा स्थित जगन्नाथ मैदान में किया गया। संत समागम में झारखंड के विभिन्न जिलों के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा सहित कई राज्यों के भक्त पहुंचे थे। इस दौरान भक्तों के लिए लंगर की भी व्यवस्था की गई थी, जबकि सैकड़ों वॉलिंटियर श्रद्धालुओं को अनुशासित कर रहे थे।श्रद्धालु भी बेहद अनुशासित थे।
वहीं संत समागम में सदगुरु राज पिताजी ने कहा कि सद्गुरु हमें मानव जाती को जात पात और ऊंच नीच का भेदभाव मिटाकर ईश्वर से मिलाता है।
उन्होंने कहा कि हम मानव को यह संदेश देना चाहते हैं कि हम सभी परमात्मा की रचना हैं और सभी एक हैं। उन्होंने कहा कि हमें मानव जीवन बहुत बड़े भाग्य से मिला है। यह जीवन हमें 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मिलता है।
उन्होंने कहा कि मानव जीवन में भी ईश्वर को पाया जा सकता है। श्रीमद्भागवत गीता में भी इसका जिक्र है कि जिस प्रकार हम कपड़े बदलते हैं आत्मा भी शरीर को बदलता है। आत्मा इस चक्र में चलती रहती है। हमें सतगुरु आत्मा को शरीर से संबंधित ज्ञान का आभास कराते हैं। कृष्ण भक्त मीराबाई ने भी गाना गा कर आवाज लगाई की परमात्मा को पाया जा सकता है। भक्ति एक संपूर्ण प्रेम की अवस्था है। आत्मा को प्रेम करने के लिए ईश्वर को जानना और देखना जरूरी है। ईश्वर का बोध होना जरूरी है, लेकिन आज अलग-अलग विचारों के चलते मानव के बीच दीवारें बन रही हैं। कोई राम बोल रहा है तो कोई खुदा और कोई गॉड बोलता है। इस भिन्नता के कारण ही लोगों में वैमनस्य है।
हम एक दूसरे से अलग मान बैठे हैं और हमें यह भय है कि कहीं कोई दूसरा व्यक्ति हमारा नुकसान न कर दे। इस अंतर और भिन्नता की वजह अज्ञानता है। लेकिन ब्रह्मज्ञान आने से यह अज्ञानता रूपी भेद मिट जाता है।
उन्होंने कहा कि हम सभी एक ही परमात्मा के संतान हैं। हम अलग-अलग जातियों से नहीं हैं, बल्कि एक ही जाती के हैं वह है मानव जाति। हमें एक ही आत्मा के सृजनहार ने तराशा है।
सभी लोग कहते हैं कि परमात्मा एक है तो हम एक दूसरे को शक की दृष्टि से क्यों देखते हैं। यह भाव नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इंसान को सभी सुख मिल जाए तो भी वह खुश नहीं रह पाता है।
हमारे सभी संतो ने भी लोगों की भलाई और खुशी की बात कही है। संतों ने मैं वाले भाव को मिटाया है। उन्होंने कहा कि राम नाम सिर्फ नाम नहीं है, राम तो सर्वव्यापक है। हमें खुद में राम का बोध करना है। ऐसे ही एक तत्व की नजर के साथ संत दूसरों को देखते हैं।
उन्होंने कहा कि जब मैं खुद को अलग मानता हूं तो अलग हूं लेकिन जब तक स्रोत से नहीं मैं मिला तब तक अधूरा ही हूं। जिस प्रकार बारिश कि बुंदे अपने स्रोत समुद्र से नहीं मिल जातीं।
उन्होंने कहा कि हम कोल्हू की बैल की तरह चले जा रहे हैं, दिन है या रात है। हमें पता नहीं चल पा रहा है। हम अपने विकास की अंधी दौड़ में भागे जा रहे हैं। हमें अच्छे अंक से पास होना है, अच्छे कॉलेज में दाखिला लेना है, बड़ी गाड़ी लेनी है, बड़ा मकान बनाना है। फिर यही भागमभाग की स्थिति हम अपने बच्चों में भी देखना चाहते हैं जो सत्य से बिल्कुल परे है। इस भागमभाग से हमें परम आनंद नहीं मिल जाता, जब तक जीवन में परमात्मा का बोध नहीं आएगा तब तक जीवन में ठहराव नहीं आएगा। बगैर सत्य के साथ हमें उस अविनाशी के दर्शन नहीं होंगे और यही वजह है कि हमें जीवन में आनंद नहीं मिल पाता है।
सत्य वही है जो इस क्षण हमें मुक्ति का बोध कराये। सद्गुरु से हमें यही अरदास है कि सभी जीवों को सत्य मिले और उन्हें ईश्वर की प्राप्ति हो।
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(Udaipur Kiran) / Vinod Pathak
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