जम्मू, 28 जून (Udaipur Kiran) । साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज रखबंधु में अपने प्रवचनों की अमृतवर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि स्वांस में सुमिरन का साहिब ने बहुत महात्म बोला है। स्वांस में आप हैं। पवन में आग निहित है। स्वांसा में आप हैं, मैं प्रमाणित करता हूँ। आज्ञाचक्र में आत्मा का वास है। आप चाहे कितना भी बारीक काम कर रहे हैं, चाहे शरीर से भी काम कर रहे हैं, चाहे दिमाग से भी काम कर रहे हैं, स्वांसा चलती रहती है। यह स्वांसा आत्मा ले रही है। संसार के जितने भी प्रचलित धर्म हैं, इस बात को स्वीकार करते हैं कि आत्मा की उर्जा से ही शरीर चल रहा है। हम बस इतना जानकर चुप हो जाते हैं। आत्मा में परमात्मा का वास है। लोग आत्मज्ञान के लिए प्रयास कर रहे हैं। प्रयास तो सभी कर रहे हैं। पर बाहर भटक रहे हैं। चीज कहीं हो और हम उसे ढूँढ़े कहीं ओर तो कैसे मिलेगी। मनुष्य का आत्मा-परमात्मा को खोजने का वही प्रयास है। मृगा की नाभि में कस्तूरी है। कस्तूरी की बड़ी महक है। यह जगत विदित है। पर मृगा जंगल जंगल ढूँढ़ता फिरता है कि यह खुशबू कहाँ से आ रही है। इस तरह से परमात्मा आपमें हैं। पर सद्गुरू रूपी भेदी मिलेगा तो वो पल में लखा देगा। यही बात गीता भी बोल रही है। यी बात शास्त्र बोल रहे हैं। संतों ने तो जोर देकर बोला। साहिब पूरा पता दे रहे हैं।
परमात्मा का सही सही पता मिल रहा है। साथ में यह भी है कि रोम रोम में रह रहा है। सब घट में वो व्याप्त है। कोई भी शरीर सूना नहीं है। पर उस घट की बलिहारी है, जिसमें वो प्रगट हो जाए। मिट्टी में 60 तत्व मौजूद हैं। जब तक प्रगट नहीं किया, लाभ नहीं मिलेगा। साहिब आगे कह रहे हैं कि प्रभु के मिलने का यत्न करो। मैं साईं मिलन की कुंजी बता देता हूँ। हजारों जगह साहिब ने बोला है कि सुषुम्ना से ही साईं मिलने का रास्ता है। सुषुम्ना में रहस्य है। प्राण पूरे शरीर में फैले हैं। प्राणों में आत्मा है। स्वांसा आत्मा ले रही है। पूरे शरीर में रोम रोम में आ गयी। इस तरह परमात्मा रोम रोम में समाया हुआ है।
आपने देखा होगा कि मकड़ियाँ ऊपर चढ़ती हैं, नीचे आती हैं। एक पेड़ पर मैं बैठा था। मकड़ी नीचे आ रही थी। मैं देखा कि यह कहाँ से आ रही है। ढोर भी दिख नहीं रही थी। वो एक बहुत सूक्ष्म तार से ऊपर नीचे आ रही थी। वो खुद उस तार को बना लेती है। इस तरह साहिब कह रहे हैं कि मकरतार के भेद को केवस संतजन जानते हैं। आत्मा इसी तरह से परमात्मा के पास जा सकती है। अध्यात्म की शुरुआत ही सुमिरन से होती है। जप, तप, संयम, साधना सब सुमिरन में आ जाते हैं। साहिब ने कहा कि बाहर की माला को छोड़, स्वांसा की माला से नाम का सुमिरन कर। क्योंकि स्वांसा में आत्मा का वास है। वो आत्मा से परमात्मा का सुमिरन करना होता है। शरीर के जितने भी अंग हैं, स्वांसा से चलते हैं। आत्मा ने प्राणों को धारण कर लिया। उस स्थिति में उसे जीव कहते हैं। इसलिए स्वांसा सार है।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
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