उज्जैन, 30 जून (Udaipur Kiran) । विख्यात लेखक, कवि एवं सम्पादक धर्मवीर भारती की जन्म शताब्दी के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय में किया गया। संगोष्ठी का विषय धर्मवीर भारती और उनका साहित्यिक योगदान था। मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल, शरद आलोक थे। अध्यक्षता विक्रम विवि के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय, उदयपुर के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. नवीन नन्दवाना, प्रो. जगदीशचंद्र शर्मा, प्रो. गीता नायक, सतीश दवे, डॉ. प्रभु चौधरी थे। इस अवसर पर वाद्ययंत्र में नवाचार के लिए नरेन्द्रसिंह कुशवाह का सारस्वत सम्मान किया गया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. शर्मा ने कहा कि धर्मवीर भारती का अंधायुग एक कालजयी रचना है, जो आस्था और अनास्था के द्वंद्व को दर्शाती है। युद्धोपरांत समाज में व्याप्त अनास्था, मूल्यहीनता और त्रासदायी स्थितियों को इस काव्यनाटक में अभिव्यक्ति मिली है। श्री शुक्ल ने कहा कि भारतीजी ने धर्मयुग पत्रिका के माध्यम से साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रिकाओं के आंदोलन को नई दिशा दी। वे सभी विचारधाराओं का सम्मान करते थे।
डॉ. नंदवाना ने कहा कि धर्मवीर भारती एक सशक्त कलमकार थे। उनकी रचनाएं जीवन के विभिन्न पड़ावों को अभिव्यक्त करती हैं। डॉ. शर्मा ने कहा कि धर्मवीर भारती का उपन्यास सूरज का सातवां घोड़ा एक प्रयोगधर्मी उपन्यास है। संगोष्ठी में नरेन्द्रसिंह कुशवाह ने कांच एवं संगमरमर के नगाड़ा और डमरू पर विविध तालों की प्रस्तुति दी।
समारोह में प्रो. शर्मा और डॉ. नन्दवाना का सम्मान किया गया। कार्यक्रम में डॉ. प्रभु चौधरी, डॉ. चिन्तामणि राठौड़, किरण शर्मा, लक्ष्मीनारायण सिंहरोडिय़ा, राजेश जूनवाल, डॉ. महिमा मरमट, डॉ. नेत्रा रावणकर शामिल थीं। संचालन संगीता मिर्धा ने किया।
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(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल
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